पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बिहार के 20 संस्‍कृत कॉलेजों के प्राचार्य की नियुक्ति अवैध

पटना उच्‍च न्‍यायालय ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के प्राचार्यों को लेकर बड़ा फैसला किया है। इससे पूरे बिहार में फैले विवि से संबद्ध कॉलेज प्रभावित हुए हैं।

By Amit AlokEdited By: Publish:Tue, 24 Sep 2019 02:45 PM (IST) Updated:Tue, 24 Sep 2019 10:14 PM (IST)
पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बिहार के 20 संस्‍कृत कॉलेजों के प्राचार्य की नियुक्ति अवैध
पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बिहार के 20 संस्‍कृत कॉलेजों के प्राचार्य की नियुक्ति अवैध

पटना [जेएनएन]। पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) ने मंगलवार को दरभंगा के कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय (Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University) के 20 अंगीभूत काॅलेजों (Constituent Colleges) के प्राचार्यों (Principals) की नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया है। पटना हाइकोर्ट ने यह फैसला डॉ. रमेश झा एवं एवं प्रियंवदा कुमारी की ओर से दायर याचिका पर दिया है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अनिल कुमार उपाध्याय की कोर्ट ने यह फैसला दिया। साथ ही अगले तीन माह के दौरान फिर से नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने का भी अादेश दिया। पटना हाइकोर्ट ने नई नियुक्ति प्रक्रिया में प्रभावित प्राचार्यों को भी आवेदक बनने की अनुमति दे दी है।

तो हटाए गए अवधि का भी वेतन दिया जाएगा

पटना हाईकोर्ट ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के विभिन्न काॅलेजों में 10 वर्षों से कार्यरत 20 प्राचार्यों की नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया। हाईकोर्ट ने कुलपति को तीन महीने के भीतर नए सिरे से चयन प्रक्रिया शुरू करने को कहा है। जिन प्राचार्यों की नियुक्ति अवैध घोषित की गई है, यदि वे चाहें तो चयन प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं। ऐेसे प्राचार्य अगर सफल होते हैं तो उन्हें हटाए गए अवधि का भी वेतन दिया जाएगा। 

चयन समिति विधि सम्मत गठित नहीं होने का आरोप

यह आदेश न्यायाधीश अनिल कुमार उपाध्याय की एकलपीठ ने डॉ रमेश झा एवं प्रियंवदा कुमारी की याचिका पर विस्तृत सुनवाई करने के बाद दिया। इन दोनों अभ्यर्थियों को चयन समिति ने अयोग्य करार कर दिया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चयन समिति विधि सम्मत गठित नहीं की गई थी।

आदेश के बाद हटेंगे ये प्राचार्य 

अनिल कुमार ईश्वर, विनय कुमार सिंह, घनश्याम कुमार मिश्र, आभा कुमारी, राजेन्द्र प्रसाद चौधुर, कंचन माला पंडित, अशोक कुमार पूर्वे, रविशंकर झा, रामेश्वर राय, दिनेश्वर यादव, अशोक कुमार आजाद, मनोज कुमार, भगलू झा, प्रभास चंद्र, हरिनारायण ठाकुर, प्रेम कांत झा, अश्वनी कुमार शर्मा, जितेंद्र कुमार, सुरेश पांडेय, उमेश कुमार सिंह, शिव लोचन झा, एवं दिनेश झा। इनमें से दो प्राचार्य सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं।

विश्वविद्यालय को दिया था सुधार का मौका 

अपने आदेश में एकलपीठ ने कहा कि जिन दो याचिकाकर्ताओं को चयन समिति द्वारा गलत तरीके से अयोग्य घोषित किया गया, उन्हें नियुक्त कर लिया जाए। इसके लिए कोर्ट ने प्रतिवादियों को तीन बार मौका दिया। लेकिन विश्वविद्यालय टस से मस नहीं हुआ। कोर्ट ने महाभारत के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि पाण्डव ने पहले दुर्योधन से केवल पांच गांव की मांग की थी, लेकिन दुर्योधन कहां मानने वाला था। महाभारत हुआ। ठीक यही हाल इस मुक़दमे की सुनवाई में देखने को मिला। दो की जगह पर सबकी नियुक्ति रद्द हुई। 

2008 में निकला था विज्ञापन 

22 प्राचार्यों की नियुक्त के लिए 2008 में विज्ञापन निकला था। चयन समिति बनी। इसमें हिमाचल, झारखंड एवं बिहार के अभ्यर्थियों ने भाग लिया था। 2009 में सफल प्राचार्यों की सूची जारी की गई थी। तभी से ये सब उस विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजो में कार्यरत हो गए थे। इन्हें नियमित वेतन और अन्य सुविधाएं मिल रही थीं। 

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