Bihar politics : लालू यादव की RJD हो या नीतीश की JDU, मलाई मार ले गए दलबदलू नेता; ताकते रह गए कार्यकर्ता

Lok Sabha Elections 2024 लोकसभा चुनाव में एनडीए में उम्मीदवारों को टिकट देने का दौर पूरा हो चुका है। महागठबंधन में टिकट बंटवारे का अंतिम अध्याय चल रहा है। अब तक जो सबसे बड़ी बात जनता-जर्नादन के सामने आई है वह है-पांच वर्ष तक राजनीतिक दलों के झोले और झंडे ढोने के बावजूद कार्यकर्ताओं में इतना दमखम नहीं है कि वे लोकसभा का चुनाव लड़ सकें।

By Dina Nath Sahani Edited By: Mohit Tripathi Publish:Wed, 03 Apr 2024 06:38 PM (IST) Updated:Wed, 03 Apr 2024 06:45 PM (IST)
Bihar politics : लालू यादव की RJD हो या नीतीश की JDU, मलाई मार ले गए दलबदलू नेता; ताकते रह गए कार्यकर्ता
हर दल में पुराने चेहरों व आयातित नेताओं पर लगाये जा रहे दांव

दीनानाथ साहनी, पटना। Bihar Political News in Hindi लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर प्राय: सभी दलों के बीच भीड़ जुटाने की प्रतिस्पर्धा चलती है। इसमें कार्यकर्ताओं की बड़ी भूमिका रहती है, लेकिन जब चुनाव आया और उम्मीदवारी का प्रश्न उठा जब, तब पुराने नेताओं के चेहरों और आयातित नेताओं पर ही दांव लगाया जाता है।

जदयू के आयातित नेता

सबसे पहले बात जदयू की करते हैं। एनडीए में जदयू को सोलह सीटें मिली हैं। जदयू ने 13 सीटों पर पुराने चेहरों यानी निवर्तमान सांसदों पर ही भरोसा जताया है। केवल तीन लोकसभा क्षेत्रों में जदयू ने अपने प्रत्याशी बदले हैं। सिवान से कविता सिंह की जगह अब विजयलक्ष्मी पर दांव खेला है, इनका जदयू से वास्ता नहीं के बराबर रहा है।

विजयलक्ष्मी जीरादेई के पूर्व विधायक रमेश सिंह कुशवाहा की पत्नी हैं। वहीं सीतामढ़ी से सुनील कुमार पिंटू की जगह देवेश चंद्र ठाकुर को उम्मीदवार बनाया गया है।

किशनगंज से इस बार मुजाहिद आलम को जदयू ने टिकट दिया है। वहीं सीट शेयरिंग के तहत जदयू के खाते में आई शिवहर से लवली आनंद को जदयू के टिकट दिया है। टिकट हासिल करने से सप्ताह भर पहले तक वह राजद में थीं।

क्या कहते हैं कार्यकर्ता

पिछले पचीस वर्षों से जदयू से जुड़े और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके रहे पप्पू सिंह निषाद कहते हैं,पार्टी में लंबे समय से कार्य रहे हैं, लेकिन अब तक चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला।

भाजपा ने किसपर जताया भरोसा?

देखा जाए तो सत्रह सीट पर चुनाव लड़ रही भाजपा ने पुराने चेहरों पर ही विश्वास जताया है। हालांकि उसने भी बक्सर में केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, सासाराम में छेदी पासवान और मुजफ्फरपुर में सांसद अजय निषाद का टिकट काट दिया है।

भाजपा ने मिथिलेश तिवारी को बक्सर और शिवेश राम को सासाराम से उम्मीदवार बनाया है। जबकि राजभूषण निषाद को मुजफ्फरपुर से टिकट दिया है। 2019 के चुनाव में राजभूषण निषाद भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़े थे।

चिराग की पार्टी का क्या है हाल?

जमुई सीट छोड़ हाजीपुर से चुनाव लड़ने जा रहे चिराग पासवान ने पार्टी के किसी स्थानीय कार्यकर्ता पर भरोसा नहीं किया और जमुई से अपने बहनोई अरुण भारती को उम्मीदवार बनाना ज्यादा मुनासिब समझा।

इसी तरह लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के समय से ही पार्टी और परिवार की सेवा कर रहे संजय पासवान का टिकट भी कट गया।

चिराग ने समस्तीपुर से शांभवी चौधरी को टिकट देकर ज्यादा भरोसा जताया। शांभवी मंत्री अशोक चौधरी की बेटी है। वह संसदीय चुनाव में ही नहीं, बल्कि राजनीति में भी पहली बार उतरने जा रही हैं।

इसी तरह चिराग को खगड़िया में किसी स्थानीय कार्यकर्ता को चुनाव लड़ने लायक नहीं समझा और भागलपुर के स्वर्ण कारोबारी राजेश वर्मा को वहां से उम्मीदवार बना दिया है।

वैशाली से वीणा देवी को टिकट देने में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में राजपुत मतदाताओं का ध्यान रखा गया। इस तरह चुनावी सभाओं में भीड़ जुटाने और पांच साल तक चुनाव लड़ने हेतु खून-पसीना बहाने वाले कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई।

राजद-कांग्रेस में भी कार्यकर्ताओं का हाल है बुरा

राजद और कांग्रेस में भी कार्यकर्ताओं को टिकट देने में अनदेखी हो रही है। राजद ने जदयू से आए अभय कुशवाहा को औरंगाबाद और बीमा भारती को पूर्णिया से उम्मीदवार बनाया है।

अपनी पार्टी को कांग्रेस में विलय कर चुके पप्पू यादव भी उम्मीदवारी की रेस में हैं। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए अजय निषाद मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ना भी तय है।

कांग्रेस के सामने यह संकट भी है कि जरूरत के अनुसार, आर्थिक रूप से मजबूत उम्मीदवार उसके पास नहीं हैं। इन्हें दूसरे दलों से लाया जाए। कोई जरूरी नहीं है कि राजनीतिक कार्यकर्ता ही उम्मीदवार बनें।

बीमा भारती के मामले में यह दिलचस्प रहा कि एक हाथ से सदस्यता ली और उसी हाथ से कुछ देर बाद पार्टी का सिंबल ले लिया कमोवेश यह नजारा आने वाले कुछ दिनों में और दिख जाए तो हैरानी नहीं हाे चाहिए।

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