पटना हाईकोर्ट ने तरेरी आंख, फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर नियुक्त शिक्षकों में हड़कंप

पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार और निगरानी विभाग से फर्जी डिग्री लेकर स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों पर क्या कार्रवाई की गई? इसका पूरा ब्यौरा मांगा है।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Mon, 26 Aug 2019 07:19 PM (IST) Updated:Tue, 27 Aug 2019 06:05 PM (IST)
पटना हाईकोर्ट ने तरेरी आंख,  फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर नियुक्त शिक्षकों में हड़कंप
पटना हाईकोर्ट ने तरेरी आंख, फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर नियुक्त शिक्षकों में हड़कंप

पटना, जेएनएन। बिहार के सरकारी स्कूलों (Government School) में बड़े पैमाने पर फर्जी डिग्री (Fake Degree) के आधार पर बहाल शिक्षकों (Teachers) के मामले में पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने संज्ञान लेते हुए कड़ा रूख अपनाया है।

हाई कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार (Bihar goverment) और निगरानी विभाग (Vigilance) से इन फर्जी डिग्री धारक शिक्षकों पर अब तक की गई कार्रवाईयों का ब्यौरा तलब किया है। कोर्ट में रणजीत पण्डित द्वारा दायर की गई जनहित याचिका (Petition) पर सोमवार को पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) में जस्टिस (Justice) एस पांडेय की खंडपीठ ने सुनवाई की और ब्यौरा पेश करने का आदेश दिया है।

फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर नियुक्त शिक्षकों पर गाज गिरनी तय

 पटना हाईकोर्ट ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर भिन्न-भिन्न विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों की खबर ली है। अदालत ने राज्य सरकार और विजिलेंस को छह सप्ताह में बताने के लिए कहा है कि जिन शिक्षकों पर फर्जी प्रमाण पत्र को लेकर प्राथमिकी दर्ज हुई थी, उनके खिलाफ  क्या कार्रवाई हुई है। अदालत ने विजिलेंस को यह भी बताने को कहा कि अभी तक ऐसे कितने शिक्षक पकडे गए हैं। उन पर किस प्रकार की कार्रवाई की गई है।

विजिलेंस के खिलाफ  सीबीआइ जांच की मांग को लेकर दायर एक याचिका पर पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश शिवाजी पाण्डेय एवं न्यायाधीश पार्थ सारथी की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सुनवाई की। याचिकाकर्ता का आरोप है कि विजिलेंस एवं शिक्षा विभाग के बड़े-बड़े अधिकारियों की मिली भगत से ही फर्जी शिक्षक अभी तक गलत तरीके से वेतन एवं अन्य प्रकार की सुविधाएं ले रहे हैं।

रणजीत पंडित की याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा कि प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च विद्यालयों में शिक्षकों की बम्पर नियुक्ति हुई थी। 2006 से 2015 के बीच करीब 3 लाख 62 हजार शिक्षक नियुक्त किए गए थे। हाईकोर्ट में इन शिक्षकों के प्रमाण पत्र की वैधता को लेकर एक लोकहित याचिका दायर की गई थी। जिसमे यह साफ हो गया था कि बड़ी संख्या में फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर शिक्षक नियुक्त हो गए हैं।

हाईकोर्ट ने 2015 में ही इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि जो शिक्षक 15 दिनों के अंदर स्वत: नौकरी छोड़ देते हैं, उन पर न तो प्राथमिकी दर्ज होगी और न तो वेतन के रूप में ली गई राशि की रिकवरी होगी। इस आदेश के बाद 3000 शिक्षकों ने स्वत: नौकरी छोड़ दी थी। 

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से कहा कि 25 फरवरी 2019 को सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी गई थी कि अभी तक ऐसे कितने फर्जी शिक्षक कार्यरत हैं। जवाब में बताया गया की इनकी संख्या लाखों में है। याचिकाकर्ता का अनुमान है कि अवैध तरीके से नियुक्त शिक्षकों द्वारा करीब एक हजार करोड़ रुपये का चूना लगाया गया है।

इस राशि की भी रिकवरी होनी चाहिए। इसके साथ-साथ जिन अधिकारियों के कार्यकाल में इस प्रकार की धोखाधड़ी हुई है, उनसे भी राशि की वसूली होनी चाहिए। सुनवाई में इस बात का भी उल्लेख किया गया कि मानव संसाधन विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह ने 2008 में ही एक आदेश निकाल कर साफ तौर पर कह दिया था कि सर्टिफिकेट की जांच के बाद ही शिक्षक नियुक्त किये जाएं। लेकिन अधीनस्थ अधिकारियों ने इसकी भी परवाह नहीं की।  

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