राख के ढेर में ढूंढते रहे जिंदगी के अरमान

By Edited By: Publish:Fri, 25 Apr 2014 01:29 PM (IST) Updated:Fri, 25 Apr 2014 01:29 PM (IST)
राख के ढेर में ढूंढते रहे जिंदगी के अरमान

फुलवारीशरीफ : महज थोड़ी सी लापरवाही के चलते आग अपना खेल कर गई। दर्जनों लोगों के सिर से न केवल छत छिनी, बल्कि जिंदगी का सामान भी राख के ढेर में तब्दील हो गया। आग की तपिश कमजोर पड़ी, तो लोग राख में जिंदगी के जले अरमान खोजते रहे। ब्रेड-पकौड़ा बेच धंधा बढ़ाने को दस हजार बचा कर रखने वाले विजय गुप्ता के हाथ में महज 105 रुपए के सिक्के बचे थे। पति-पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था। विनोद प्रसाद सबकुछ गवां चुका था, तो अर्जुन प्रसाद के बच्चे राख में ककहरा की किताबें खोज रहे थे। माथे पर हाथ रखे राम ईश्वर राम एक ही बात बुदबुदा रहा था - अब कैसे होगी बिटिया की शादी? सवाल दर्जनों थे, पर जवाब किसी के पास नहीं था। जिला प्रशासन के लोग कागजी कार्रवाई करने में व्यस्त थे और अगलगी के पीड़ित भविष्य की चिंता में।

राम ईश्वर राम की बेटी उमा कुमारी की शादी मई में तय है। घर के लोग काफी पहले से तैयारी में जुटे थे। एक-एक रुपया जोड़ कर कपड़ा-जेवर खरीद कर रखा था। सब राख हो गया। बेटी की शादी का जोड़ा भी आग की भेंट चढ़ गया। लंबे समय से पाई-पाई जोड़ विजय गुप्ता ने दस हजार रुपए जाम किए थे। एक पोटली में बांध सहेज कर रखा था। सोचा था कि धंधा आगे बढ़ाएगा, पर आग ने अरमान जला दिए। राख में नकदी तलाशी, तो वे सिक्के मिले, जो जलकर काले पड़ चुके थे। जोड़ा तो महज 105 रुपए ही निकले। बिलखते विजय बताते हैं - आग की लपटें देख सामान निकालने का जतन कर ही रहे थे, तभी बगल की झोपड़ी में रखा सिलेंडर फट गया, पत्नी के साथ वे जान बचाने भाग खड़े हुए। उनकी झोपड़ी आंख के सामने धू-धूकर जल गई और वे कुछ न कर सके। विनोद प्रसाद का हाल बुरा था। दो जून खाने को लाले पड़ गए, पर किसी तरह खुद को संभाले मां बेटे को दिलासा दे रही थी। रेशमा कहती है- आग की लपटें देख समझ गए थे, कुछ नहीं बचेगा। सवाल दागती है - छोटे-छोटे बच्चे क्या खाएंगे, क्या पहनेंगे? मनोज जली अलमारी में पत्नी के जेवर खोज रहा था, पर सबकी तरह उसे भी निराशा ही हाथ लगी।

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