बोन मैरो प्रत्यारोपण से ब्लड कैंसर के इलाज में मरीजों को मिल रही सफलता

बोन मैरो प्रत्यारोपण एक ऐसी पद्धति है जिसके माध्यम से अब ब्लड कैंसर जैसे इलाज में मरीजों को काफी राहत मिल रही है। बोन मैरो पद्धति से अब गंभीर बीमारी का इलाज संभव है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 04 May 2018 02:13 PM (IST) Updated:Fri, 04 May 2018 02:59 PM (IST)
बोन मैरो प्रत्यारोपण से ब्लड कैंसर के इलाज में मरीजों को मिल रही सफलता
बोन मैरो प्रत्यारोपण से ब्लड कैंसर के इलाज में मरीजों को मिल रही सफलता

पटना [जेएनएन]। ब्लड कैंसर के इलाज में बोन मैरो प्रत्यारोपण काफी कारगर साबित हो रहा है। राजधानी पटना में बोन मैरो प्रत्यारोपण शुरू हो चुका है, जिससे ब्लड कैंसर के मरीजों को बड़ी राहत मिल रही है। उन मरीजों को अब राज्य से बाहर इलाज के लिए जाना नहीं पड़ेगा। ये बातें हीमेटोलॉजी फाउंडेशन ऑफ बिहार के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में फाउंडेशन के सचिव डॉ. अविनाश कुमार सिह ने कहीं।

गौर हो कि बोन मैरो हमारी हड्डियों के अंदर पाया जाता है। यह हमारी हड्डियों के अंदर भरा हुआ एक मुलायम टिशू होता है। जहा से हमारे रक्त का उत्पादन होता है। एक व्यस्क के शरीर में बोन मैरो का भार लगभग चार फीसद समाहित रहता है। यानी कि लगभग 2.6 किलोग्राम। बीने मेरो रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली स्टेम कोशिकाओं से भरी रहती है जो लाल, सफेद कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को विकसित करती है। सफेद रक्त कोशिकाएं प्रतिरक्षा की प्रणाली संक्रमण से लड़ने में हमारी मदद करते हैं जबकि लाल रक्त कोशिकाएं हमारे पूरे शरीर को ऑक्सीजन प्रदान करती है। प्लेटलेट्स रिसाव को रोकने के लिए रक्त का थक्का बनाते हैं। बोन मैरो स्टेम कोशिकाओं को शरीर की जरूरत के अनुसार ही अलग अलग प्रकार की कोशिकाओं को विकसित करते हैं। कई बीमारियों में बोन मैरो ट्रासप्लाट ब्लड कैंसर के मरीजों के लिए एक वरदान है।

मौके पर इंदिरा गाधी आयुर्विज्ञान सस्थान (आइजीआइएमएस) के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार सिन्हा ने कहा कि जल्द ही सस्थान में बोन मैरो प्रत्यारोपण शुरू होने वाला है, इसके लिए तैयारी जोर-शोर से चल रही है। इस अवसर पर न्यू गार्डिनर हॉस्पिटल के हीमोफीलिया एव थैलीसीमिया रोग विशेषज्ञ डॉ. सुभाष चद्र झा ने कहा कि सूबे में हीमोफीलिया के मरीजों की सख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन जिस तरह मरीजों की सख्या बढ़ रही है, उस अनुपात में फैक्टर आठ मरीजों को नहीं मिल रहा है, जिससे उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। डॉ. अरविद कुमार ने कहा कि सूबे में रक्त सबधी बीमारियों के इलाज के लिए के शोध पर जोर देने की जरूरत है। जब तक शोध कर नई तकनीक की खोज नहीं की जाएगी। मरीजों का भला नहीं होने वाला है। इस अवसर पर डॉ. आरएन टैगोर ने कहा कि सूबे में रक्त सबधी बीमारिया जिस तरह से पांव पसार रही हैं, उन पर नियत्रण के लिए व्यापक कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि रक्त हमारे शरीर का प्रमुख संवाहक है। इसमें किसी प्रकार की कमी से स्वास्थ्य प्रभावित होता है।

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