पर्यावरण प्रहरियों के प्रयास से बचेगा जीवन
पेड़-पौधे नदियां जीव-जंतु ये सब ही पर्यावरण का आधार हैं। इन सबसे ही जीवन है।
पटना। पेड़-पौधे, नदियां, जीव-जंतु ये सब ही पर्यावरण का आधार हैं। इन सबसे ही जीवन है। और जीवन को बचाने के लिए जरूरी है कि हम पर्यावरण की रक्षा करें। राजधानी में कई ऐसे पर्यावरण प्रहरी हैं, जो तन-मन-धन से इसमें जुटे हैं। विश्व पर्यावरण दिवस पर ऐसे ही छह पर्यावरण प्रहरी पर यह विशेष रिपोर्ट।
.................... दूषित पानी को लेकर गांवों में काम करेंगे प्रो. बिहारी
एएन कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और पर्यावरणविद् प्रो. डॉ. बिहारी सिंह सेवानिवृत होने के बाद लगातार जल संरक्षण को लेकर काम कर रहे हैं। नदियों में प्रवाहित किए जाने वाले फूलों और पूजन सामग्री से वे जैविक खाद बनाते हैं। वर्षा जल संचय के लिए अपने घर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार किया है। उनका लक्ष्य अब गांव-गांव में लोगों को वर्षा जल संचय के लिए जागरूक करना है। वे गया और नवादा जिले के गांवों में लोगों को फ्लोरोसिस बीमारी से बचाव के लिए भी जागरूक करेंगे। इन गांवों में दूषित पानी का सेवन करने के कारण लोगों के दांत पीले होने, घुटनों के आसपास सूजन, जवानी में ही बुढ़ापे का लक्षण दिखाई पड़ने जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं। यूनिसेफ, सीएसआइआर नागपुर और आइसीएमआर जबलपुर के साथ मिलकर फ्लोरोसिस प्रभावित गांवों में हजार से अधिक सहजन के पौधे लगाने की भी तैयारी है। खर्च का बीड़ा इन संस्थाओं ने उठाया है। प्रो. बिहारी की मानें तो सहजन के पत्तों में आयरन, विटामीन सी और कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है। यह फ्लोरोसिस का असर रोकने में प्रभावी है।
.............. प्रोजेक्ट ग्रीन अंब्रेला से प्रदूषण को लॉक कर रहे सुहावन राठौर
जगदेव पथ में रहने वाले पर्यावरणविद् सुहावन राठौर प्रोजेक्ट ग्रीन अंब्रेला पर काम कर रहे हैं। उनकी छह लोगों की टीम में डुगडुग सिंह तोमर, सुनीता कुमारी, अनंत कुमार, गौरव नारायण और नीरज सिंह शामिल हैं। सुहावन अपनी टीम के साथ पटना के सरकारी कॉलेज और संस्थानों की छतों पर हरियाली लाने का काम करते हैं। पिछले वर्ष इनकी टीम ने एएन कॉलेज की छत पर ऐसा किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत वो छत पर दो हिस्सों में काम करते हैं। छत के 60 फीसद हिस्से में देसी हरी सब्जिया और 40 फीसद हिस्से में स्थानीय पौधे जैसे कॉस्टर, भृंगराज, मालती एवं चंगरी आदि लगाते हैं। ये पौधे हवा में मौजूद धूलकण, कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड के अलावे अन्य गैसों को अवशोषित करते हैं। इस प्रोजेक्ट से ना सिर्फ प्रदूषण नियंत्रण हो रहा है बल्कि सूर्य की किरणों से सीधे गर्म होने वाले छत भी ठंडी रह रही है। अगले एक साल में इनकी टीम 10 सरकारी भवन, नया और पुराना सचिवालय, इनकम टैक्स बिल्डिंग, टीपीएस कॉलेज, कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना हाईस्कूल, नियोजन भवन, पटेल भवन, पटना कॉलेज, बीएन कॉलेज की छत को हरा-भरा करने की तैयारी में है। प्रोजेक्ट की फंडिग ग्रीन सेवर एंड वेलफेयर कर रही है।
.............. दो हजार पौधे लगाएंगे रिटायर्ड फौजी संजय पांडेय
