राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की बिहार यात्रा: बिहार छूटा, पर 'बिहारीपन' नहीं

महामहिम रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बनने के बाद गुरुवार को पहली बार बिहार आए और तीसरे कृषि रोड मैप का शुभारंभ किया। इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति भावुक हो गए।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Fri, 10 Nov 2017 11:09 AM (IST) Updated:Fri, 10 Nov 2017 11:29 AM (IST)
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की बिहार यात्रा: बिहार छूटा, पर 'बिहारीपन' नहीं
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की बिहार यात्रा: बिहार छूटा, पर 'बिहारीपन' नहीं

पटना [राज्य ब्यूरो]। राष्ट्रपति की भूमिका निभाने के लिए रामनाथ कोविंद को बिहार छोडऩा पड़ा, पर उनका 'बिहारीपन' वैसा ही बरकरार है। राज्यपाल रहते वह अक्सर कहा करते थे कि मैं भी बिहारी हूं। गुरुवार को उन्होंने साबित किया कि उनके दिल में इस राज्य के लिए कितना अपनापन है।

राज्यपाल के रूप में काम करते हुए मुझे बिहार के हर वर्ग से जो स्नेह मिला, उसे मैं जीवनभर याद रखूंगा। बिहारीपन ही मेरी पहचान है, यह कहते हुए कोविंद भावुक हो गए। अगस्त, 2015 से पहले उनका बिहार से खास वास्ता नहीं था लेकिन यहां राज्यपाल की भूमिका निभाते हुए उनमें बिहार के इतिहास, संस्कृति, खान-पान, लोकजीवन और तीज-त्योहार अपनाने की छटपटाहट दिखती थी।

वह पूरे राज्य में खूब घूमते थे ताकि जल्द से जल्द यहां रम जाएं। बहरहाल, करीब दो साल बाद जून, 2017 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के बाद उन्हें बिहार से जाना पड़ा। करीब साढ़े चार महीने बाद वह कृषि रोडमैप का लोकार्पण करने पटना आए तो उन्होंने उसी तरह खुद को बिहारी साबित करने का प्रयास किया, जैसा वह राज्यपाल के रूप में किया करते थे।

कोविंद और बिहार के रिश्ते में इस कदर मिठास की वजहें भी हैं। यहां के राजभवन में उन्हें उनके जीवन की सबसे बड़ी खुशखबरी मिली ... राजग के राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में उनका चयन। इसी राज्य में उन्हें नीतीश कुमार जैसा दोस्त मिला जिन्होंने उनके लिए राजनीतिक हदबंदी की परवाह नहीं की।

गत 21 जून को जब राजग नेतृत्व ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में उनके नाम की घोषणा की तो उन्हें पहली बधाई और समर्थन देने वाले शख्स नीतीश कुमार ही थे। उस समय बिहार का महागठबंधन बरकरार था। नीतीश उसके नेता थे। कोविंद प्रतिपक्षी पाले के उम्मीदवार थे, पर नीतीश कुमार तुरंत फूल लेकर राजभवन पहुंचे और उनके लिए अपनी पार्टी के समर्थन की घोषणा कर दी।

कटु राजनीति के इस दौर में ऐसे प्रसंग दुर्लभ हैं लिहाजा कोविंद उनकी कीमत समझते हैं। अपने संबोधन में वह बिहार की छवि को लेकर चिंतित दिखे। राष्ट्रपति पद की मर्यादा निभाते हुए उन्होंने संकेतों में ही आगाह किया कि बिहार की छवि के प्रति सबको संवेदनशील रहना चाहिए।

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