बिहार संवादी: गीतकार राजशेखर ने बयां की इश्‍क की 'अधूरी' कहानी

पटना में आयोजित 'बिहार संवादी के आखिरी सत्र में गीतकार राजशेखर 'मजनूं का टीला' कार्यक्रम लेकर हाजिर थे। उनकी कविताओं व गीतों ने समां बांध दिया।

By Amit AlokEdited By: Publish:Sun, 22 Apr 2018 10:21 AM (IST) Updated:Sun, 22 Apr 2018 05:22 PM (IST)
बिहार संवादी: गीतकार राजशेखर ने बयां की इश्‍क की 'अधूरी' कहानी
बिहार संवादी: गीतकार राजशेखर ने बयां की इश्‍क की 'अधूरी' कहानी

पटना [जेएनएन]। बात जब इश्क की हो तो दिल का मोर पंख फैलाकर नाचता ही है। प्रेम राग जब छिड़ता है तो हर दिल को 'वे' दिन याद आते ही हैं। शनिवार को बिहार संवादी के आखिरी सत्र में गीतकार राजशेखर 'मजनूं का टीला' कार्यक्रम लेकर हाजिर थे। वे अपनी कविता व गीतों के जरिए इश्क की 'अधूरी' कहानी बयां कर रहे थे। हर कविता व गीत में इश्क का रंग खूब निखरा।

मंच संभालते ही राजशेखर दर्शकों से सीधा संवाद करते हैं। कहते हैं- मुंबई में गीतकार बनने की कोशिश में है। चलिए आपको पहली कविता सुनाते हैं। शीर्षक है - 'प्रेम, बारिश व इंकलाब।' इस कविता के जरिए वे दर्शकों को बताते हैं कि कविता से भले ही कोई इंकलाब नहीं आता हो, पर फिर भी लिखते हैं। खुद को जिंदा रखने के लिए। इसके बाद उन्होंने अगली कविता पढ़ी। जिसका शीर्षक था 'वन्स इन ए ब्लू मून।'

लिखने के मिलते हैं पैसे, इसलिए लिखता हूं

राजशेखर ने इश्क के रंग में रंगी कुछ कविताएं पढऩे के बाद अपनी फिल्मों के गीत पेश किए। उन्होंने फिल्म 'करीब-करीब सिंगल' का चर्चित गीत गाया- 'वो जो था ख्वाब सा, क्या कहें जाने दें... ये जो है कम से कम, ये रहे कि जाने दे, क्यूं न रोककर खुद को, इक मशवरा कर लें, मगर जानें दें...।' तालियों की गूंज से दर्शकों ने इस गीत का अभिवादन किया।

इसके बाद उन्होंने दर्शकों से संवाद किया। बोले, गीत लिखने में कहीं से आनंद नहीं आता है, पर क्या करें। गीत लिखने के बहुत पैसे मिलते हैं। इसलिए गीत लिखता हूं। आज गीत लिखने के लिए भी फिल्म निर्देशक की ओर से बहुत सारी बंदिशें होती हैं। मीटर आदि बहुत ध्यान रखना होता। खैर, इसमें मैं अपना संघर्ष नहीं माना। घर पर किसानी कर रहे मेरे पिताजी का संघर्ष, मुझसे कहीं ज्यादा है।

गाना हुआ हिट, पर पैसे कम मिले

संवाद के बीच में दर्शक दीर्घा से आवाज आती है ' ए रंगरेज मेरे' गीत एक बार गाइए न...। राजशेखर कहते हैं, अरे वो गीत क्या सुनेंगे, पोथी की तरह है। यह गीत भले ही हिट हुआ था, मगर इसके लिए मुझे बहुत कम पैसे मिले थे। इस गीत को वडाली ब्रदर्स ने गाया था। उनके लिए इस गीत को गुरुमुखी में लिखा गया। इस गीत में एक लाइन है 'रंगरेज तूने अफीम क्या है खा ली...।' वे अफीम को मशीन गा रहे थे। फिर जाकर मैंने उसे सही कराया। बडाली ब्रदर्स नहीं रहे। चलिए ये गीत उनको समर्पित करते हुए आपको सुनाते हैं।

गिटार पर इस गाने की धुन तैरती है। राजशेखर गाते हैं ए रंगरेज मेरे, ए रंगरेज मेरे, ये बात बता रंगरेज मेरे, ये कौन से पानी में तूने कौन सा रंग डाला है।' दर्शक जोरदार ताली बजाकर इस गीत का अभिनंदन करते हैं।

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