बिहार का जर्दालु आम, कतरनी धान और मगही पान हो गए खास, जानिए क्यों

बिहार का जर्दालु आम, कतरनी धान और मगही पान को जीआइ टैग मिल गया है यानि ये खांटी बिहारी हैं। इस कड़ी में आगेे अब मखाना और लीची की बारी है।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Sat, 31 Mar 2018 12:43 PM (IST) Updated:Sun, 01 Apr 2018 11:56 PM (IST)
बिहार का जर्दालु आम, कतरनी धान और मगही पान हो गए खास, जानिए क्यों
बिहार का जर्दालु आम, कतरनी धान और मगही पान हो गए खास, जानिए क्यों

पटना [राज्य ब्यूरो]। जर्दालु आम, कतरनी धान एवं मगही पान को खांटी बिहारी पहचान मिल गई है। ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल ने इन्हें बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत जीआइ टैग  (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) दिया है।  28 मार्च को इसका प्रमाणपत्र जारी कर दिया गया है। शाही लीची को भी अगले महीने तक जीआइ टैग प्रमाणपत्र मिल जाने की उम्मीद है। 

कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने बताया कि तीन उत्पादों के लिए बिहार ने 2016 में आवेदन किया था। पत्रिका ने अपने 28 नवंबर के अंक में तीनों फसलों को अद्वितीय उत्पाद मानकर प्रकाशित भी किया था। बिहार कृषि विश्वविद्यालय की पहल पर तीनों उत्पादों को पहचान दिलाने की कोशिश नौ साल बाद कामयाब हुई।

जुलाई 2008 को हुई पहली बार राज्यस्तरीय बैठक में यह प्रस्ताव आया था। ज्योग्राफिकल इंडिकेशन पत्रिका के मुताबिक जर्दालु आम उत्पादक संघ सुल्तानगंज ने 20 जून 2016 को आवेदन दिया था। तमाम पहलुओं की समीक्षा के बाद केंद्र सरकार ने उत्पादक संघ के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है।

कतरनी धान के लिए भी 20 जून 2016 को ही भागलपुर कतरनी धान उत्पादक संघ ने आवेदन दिया था। आवेदन पर मुहर लगते ही इसकी सुगंध को खास पहचान मिल गई। इसी तरह मगही पान के लिए उत्पादक कल्याण समिति देवरी (नवादा) ने आवेदन किया था। 

क्यों खास है जर्दालु 

भागलपुर में होने वाले हल्के पीले रंग का यह आम 104-106 दिनों में तैयार होता है। वजन 186-265 ग्राम तक होता है। कम रेशे वाले इस आम में शुगर की मात्रा 16.33 फीसद होती है। 

कतरनी की खासियत  

दाने छोटे और सुगंधित होते हैं। पत्तों और डंठल से भी विशेष तरह की खुशबू आती है। 155-160 दिनों में पककर तैयार होता है। पत्ते की लम्बाई 28-30 सेमी और पौधे 160-165 सेमी लंबे होते हैं। 

मगही पान  

कोमलता एवं लाजवाब स्वाद के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है मगही पान। ज्यादातर खेती नवादा, औरंगाबाद और गया जिले में होती है। पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं और आकार दिल की तरह होता है। 

इनका कहना है

राज्य के किसानों एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति एवं वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं, जिनके प्रयास से यह गौरव मिल सका। अगले महीने तक बिहार की मशहूर शाही लीची एवं मखाना को भी जीआइ टैग मिल जाएगा। 

- डॉ. प्रेम कुमार, कृषि मंत्री, बिहार

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