मोदी विरोधी तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद, नीतीश समेत इन नेताओं की मुलाकात से सियासत गरमाई

Bihar Politics बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (मध्य में) ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला (सबसे दाएं) से रविवार को गुरुग्राम में मुलाकात की। इस दौरान जनता दल यूनाइटेड के महासचिव डा. केसी त्यागी भी मौजूद थे। जागरण आर्काइव

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 07 Aug 2021 10:14 AM (IST) Updated:Sat, 07 Aug 2021 02:46 PM (IST)
मोदी विरोधी तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद, नीतीश समेत इन नेताओं की मुलाकात से सियासत गरमाई
नीतीश कुमार की सक्रियता विरोधियों को भाने लगी है और साथी भाजपा को असहज कर रही है।

पटना, आलोक मिश्र। इधर मेल-मुलाकातों का सिलसिला तेज है। सामान्य सी दिखने वाली सियासी चोले में लिपटी मुलाकातें। मोदी विरोधी तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे ओमप्रकाश चौटाला से नीतीश कुमार की मुलाकात। लालू की मुलाकात मुलायम और शरद यादव से। मोदी और योगी से ‘हम’ के संतोष मांझी की मुलाकात। सब बेहद सामान्य सी मुलाकातें, लेकिन हर मुलाकात के अपने सियासी मायने।

बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव बेहद प्रासंगिक हैं। दोस्त और दुश्मन दोनों के लिए जरूरी हैं लालू। लालू का साथ और लालू के डर के बीच बंटी है बिहार की राजनीति। पिछले विधानसभा चुनाव में जेल में रहते हुए भी लालू एनडीए के हर मंच पर हाजिर रहे। विकास का मुद्दा हवा था, लालू का जंगलराज एनडीए का हथियार था। अब जब से जमानत पर बाहर आए हैं लालू, भाजपा के कई नेता केवल उन्हीं के विरोध में बयानबाजी कर अपनी राजनीति चमकाए हैं। और लालू हैं कि उनके लिए भी राजनीति ही दवा है। जब भीतर थे तो स्वास्थ्य काफी खराब था। बाहर आए तो बोलते नहीं बन रहा था। एक-दो बार कार्यकर्ताओं व नेताओं को संबोधित किया तो जबान और शरीर दोनों ही साथ देते नहीं दिख रहे थे। लेकिन इन दिनों हर मुलाकात के बाद उनमें निखार आता दिख रहा है। पहले मुलायम के घर और उसके बाद शरद यादव के घर जाकर हुई उनकी मुलाकातों ने उनके शरीर में ही नहीं बिहार की राजनीति में भी रंग भर दिया है। भाजपाई इन मुलाकातों में राजनीति देख रहे हैं और उनकी जमानत रद करने की बात करने लगे हैं। जबकि लालू समर्थक मुलाकातों को सामान्य बता रहे हैं।

इधर नीतीश कुमार की सक्रियता विरोधियों को भाने लगी है और साथी भाजपा को असहज कर रही है। जाति आधारित जनगणना का मुद्दा दोनों के बीच फांस बनता दिखाई दे रहा है। विधानमंडल से दो बार पारित इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई के मूड में दिख रहे हैं नीतीश। वो इस मुद्दे पर समर्थन बटोरने के लिए निकलने वाले हैं। उन्होंने मिलने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर समय भी मांगा है। उन्होंने स्थानीय भाजपा से भी कहा है कि वह भी साथ चले। इस मुद्दे पर भाजपा से असहमत नीतीश मोदी के खिलाफ तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटे ओमप्रकाश चौटाला से गुरुग्राम जाकर मिल आए। मुलाकात हाल-चाल लेने वाली बताई गई, लेकिन राजनीतिक गलियारे में तरह-तरह की हवा फैला गई। भाजपा और सशंकित हो गई। सबकुछ सहज दिखने वाले हालात के भीतर कुछ-कुछ असहज सा दिखने लगा है। इधर नीतीश का जनता दरबार और जनता के बीच भ्रमण भी चौंकाए है। विरोधी लालू के सुर भी नीतीश के प्रति नरम हैं और तेजस्वी के तेवर भी। कुल मिलाकर विरोधी नरम हैं और सहयोगी सशंकित।

भाजपा व जदयू के अलावा सरकार के अन्य सहयोगी हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) व वीआइपी (विकासशील इंसान पार्टी) भी चुपचाप नहीं बैठी हैं। दोनों की निगाहें उत्तर प्रदेश पर टिकी हैं और दोनों भाजपा कोटे से सीटें हासिल करने की जुगत में हैं। वीआइपी वहां फूलन देवी के सहारे जमीन तैयार करने में जुटी है। योगी सरकार की सख्ती की वजह से वहां 18 मूर्तियां लगाने की उसकी कोशिश नाकाम रही तो अब वो 50 हजार मूíतयां कार्यकर्ताओं और समर्थकों के घर में लगाने की तैयारी में है।

स्वाभाविक है कि इसमें सरकार से टकराव बढ़ेगा और वीआइपी इसी विरोध के बूते अपना वोट बैंक लामबंद करना चाहती है। इस उम्मीद के साथ कि मजबूत वोटबैंक अभी का विरोध खत्म करने में सहायक होगा। अकेले लड़ने पर वह वहां 165 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा किए है। जबकि इसके उलट हम सीधे योगी के सहायक बनकर उतरने की कोशिश में है। अभी हम के युवराज यानी जीतनराम मांझी के पुत्र और प्रदेश सरकार में मंत्री संतोष मांझी ने योगी से मुलाकात की उसके बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें 40 मिनट का समय देकर तमाम संभावनाओं को बल दे दिया। संतोष मांझी की इन मुलाकातों ने न केवल उनका राजनीतिक कद बढ़ाया, बल्कि यूपी में हिस्सेदारी की आस भी। अब देखना है कि ये मुलाकातें भविष्य में कोई गुल खिलाती हैं या सामान्य सी होकर गुम हो जाती हैं।

[स्थानीय संपादक, बिहार]

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