बुद्धा घाट निवासी और सेवानिवृत्त फौजी संजय पांडेय लोगों को पर्यावरण का पाठ पढ़ाने में वर्षो से लगे हैं। आर्मी की नौकरी करने के दौरान जब वह छुट्टी में घर आते तो पटना में गंगा घाट और पार्को में पौधे जरूर लगाते थे। वह बताते हैं कि कॉलेज के दिनों में पॉकेट खर्च बचाकर पौधे खरीदकर पार्क में लगा देते थे। नौकरी के दौरान जहां-जहां उनकी ड्यूटी लगी, वहां-वहां पौधे लगाकर उनकी देखभाल करते रहे। सेवानिवृत होने के बाद वर्ष 2014 से उन्होंने पौधारोपण को अभियान बना डाला। शहर के कारगिल चौक, गांधी मैदान, इनकम टैक्स गोलंबर, हाईकोर्ट मोड़, पटना जंक्शन बाहरी परिसर आदि जगहों पर अनेक पौधे लगाए। पर्यावरण प्रहरी पांडेय का अगले एक साल में शहर के विभिन्न चौक-चौराहे और सार्वजनिक एवं धार्मिक स्थलों पर दो हजार से अधिक पौधे लगाने का लक्ष्य है। वे बताते हैं कि पौधे लगाने के साथ उनकी देखभाल के लिए स्वयं एवं युवा साथियों को प्रेरित करेंगे। इस काम में होने वाले खर्च का वहन वो खुद व्यय करेंगे और कुछ निजी संस्थाओं का सहयोग लेंगे।
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तीन लाख पौधों का वितरण कराएंगे राजीव
राजीव रंजन भारती उर्फ राजू स्कूली बच्चों और ग्रामीणों के माध्यम से इस साल तीन लाख फलदार पौधे लगवाएंगे। उन्होंने पौधे लगवाने का अनूठा तरीका अपनाया है। 33 सदस्यीय मिशन हरियाली नूरसराय का चार वर्ष पहले गठन किया है। आपसी चंदा जुटाकर वे अब तक 3.35 लाख पौधे का वितरण करा चुके हैं। लॉकडाउन में थोड़ी छूट मिलने के बाद क्वारंटाइन सेंटर से निकलने वाले प्रवासियों को फलदार पौधे उपलब्ध करा रहे हैं। ग्रामीण बैंकों और जनवितरण प्रणाली की दुकानों में आने वालों को मुफ्त में फलदार पौधा उपलब्ध करा रहे हैं। मुख्य रूप से अमरूद, कटहल, बेल, अनार के पौधे वे बांटते हैं। राजू का कहना है कि हरियाली में वृद्धि के साथ-साथ कुपोषण भगाने में ये पौधे काम आते हैं। कम से कम जगह में लग जाते हैं। इनके ग्रुप में डॉक्टर, इंजीनियर और व्यवसायी भी साथ दे रहे हैं।
.............. पीपल-बरगद-नीम के लिए पर्यावरण योद्धा तैयार करेंगे धर्मेद्र
पीपल-नीम-तुलसी अभियान के संचालक धमर्ेंद्र पटेल अब पीपल, बरगद और नीम जैसे पौधों को बढ़ावा देने के लिए गाव-गाव में पर्यावरण योद्धा तैयार करेंगे। वह बोधिवृक्ष के पौधे और बीज का वितरण का अभियान पहले से ही चला रहे हैं। इस सिलसिले में वह नेपाल भी जा चुके हैं। इसके बाद अब भूटान जाने की योजना बना रहे हैं। पटना के सिपारा में रहने वाले धमर्ेंद्र पटेल बताते हैं कि 1991 में पीपल-बरगद लगाने की शुरुआत अपने गाव अरवल जिला के हामिंदपुर टेर्रा से किए। इसे बढ़ावा देने के लिए भागलपुर-बाका में पदयात्रा निकालने जा रहे हैं। धमर्ेंद्र कहते हैं कि पीपल 24 घटे ऑक्सीजन देता है। पीपल के पेड़ के नीचे ही महात्मा बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किए थे। इसलिए पीपल के पौधे लगाने से महात्मा बुद्ध की गौरवशाली परंपरा और बिहार की समृद्ध विरासत को भी आगे बढ़ाया जा सकेगा। .................
गंगा के घाटों पर गुड्डू बाबा लगाएंगे एक हजार पौधे
देवनदी गंगा के पावन तट पर समाजसेवी विकास चंद्र उर्फ गुड्डू बाबा इस वर्ष एक हजार पौधे लगाएंगे। इसके लिए उन्होंने तैयारी शुरू कर दी है। गंगा बचाओ आंदोलन के संस्थापक गुड्डू बाबा का कहना है कि नदी किनारे लगे अधिकांश पुराने पेड़ धीरे-धीरे गिरते जा रहे हैं। इससे नदी की धारा से कटाव हो रहा है। साथ ही नदी किनारे की हरियाली भी खत्म होती जा रही है। पेड़ों के खत्म होने का असर पक्षियों के बसेरे पर भी पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि राजधानी के दीघा घाट, कुर्जी घाट, एलसीटी घाट, पहलवान घाट, बांस घाट, समाहरणालय घाट पर पौधे लगाए जाएंगे। .................
1974 को मनाया गया था पहला पर्यावरण दिवस -
विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1972 में की थी। पांच जून, 1974 को पहला पर्यावरण दिवस मनाया गया। पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। प्रति वर्ष पर्यावरण दिवस के लिए एक विशेष थीम रखी जाती है। इस बार की थीम 'जैव विविधता' है।