कृषिप्रधान बिहार को ले बड़ा खुलासा, कर्ज में डूबे राज्य के 48 फीसद कृषक परिवार

बिहार के किसानों को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्य में 48 फीसद किसानों के ऊपर कर्ज का बोझ है। इसका खुलासा नाबार्ड के नफीस के 2016-17 की रिपोर्ट में हुआ है।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Fri, 24 Aug 2018 11:13 AM (IST) Updated:Sat, 25 Aug 2018 10:13 PM (IST)
कृषिप्रधान बिहार को ले बड़ा खुलासा, कर्ज में डूबे राज्य के 48 फीसद कृषक परिवार
कृषिप्रधान बिहार को ले बड़ा खुलासा, कर्ज में डूबे राज्य के 48 फीसद कृषक परिवार

पटना [एसए शाद]। कृषि पर आधारित बिहार के परिवारों में से 48 फीसद के ऊपर कर्ज का बोझ है। अधिकांश ने यह कर्ज घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए लिया है। पिछले सप्ताह जारी नबार्ड के अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण(नफीस) 2016-17 की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। बिहार में यह सर्वेक्षण 16 जिलों के 128 गांवों में स्थित 2592 घरों में किया गया है। 

रिपोर्ट के मुताबिक, 48 फीसद कृषक परिवारों के ऊपर कर्ज है जबकि राष्ट्रीय औसत भी लगभग इतना ही, 47 प्रतिशत है। दक्षिण भारत के तीन राज्यों-तेलंगाना, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में यह प्रतिशत क्रमश: 79, 76 एवं 75 है। आंकड़ों के मुताबिक, किसानी पर निर्भर बिहार के परिवारों में से 32 प्रतिशत ने घरेलू जरूरत और 17 प्रतिशत ने इलाज के लिए कर्ज लिया है। 19 प्रतिशत ने तो अपनी खेती पर आने वाले खर्च के लिए यह कर्ज लिया है।

मात्र 6 प्रतिशत ही कृषक परिवार ऐसे हैं जिन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए ऋण लिया है। सर्वे में यह बात सामने आई है कि पहली जुलाई, 2015 से 30 जून, 2016 के दौरान प्रदेश के 37 प्रतिशत किसानों ने नए कर्ज लिए हैं। जबकि राष्ट्रीय औसत 40 फीसद है।  

सर्वे के मुताबिक, बिहार में कृषक परिवारों की आमदनी औसत 8931 रुपये प्रति माह के मुकाबले 7175 रुपये प्रति माह है। पंजाब के किसानों की आमदनी इससे तीन गुना 23,133 रुपये प्रति माह है। कम आमदनी का मुख्य कारण यह भी है कि प्रदेश में किसानों की जोत बहुत कम है। उन्हें बटाइदारी में काम करना पड़ता है।

जमीन की औसत उपलब्धता यहां 0.40 हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय औसत एक हेक्टेयर का है। अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा बचाकर अन्य लाभकारी जगह निवेश करने वाले कृषक परिवारों की संख्या भी यहां कम है। मात्र 7.1 प्रतिशत ही ऐसा कर पा रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 9.5 प्रतिशत है। हरियाणा और पंजाब में तो यह प्रतिशत क्रमश: 16.9 और 20.1 का है।

माइक्रोफिनांसिंग का लाभ भी बहुत कम ही किसान ले पा रहे हैं। प्रदेश में 19 प्रतिशत कृषक परिवार ही माइक्रोफिनांसिंग से जुड़ पाए हैं। सर्वे के मुताबिक किसानों की आमदनी का 51 प्रतिशत हिस्सा खाने पर ही खर्च हो जा रहा है।

नाबार्ड के ताजा सर्वे में खुलासा

-औसतन 6,277 रुपये प्रति माह पर करना पड़ रहा गुजारा

-माइक्रोफिनांसिंग से जुड़े हैं मात्र 19 प्रतिशत परिवार

इन 16 जिलों में हुआ सर्वे

1. औरंगाबाद 2. बांका 3. बेगूसराय 4. बक्सर 5. गया 6. कैमूर 7. मधुबनी 8. मुजफ्फरपुर 9. पश्चिम चंपारण 10. पटना 11. पूर्वी चंपारण 12. पूर्णिया 13. रोहतास 14. समस्तीपुर 15. सिवान 16. वैशाली

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