बिहार के IAS अधिकारी ने बचपन में देखा एक सपना, पूरा करने के लिए लगा दी जान; 40 वर्षों बाद अकेले उड़ाया एयरक्राफ्ट
Bihar IAS Officer बिहार के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी एस सिद्धार्थ ने अपने बचपन का सपना पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिए। उनका एयरक्राफ्ट उड़ाने का सपना था। बचपन में वे धातु का हवाई जहाज बनाकर उसे डोरी बांध कर चारों ओर घुमाते थे। सिद्धार्थ कहते हैं कि हवाई जहाज में अकेले बैठना और उसे उड़ाने का अनुभव व्यक्त नहीं किया जा सकता।
HighLights
- अधिकारी का बचपन से था विमान उड़ाने का सपना
- 40 वर्षों बाद अकेले उड़ाया एयरक्राफ्ट, अनुभव उत्तम
जागरण संवाददाता, पटना। बिहार के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी एस सिद्धार्थ कर्तव्यनिष्ठता और ईमानदारी के साथ सादगी के लिए जाने जाते हैं। कभी वे स्वयं सब्जी खरीदते नजर आते हैं तो कभी रिक्शा से सवारी करते हैं। अब उनको एक नई पहचान मिली है, जो कि पायलट के तौर पर है।
गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने गुरुवार को पहली बार एयरक्राफ्ट उड़ाया। यह उनके 40 वर्षों का सपना था, जिसे कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने साकार किया। सिद्धार्थ कहते हैं, पहली बार अकेले एयरक्राफ्ट उड़ाने के अनुभव को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। मेरे लिए यह सपना सच होने जैसा है।
बचपन से था विमान उड़ाने का सपना
अधिकारी बताते हैं कि बचपन में उन्होंने विमान उड़ाने का सपना देखा था। किशोरावस्था में वे मैकेनो-किट का उपयोग कर धातु के हवाई जहाज बनाते और डोरी बांध कर उसे चारों ओर घुमाते थे। इस उम्मीद में कि वह उड़ जाएगा।
उन्हें कागज का जहाज और पतंग उड़ाने का भी जुनून था। उन्होंने अतीत के एक किस्से का जिक्र करते हुए कहा कि 40 वर्ष पूर्व उन्होंने पहली बार स्कूल समूह के साथ एयर इंडिया से यात्रा की थी। उस समय की चाहत थी, जो आज पूरी हुई।
हवाई जहाज अकेले उड़ाने का अनुभव नहीं किया जा सकता व्यक्त
अधिकारी कहते हैं कि हवाई जहाज में अकेले बैठना और उसे उड़ाने का अनुभव व्यक्त नहीं किया जा सकता। जब पायलट के साथ सह-पायलट होता है तो कई चीजें आसान हो जाती हैं, क्योंकि वो कई कार्यों को संभालता है। मगर, आप अकेले जहाज उड़ा रहे हों तो विमान पर नियंत्रण रखने के साथ रेडियो ट्रांसमिशन समेत सभी बड़ी-छोटी चीजों का ध्यान रखना होता है।
यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें बहुत कुछ पढ़ना पड़ा। परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है। यह प्रक्रिया उन्हें स्कूल और कॉलेज के दिनों में वापस लेकर गई, जबकि किसी को पढ़ना, सीखना, याद रखना और दोहराना होता है, जो इस आयु में मुश्किल हो जाता है। उनका मानना है कि उम्र चाहे कुछ भी हो, सीखना कभी नहीं रुकता। लोगों से मिलने वाली शुभकामनाएं उन्हें आगे बढ़ाती रहती हैं।
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