खुद झेलीं मुश्किलें तो परिवार नियोजन के लिए बन गए 'साइकिल मैन', जानें इनकी कहानी

पटना के दशरथ प्रसाद ने खुद बड़े परिवार की मुश्किलें झेलीं। उनके बाद ये परेशानी किसी और को न हो इसके लिए वो साइकिल मैन बन गए। जानें इनकी कहानी।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Wed, 12 Feb 2020 08:47 AM (IST) Updated:Wed, 12 Feb 2020 08:47 AM (IST)
खुद झेलीं मुश्किलें तो परिवार नियोजन के लिए बन गए 'साइकिल मैन', जानें इनकी कहानी
खुद झेलीं मुश्किलें तो परिवार नियोजन के लिए बन गए 'साइकिल मैन', जानें इनकी कहानी

नलिनी रंजन, पटना। जाके पांव न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई। यह दोहा पटना के साइकिल मैन दशरथ प्रसाद केसरी पर फिट बैठता है, जो 'छोटा परिवार, सुखी परिवार' का संदेश को पूरी तरह आत्मसात कर चुके हैं। उन्होंने खुद तो इन चार शब्दों के संदेश को काफी देर से समझा, लेकिन जब समझा तो इसे हर आदमी तक पहुंचाने को अपना मिशन बना लिया।

यदि परिवर्तन का जुनून सवार हो जाए तो व्यक्ति को जीवन में कोई दूसरी बात बेमानी लगती है। कुछ ऐसी ही कहानी है 24 वर्षों से परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे दशरथ की। उन्होंने इन 24 सालों में साइकिल से हजारों किलोमीटर की यात्रा की। पटना से दिल्ली तक के सफर में साइकिल पर सवार होकर 'हम दो, हमारे दो' का नारा बुलंद करने वाले दशरथ प्रसाद केसरी की नि:स्वार्थ सेवा की कहानी किसी फिल्मी किरदार से कम नहीं है। लगभग 65 वर्ष की उम्र पार कर चुके दशरथ प्रसाद आज मिसाल बन चुके हैं। उनके इस अहम योगदान को देखते हुए हाल में ही स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने तारीफ की है एवं इन्हें स्वतंत्र समाजसेवी के नाम से परिचय पत्र भी प्रदान किया है।

वर्ष 1995 से शुरू की मुहिम

पटना शहर में गुलजारबाग के नीम की भट्टी में रहने वाले दशरथ प्रसाद केसरी ने परिवार नियोजन पर अलख जगाने की शुरुआत वर्ष 1995 के अगस्त महीने से की। इस शुरुआत की एक कहानी है। दशरथ प्रसाद के छह बच्चे हैं। उन्हें अपने लंबे परिवार के दुष्परिणाम का अहसास तब हुआ जब उनका व्यवसाय अचानक किसी कारण से खत्म हो गया। पैसों की काफी तंगी हो गयी। ऐसी हालात में वह अपने परिवार के लिए मुश्किल से भोजन इकठ्ठा कर पा रहे थे। महज पांचवीं तक पढ़े दशरथ प्रसाद के लिए यह जीवन की बड़ी सीख साबित हुई। उन्होंने परिवार नियोजन एवं सीमित परिवार को लेकर लोगों को जागरूक करने का मन बना लिया। वर्ष 2010 में राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार ने उन्हें 20 हजार रुपये का किसान विकास पत्र देकर प्रोत्साहित भी किया था। दशरथ ने बताया कि कई बार उन्हें अपशब्द भी सुनने पड़े। कुछ लोगों ने उन्हें पागल तक कह डाला, लेकिन कई लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने उनकी बात सुनी और उसपर अमल भी किया।

बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली तक की यात्रा

दशरथ ने जागरुकता के लिए पटना से दिल्ली तक साइकिल से यात्रा करने की ठानी। वह उत्तरप्रदेश के वाराणसी, जौनपुर, लखनऊ, सीतामढ़ी एवं गाजियाबाद होते हुए 18 दिनों में नई दिल्ली पहुंचे। नई दिल्ली से अलीगढ़ के रास्ते दशरथ प्रसाद पटना वापस लौटे। यात्रा के दौरान उन्होंने स्कूलों, पुलिस थाना, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ आम लोगों से भी मुलाकात की। कई जगह उन्होंने अपने बड़े परिवार की परेशानियों का उदाहरण देकर भी लोगों को 'हम दो, हमारे दो' की जरूरत को मजबूती से बताया।

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