पिता के वचन की मान रख करते हैं वन गमन
राजा दशरथ भगवान श्रीराम का राजतिलक की घोषणा करते हैं।
राजा दशरथ भगवान श्रीराम का राजतिलक की घोषणा करते हैं। जिसके कारण सारे अयोध्या में खुशी की लहर दौड़ जाती है। लेकिन इस खुशी से देवतागण दुखी और चिंतित हो जाते हैं। क्योंकि देवताओं को डर होता है कि अगर भगवान राम का राजतिलक होगा तो राक्षसों का संहार कौन करेगा। भगवान राम की लीलाओं से जुड़ी कहानी मंच पर सोमवार को जीवंत हो रही थी। कुछ ऐसा ही नजारा सोमवार को नागाबाबा ठाकुरबाड़ी परिसर में देखने को मिला। मौका था श्री दशहरा केमटी ट्रस्ट पटना एवं श्री रामलीला महोत्सव एवं रावण महोत्सव के बैनर तले रामलीला के मंचन का। छठे दिन भगवान श्रीराम वनवास एवं निषाद भेंट आदि प्रसंगों को पेश कर कलाकारों ने दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।
भगवान राम राजसुख को लोभ छोड़कर राक्षसों का संहार करने वन की ओर से प्रस्थान करते हैं। भगवान राम के राजतिलक होने से पूर्व देवताओं ने माता सरस्वती की आराधना की। माता सरस्वती ने अयोध्या राजमहल की दासी मंथरा की मति द्वारा राम वनवास की कहानी बनती है। दासी मंथरा ने रानी केकैयी को अपने पुत्र को राज सिंहासन प्राप्त कराने पर बल देते हुए राजा दशरथ से अपने तीन वचन पूरे करने को कहती है। माता केकैयी राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत को राजतिलक एवं प्रभु श्रीराम को चौदह वर्ष की वनवास का वरदान मांगती है। राजा दशरथ विवश होकर अपने आंखों के तारे प्रभु श्री राम को वन गमन का आदेश देता है। पिता की आज्ञा को सिर आंखों पर रखते हुए प्रभु श्रीराम अयोध्या छोड़ वन की ओर प्रस्थान करते हैं। प्रभु राम के वन गमन से पूरी अयोध्या में गम का माहौल छा जाता है। प्रभु राम ने वन गमन के दौरान निषाद से भेंट करते हैं। महोत्सव के दौरान पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार, विधान पार्षद रीना यादव, विधायक संजीव चौरसिया, अरुण कुमार, संयोजक मुकेश कुमार नंदन, सरदार जगजीवन सिंह उर्फ बब्लू, विकास सुरेका, राजेश बजाज आदि मौजूद थे।