CM नीतीश की शराबबंदी को परवान चढ़ा रहे ये IPS, कहा- यह मेरा आध्यात्मिक आंदोलन

बिहार के चर्चित आइपीएस अधिकारी गुप्‍तेश्‍वर पांडेय के अनुसार शराबबंदी व नशाबंदी उनके लिए आध्यात्मिक आंदोलन हैं। दैनिक जागरण से खास बातचीत में उन्‍होंने और भी कई बातें कहीं।

By Amit AlokEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 07:29 PM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 07:29 PM (IST)
CM नीतीश की शराबबंदी को परवान चढ़ा रहे ये IPS, कहा- यह मेरा आध्यात्मिक आंदोलन
CM नीतीश की शराबबंदी को परवान चढ़ा रहे ये IPS, कहा- यह मेरा आध्यात्मिक आंदोलन

पटना [रमण शुक्ला]। बीएमपी के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय बिहार सरकार के संकट मोचक अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं।  वे इन दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शराबबंदी और नशाबंदी अभियान को रैलियों, सभाओं और कम्युनिटी पुलिसिंग के जरिए परवान चढ़ाने में जुटे हैं। पिछले दिनों गुजरात की स्वयंसेवी संस्था ने पांडेय को शराबबंदी अभियान में देश का ब्रांड एंबेसेडर घोषित किया। शराबबंदी और नशाबंदी अभियान से जुडऩे की प्रेरणा गुप्तेश्वर पांडेय को कहां मिली जैसी विभिन्न पहलुओं पर दैनिक जागरण ने उनसे बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश...

सवाल : आइपीएस बनने की प्रेरणा कैसे मिली, सिविल सर्विसेज परीक्षा कब उत्तीर्ण किए?

जवाब : दीनानाथ पांडेय मेरे मित्र हैं। वर्तमान में गुजरात कैडर के आइएएस हैं। उनसे प्रभावित होकर ही मैंने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी। संस्कृत का छात्र था। संस्कृत से बीए किया और पहले ही प्रयास में भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) उत्तीर्ण की, लेकिन राजस्व सेवा में रुचि नहीं होने की वजह से एक प्रयास और किया। दूसरे प्रयास में आइपीएस में सफल रहा है। 1987 में बिहार कैडर मिल गया। महत्वपूर्ण यह रहा कि उस वर्ष सिविल सर्विसेज में पांच मौके दिए गए थे, लेकिन मैंने आइपीएस की नौकरी शुरू कर दी। क्योंकि बिहार से मुझे प्यार था। आगे सब आपके सामने है।

सवाल : नशाबंदी और शराबबंदी अभियान को लेकर इन दिनों आप काफी चर्चा में हैं। एक स्वयंसेवी संस्था ने आपको ब्रांड एंबेसेडर बनाने का ऐलान किया है। सीएम ने कोई विशेष जिम्मेदारी सौंपी है क्या?

जवाब : देखिए, सीधे तौर पर नशाबंदी या शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुझे कोई खास आदेश या निर्देश नहीं दिया है। बिहार में शराबबंदी और नशाबंदी को लेकर जो आदेश अन्य सरकारी कर्मियों के लिए है वहीं आदेश मेरे लिए है। हां, अपनी-अपनी रुचि की बात है। मुझे लगा कि मैं नशाबंदी और शराबबंदी अभियान में कुछ अलग कर सकता हूं। इसी उद्देश्य से कुछ विशेष करने का प्रयास कर रहा हूं।

जहां तक स्वयंसेवी संस्था द्वारा ब्रांड एंबेसेडर बनाने की बात है तो गुजरात के स्वयंसेवी संस्था यूथ नेशन ने हमे इस लायक समझा। यह हमारा सौभाग्य है। सीएम से अभी तक शराबबंदी या नशाबंदी अभियान को लेकर हमारी कोई बातचीत नहीं हुई है। हमारे लिए यह गर्व की बात है कि बिहार सैन्य पुलिस के अभियान को गुजरात में नशा विरोधी मुहिम चला रही एक संस्था का भी साथ मिल गया है। हमारी कोशिश है कि अभियान को बिहार से बाहर पहुंचाया जाए। अभी तक मैंने 50 सभाएं की हैं। 500 करने का लक्ष्य है। मुहिम में जनता का स्नेह, आशीर्वाद, प्यार और सहयोग मिल रहा है।

सवाल : नशाबंदी अभियान को सफल बनाने के लिए आप अलग क्या कर रहे हैं?

