जयंती विशेष : एक संत राजनीतिज्ञ व सादगी की प्रतिमूर्ति विंदा बाबू Muzaffarpur News
पहले बिहार विधानसभा अध्यक्ष पद्मभूषण विंध्येश्वरी प्रसाद वर्मा उर्फ विंदा बाबू एक संत राजनीतिज्ञ महान गांधीवादी व कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। स्वतंत्रता सेनानी व आजाद भारत के पहले बिहार विधानसभा अध्यक्ष पद्मभूषण विंध्येश्वरी प्रसाद वर्मा उर्फ विंदा बाबू एक संत राजनीतिज्ञ, महान गांधीवादी व कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। वैशाली जिले के गोरौल प्रख्ंाड स्थित मनापुरा गांव में जमींदार कालीचरण वर्मा के घर जन्मे विंदा बाबू बचपन से ही तेजस्वी और विलक्षण गुणों से परिपूर्ण थे। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का भी अध्ययन किया था।
1902 ई. में यहीं के जिला स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद कोलकाता विवि से इंटर व स्नातक की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद 1911 ई. में वकालत की परीक्षा पास करने के बाद यहां के जिला न्यायालय में वकालत करने लगे। सन् 1917 ई. में गांधी जी के संपर्क में आने पर उसके साथ हो लिए। इनकी कर्मठता को देखते हुए बापू ने सन् 1919 ई. में जमींदारी उन्मूलन आंदोलन का नेतृत्व इन्हें सौंपा। जिसे इन्होंने बखूबी निभाया। सन् 1921 ई. में गांधी जी के प्रेरणा पर अपनी जमी-जमायी वकालत के पेशे को लात मार दी और असहयोग आंदोलन में कूद पड़े।
कई बार जेल की यातनाएं सही। इनकी कार्य कुशलता और दृढ़ निश्चय को देखते हुए इन्हें जिला कांग्रेस का सभापति चुना गया। सन् 1936 ई. में कांग्रेस के टिकट पर बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए। स्वतंत्र भारत के प्रथम बिहार विधानसभा अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किए गए। 1946 से 1962 तक लगातार 16 वर्षों तक इस पद पर रहे। ये सत्ता पक्ष और विपक्षी दोनों के ही प्रिय पात्र रहे। सन् 1961 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। 1962 के बाद इन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। वे आजीवन खादी पहने। वास्तव में वे त्याग और सादगी की प्रतिमूर्ति थे।
- पौत्र नरेश कुमार वर्मा, वरीय अधिवक्ता सह सरकारी वकील, सिविल कोर्ट, मुजफ्फरपुर