सभ्यता के विकास में प्रकृति से दूर हो गया मनुष्य

राष्ट्रीय नाट्य समारोह रंग जलसा के दूसरे दिन प्रेमचंद रंगशाला में जमा रंग

By JagranEdited By: Publish:Mon, 16 Sep 2019 11:02 PM (IST) Updated:Wed, 18 Sep 2019 06:27 AM (IST)
सभ्यता के विकास में प्रकृति से दूर हो गया मनुष्य
सभ्यता के विकास में प्रकृति से दूर हो गया मनुष्य

पटना। राष्ट्रीय नाट्य समारोह रंग जलसा के दूसरे दिन प्रेमचंद रंगशाला में दी आर्ट एंड कल्चरल सोसाइटी द्वारा प्रवीण कुमार गुंजन के निर्देशन में सुधांशु फिरदौस लिखित नाटक कथा का मंचन हुआ। प्रेमचंद रंगशाला परिसर में रंग कार्यक्रम के अंतर्गत दो नाटकों की प्रस्तुति हुई। इसमें पुण्यार्क कला निकेतन, पंडारक द्वारा विजय आनंद के निर्देशन में 'वो कहते हैं..' और इप्टा पटना द्वारा तनवीर अख्तर के निर्देशन में 'स्वप्ना दु: स्वप्ना..' का प्रदर्शन किया गया। जबसे मनुष्य का इतिहास है, कथा का भी इतिहास है। मानव सभ्यता के आरंभ से ही कथा सुनने-सुनाने पर बहुत जोर रहा है। इसलिए कथा वाचन की जाने कितनी शक्तियां विकसित हुई हैं। इस देश में कथा सुनाने वालों की एक लंबी परंपरा रही है। जो गांव-गांव, शहर-शहर घूम-घूम कर सिर्फ सिर्फ कथा कर ही अपना जीवन चलाते रहे हैं। नाटक कथा ऐसे ही कथा वाचकों की आपसी बातचीत से संभव हुई है। इसमें काथिक (कथा वाचक) कई कहानियों के माध्यम से प्रकृति और प्रेम को बचाने की बात करते हैं। काथिकों को लगता है कि संसार को बचाये रखने के लिए प्रेम और पानी को बचाने की जरूरत है। आज हर तरफ प्रेम और पानी दोनों की अकाल पड़ गया है। प्रेम और पानी मनुष्य के लिए दिन प्रति दिन असंभव होते जा रहे हैं। मनुष्य सभ्यता के विकास में देखते-देखते आज ऐसी जगह पहुंच गया है जहां प्रकृति उससे बहुत दूर हो गई है। नाटक स्वप्ना दु:स्वपना में दिखाया गया है कि दिनोदिन बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिग ने पृथ्वी पर मानव के सार्वभौमिक विकास की कल्पना को लगभग असंभव बना दिया है। अंधाधुंध प्रगति की चाह और लालच के वशीभूत होकर पर्यावरण की बर्बादी और पेड़ों की कटाई ने वातावरण के संतुलन में बट्टा लगा दिया है।

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