जवाब : नवंबर के अंतिम अथवा दिसंबर के प्रथम सप्ताह में रैली निकालने की योजना है। कोशिश है कि रैली में 1100 मीटर की साड़ी पर नशा विरोधी स्लोगन लिखवाया जाए। साड़ी पर चित्रकारी भी होगी। साड़ी को करीब ढाई हजार लोग लेकर चलेंगे। नशा विरोधी अभियान का आध्यात्मिक पहलू भी है। रोजाना आठ घंटे की पूजा से अधिक पुण्य का काम है नशाबंदी पर अभियान चलाना है।

सवाल : बतौर आइपीएस आपकी अब तक की सबसे बड़ी तीन उपलब्धियां?

जवाब : दस से ज्यादा जिलों में एसपी रहा लेकिन बेगूसराय, जहानाबाद और नालंदा जिले के कार्यकाल को सबसे सफल मानता हूं। बेगूसराय में कम्यूनिटी पुलिसिंग तो घोर नक्सल प्रभावित जहानाबाद में अमन चैन और शांति स्थापित करके नक्सलवाद पर अंकुश लगाने में कामयाब रहा। कभी लाठीचार्ज या गोली चलाने का आदेश देने की नौबत नहीं आई। पहली बार महसूस हुआ कि पुलिस की नौकरी दुनिया की सबसे अच्छी नौकरी है। यही वजह थी कि 1996 में जहानाबाद से जब मेरा तबादला हुआ तो लोगों ने हमारे तबादले का विरोध किया था।

इसी तरह का प्यार जनता ने नालंदा जिले में भी दिया। 25-26 वर्षों बाद हिंसा मुक्त मुखिया का चुनाव कराने में सफल रहा है। पुलिसिंग में सर्वाधिक काम नालंदा जिले में करने का मौका मिला। किसी जिले में सांप्रदायिक आग नहीं भड़कने दी। विधि-व्यवस्था की समस्या और सांप्रदायिक उन्माद जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी। संतोष इस बात का है कि सरकार की कसौटी पर अभी तक सफल रहा हूं।

मैं समझता हूं कि पुलिस के पद पर रह कर जो तात्कालिक राहत किसी को दी जा सकती है वह खुशी, सुकून, राहत और मदद दुनिया के किसी भी शीर्ष पद पर रहकर नहीं दी जा सकती है। 31 वर्षों के सेवाकाल में 24 वर्ष फील्ड में रहा किंतु कभी लाठीचार्ज या फायङ्क्षरग का आदेश देने की नौबत नहीं आई। दस से अधिक जिलों में एसपी रहते हुए जो स्नेह, सम्मान, प्यार और आशीर्वाद मिला वह जेहन में आज भी ताजा है।

सवाल : ऐसी कौन सी रणनीति अपनाते हैं कि सरकार के क्राइसिस मैनेजर अफसर के रूप में आपका नाम शुमार हो गया है?

जवाब : कोई विशेष रणनीति नहीं। सरकार जब-जो जिम्मेदारी सौंपती है, कोशिश रहती है कि कसौटी पर सौ फीसद खरा उतरूं। बस।

सवाल : कटिहार और औरंगाबाद समेत कई जिलों में गंभीर मौके पर आपको भेजने के पीछे कोई अहम वजह?

