Lok Sabha Election Results: राजनीति के मुसाफिर हैं जीतनराम मांझी, जीत-हार पर टिका भविष्य
Lok Sabha Election Results बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का भविष्य इस बार का लोकसभा चुनाव परिणाम तय करेगा। क्या है मामला जानिए इस खबर में।
पटना [सुनील राज]। लोकसभा चुनाव में बिहार की तीन सीटों से पर किस्मत आजमाने वाले हम सेक्युलर के प्रमुख जीतन राम मांझी की आशा के अनुकूल यदि परिणाम नहीं आए तो उनकी मुश्किलें बढऩा तय है। मांझी की मुश्किलों की जड़ में इस बार कोई कोई सगा संबंधी या मित्र सखा नहीं बल्कि चुनाव आयोग के नियम हैं। नियमों के मुताबिक मांझी की पार्टी को लोकसभा की कम से कम एक सीट पर जीत दर्ज करानी होगी अन्यथा 'हम' को क्षेत्रीय दल दल की मान्यता भी नहीं मिल पाएगी।
चुनाव आयोग के नियमों की माने तो किसी राजनीतिक दल को राज्यस्तरीय दल की मान्यता तभी मिल सकती है जबकि उसके पास विधानसभा की कुल सीटों का तीन फीसद या कम से कम तीन सीटें हों। या फिर संबंधित पार्टी को चुनाव में कम कम से छह प्रतिशत वोट मिले हो या उस दल ने एक लोकसभा की एक या दो और विधानसभा की दो सीटें जीती हो।
मांझी को महागठबंधन ने तीन सीटों पर किस्मत आजमाने का मौका दिया। गया, औरंगाबाद और नालंदा। इससे पहले सीटों को लेकर मांझी की पार्टी को बड़ी उठा-पटक से गुजरना पड़ा। जिन लोगों को साथ लेकर मांझी ने बिहार की राजनीति में अलग पहचान के लिए अपना राजनीतिक संगठन खड़ा किया, उनके वही मित्र और खास लोग उनके फैसलों से नाराज होकर उनका साथ छोड़ते गए।
पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, वृषिण पटेल, महाचंद्र प्रसाद सिंह, अजीत कुमार जैसे कई नाम हैं। ठीक चुनाव के पहले भी मांझी की पार्टी हम को बड़ी टूट का सामना करना पड़ा। इस दौरान मांझी पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने महागठबंधन के आगे हथियार डाल दिए और कम सीटें मिलने के बाद भी मांझी ने बगैर किसी विरोध के उन्हें स्वीकार कर लिया।
गठबंधन में मिली तीन सीट में से गया से मांझी ने खुद किस्मत आजमाई जबकि औरंगाबाद से उपेंद्र प्रसाद और नालंदा से अशोक आजाद चंद्रवंशी को टिकट थमाया गया। टिकट देने के मामले में भी मांझी पर आरोप लगे कि उन्होंने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को गया जिले की पार्टी बना दिया है।
बहरहाल दो दिन बाद परिणाम आएंगे। परिणाम ही यह तय करेंगे कि मांझी की आगे की रणनीति क्या होगी। लेकिन हम सेक्युलर के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान दावा करते हैं कि चुनाव परिणाम आने के बाद हमें क्षेत्रीय दल की मान्यता मिलना तय है। वे कहते हैं यह चुनाव हमारे लिए अस्तित्व की लड़ाई थी। हमने चुनाव लड़ा भी ठीक उसी अंदाज में और हम तीनों सीट पर विजयी होकर संसद तक तो जाएंगे ही क्षेत्रीय दल की मान्यता भी हासिल करेंगे।
चुनाव आयोग के नियमों की माने तो किसी राजनीतिक दल को राज्यस्तरीय दल की मान्यता तभी मिल सकती है जबकि उसके पास विधानसभा की कुल सीटों का तीन फीसद या कम से कम तीन सीटें हों। या फिर संबंधित पार्टी को चुनाव में कम कम से छह प्रतिशत वोट मिले हो या उस दल ने एक लोकसभा की एक या दो और विधानसभा की दो सीटें जीती हो।
मांझी को महागठबंधन ने तीन सीटों पर किस्मत आजमाने का मौका दिया। गया, औरंगाबाद और नालंदा। इससे पहले सीटों को लेकर मांझी की पार्टी को बड़ी उठा-पटक से गुजरना पड़ा। जिन लोगों को साथ लेकर मांझी ने बिहार की राजनीति में अलग पहचान के लिए अपना राजनीतिक संगठन खड़ा किया, उनके वही मित्र और खास लोग उनके फैसलों से नाराज होकर उनका साथ छोड़ते गए।
पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, वृषिण पटेल, महाचंद्र प्रसाद सिंह, अजीत कुमार जैसे कई नाम हैं। ठीक चुनाव के पहले भी मांझी की पार्टी हम को बड़ी टूट का सामना करना पड़ा। इस दौरान मांझी पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने महागठबंधन के आगे हथियार डाल दिए और कम सीटें मिलने के बाद भी मांझी ने बगैर किसी विरोध के उन्हें स्वीकार कर लिया।
गठबंधन में मिली तीन सीट में से गया से मांझी ने खुद किस्मत आजमाई जबकि औरंगाबाद से उपेंद्र प्रसाद और नालंदा से अशोक आजाद चंद्रवंशी को टिकट थमाया गया। टिकट देने के मामले में भी मांझी पर आरोप लगे कि उन्होंने हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को गया जिले की पार्टी बना दिया है।
बहरहाल दो दिन बाद परिणाम आएंगे। परिणाम ही यह तय करेंगे कि मांझी की आगे की रणनीति क्या होगी। लेकिन हम सेक्युलर के राष्ट्रीय प्रवक्ता दानिश रिजवान दावा करते हैं कि चुनाव परिणाम आने के बाद हमें क्षेत्रीय दल की मान्यता मिलना तय है। वे कहते हैं यह चुनाव हमारे लिए अस्तित्व की लड़ाई थी। हमने चुनाव लड़ा भी ठीक उसी अंदाज में और हम तीनों सीट पर विजयी होकर संसद तक तो जाएंगे ही क्षेत्रीय दल की मान्यता भी हासिल करेंगे।
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