बिहार: गठबंधन की राजनीति में टिकटों की जोड़तोड़ शुरू, अटकीं उम्मीदवारों की सांसें

बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दलों में टिकटों की मारामारी शुरू है। इसे लेकर जोड़तोड़ व कयासबाजी भी जारी है। क्‍या है मामला, जानिए इस खबर में।

By Amit AlokEdited By: Publish:Sun, 30 Sep 2018 10:25 AM (IST) Updated:Sun, 30 Sep 2018 09:39 PM (IST)
बिहार: गठबंधन की राजनीति में टिकटों की जोड़तोड़ शुरू, अटकीं उम्मीदवारों की सांसें
बिहार: गठबंधन की राजनीति में टिकटों की जोड़तोड़ शुरू, अटकीं उम्मीदवारों की सांसें

पटना [अरुण अशेष]। गठबंधन की राजनीति के चलते 'दलगत भावना' से ऊपर उठे उम्मीदवारों की सांसें अटकी हुईं हैं। बेचारे तय नहीं कर पा रहे हैं कि किधर जाएं। इस स्थिति ने उनकी दिनचर्या खराब कर दी है। सुबह एनडीए तो शाम यूपीए नेता के दरबार की हाजिरी। डर यह भी कि कोई चुगलखोर न पीछे पड़ जाए।

कभी-कभी हो रहा धोखा

किसी-किसी मामले में धोखा हो भी जा रहा है। शाहाबाद के एक पूर्व विधायक  के साथ धोखा हुआ। एक दिन पहले राजद नेता तेजस्वी यादव से मिले थे। बातचीत से तसल्ली नहीं हुई। सो, अगले दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने पहुंच गए। एनडीए में मुराद पूरी होगी या नहीं, पता नहीं, लेकिन यूपीए से उनका पत्ता साफ हो गया है। ये पूर्व विधायक पहली बार लोकसभा चुनाव लडऩा चाह रहेे हैं।

अवसर पाने वाले भी बेचैन

बेचैनी उनमें भी कम नहीं है, जिन्हें चुनाव लडऩे का अवसर मिला है। लेकिन, अबकी टिकट की गारंटी नहीं हो पा रही है। तिरहुत से आने वाले एक पूर्व विधायक को जदयू ने लोकसभा उम्मीदवार बनाया था। अब जदयू-भाजपा के बीच दोस्ती हो गई है। भाजपा की वह जीती हुई सीट है। बेचारे टिकट के लिए कांग्रेेस और राजद के दरबार में बिना नागा हाजिरी लगा रहे हैं। पिछली बार यूपीए गठबंधन में उनकी सीट कांग्रेस के खाते में थी। उस समय के कांग्रेस उम्मीदवार इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे।

सीटिंग सांसदों पर भी आफत

दावेदारों की बेचैनी बेवजह नहीं है। 2014 में ऐन वक्त पर दलबदल करने वालों को पूरा फायदा हुआ था। जदयू 38 सीट पर लड़ा था। 18 उम्मीदवार 'ऑन स्पॉट' टिकट पा गए थे। अगले चुनाव का सीन अलग है। जदयू की सीटें गठबंधन में फंसी हुई हैं। पिछली बार लड़ाई का मजा ले चुके उम्मीदवार इधर-उधर देख रहे हैं।

भाजपा में अलग तरह का तनाव है। 2014 में 30 उम्मीदवार लड़े थे। उम्मीदवारों की किल्ल्त थी। रामकृपाल यादव, छेदी पासवान और सुशील कुमार सिंह जैसे उम्मीदवारों को आयात किया गया था। ताजा हाल यह है कि सीटिंग सांसदों पर भी आफत है। भाजपा के दो सांसद- शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति झा आजाद यूपीए के उम्मीदवारों की धड़कनें बढ़ाए हुए हैं।

लोजपा को सात सीटें मिली थी। पांच नए लोगों को अवसर मिल गया। यहां भी सीटिंग पर आफत है। फिर भी नए उम्मीदवार लोजपा की ओर हसरत भरी निगाहों से देखते हैं।

निराश उम्‍मीदवारों की कांग्रेस पर नजर

भाजपा और जदयू से निराश उम्मीदवारों को कांग्रेस में भी आशा की किरण नजर आ रही है। पिछले चुनाव में राजद ने कांग्रेस के प्रति उदारता दिखाई थी। उसे दर्जन भर सीटें मिलीं। उम्मीदवारों की खोज हुई तो पता चला कि पार्टी में इतनी सीटों के लिए मजबूत उम्मीदवार तो हैं ही नहीं। खैर, उस मुश्किल दौर में राजद का साथ मिला।

खूब पक रहे खयाली पुलाव

राजद ने अपने दो उम्मीदवार भी दे दिए-पूर्णमासी राम और आशीष रंजन सिन्हा। खयाली पुलाव पक रहे हैं। रालोसपा अगर यूपीए में शामिल नहीं होती है तो कांग्रेस को फिर दर्जन भर सीटें मिल जाएंगी। तारिक अनवर शामिल होंगे तो पार्टी का जनाधार  बढ़ेगा। लिहाजा, कांग्रेस से भी कुछ उम्मीदवारों को तसल्ली मिल रही है।

वाम दलों की हालत में सुधार नहीं हुआ है। पहले की तरह इस समय भी उसकी ओर बाहरी उम्मीदवार ध्यान नहीं दे रहे हैं। वैसे भी वाम दलों  में बाहरी उम्मीदवार की पैठ नहीं ही हो पाती है।

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