जवाब : सरकार पूर्व के अनुभव और कामकाज को देखते हुए जिम्मेदारी सौंपती है। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है। हां इस बात का फक्र है कि अभी तक किसी जिले में स्थिति को नियंत्रण से बाहर नहीं होने दिया। चाहे कटिहार जिले में हिंसक झड़प और तनाव का मामला हो या औरंगाबाद का। चतरा से बेगूसराय, जहानाबाद, अरवल, औरंगाबाद, हजारीबाग और नालंदा जैसे जिलों में एसपी और रांची का एसएसपी रहा। सभी जगह जनता का सहयोग मिला, जिससे अमन-चैन कायम कर सका।

विधि-व्यवस्था के मोर्चे पर कहीं कोई चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा। कई दंगा प्रभावित क्षेत्रों जैसे मोतिहारी जिले के तुरकौलिया, सुगौली, रामगढ़वा का मामला हो या सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा, छपरा, सिवान, कटिहार और वैशाली का। जब-जब सांप्रदायिक तनाव के हालात बने और स्थिति बेकाबू हुई तब-तब सरकार ने मुझे वहां की स्थिति संभालने के लिए भेजा।

सवाल : चर्चा है कि आप 2019 का लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं? कहां लड़ेंगे?

जवाब : बकवास और अफवाह है। इसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है। जीवन में मुझे कभी राजनीति नहीं करनी है। मैं शराबबंदी मुहिम में जहां-जहां जाता हूं, लोगों की भीड़ जुट जाती है। भागलपुर, बेतिया, मुजफ्फरपुर और बेगूसराय समेत बिहार में अभी तक 50 जगहों पर हमारी शराबबंदी और नशाबंदी सभाएं हो चुकी हैं। सब जगह जनता का समर्थन मिल रहा है। हर वर्ग-हर जाति के महिला, पुरुष और युवा आगे आकर अभियान को सफल बनाने में सहयोग करने का भरोसा दे रहे हैं।

गुप्‍तेश्‍वर पांडय, संक्षिप्‍त परिचय

बिहार पुलिस अकादमी एवं बिहार सैन्य पुलिस के डीजीपी, 1987 बैच के आइपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडेय का जन्म बक्सर जिले के छोटे से गांव गेरुआ में 1961 में हुआ था। बिजली, सड़क, अस्पताल और स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाओं से कटे इस गांव के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के लिए नदी-नाला पार कर दूर के गांव जाना होता था। दूसरे गांव के स्कूल में भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव था। कोई बेंच-डेस्क-कुर्सी नहीं। गुरुजी के बैठने के लिए चारपाई और छात्रों के लिए बोड़ा या जूट की टाट। पढ़ाई का माध्यम भी ठेठ भोजपुरी।

ऐसे माहौल में गुप्तेश्वर की जीवन यात्रा की शुरुआत हुई। सुविधा विहीन परिवार, समाज और गांव से होने के बावजूद गुप्तेश्वर के दिल में कुछ बड़ा करने का जज्बा था और यही कारण रहा कि तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद बिहार पुलिस के शीर्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने पटना विश्वविद्यालय में नामांकन कराया और अपनी मेधा, परिश्रम और दृढ़संकल्प के जरिए बिना किसी कोचिंग के स्वाध्याय के बल पर 1986 में आइआरएस बने। संतुष्ट नहीं हुए तो दोबारा परीक्षा दी और आइपीएस बने। बिहार में सेवा का मौका मिला। 31 साल की सेवा में गुप्तेश्वर पांडेय एएसपी, एसपी, एसएसपी, डीआइजी, आइजी, एडीजी के रूप में बिहार के 26 जिलों में काम कर चुके हैं। उन्हें कम्युनिटी पुलिसिंग के पुरोधा के रूप जाना जाता है। कम्युनिटी पुलिसिंग के जरिए ही उन्होंने 1993-94 में बेगूसराय, 1995-96 में जहानाबाद जिले को अपराध मुक्त किया था।

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