Madhubani: मिथिलांचल के लोक आस्था का पर्व वट सावित्री पूजा कल, दीर्घायु पति व संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं पूजा करती हैं महिलाएं

मिथिलांचल का करवाचौथ कहा जाने वाला यह व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायक माना जाता है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही इस व्रत को मनाया जाता है।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 02:40 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 02:40 PM (IST)
Madhubani: मिथिलांचल के लोक आस्था का पर्व वट सावित्री पूजा कल, दीर्घायु पति व संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं पूजा करती हैं महिलाएं
वट-सावित्री पूजा के लिए फलों की खरीदारी करती महिलाएं।

मधुबनी, जासं। मिथिलांचल में लोक आस्था का पर्व वट सावित्री गुरूवार को मनाया जाएगा। यूं तो मिथिलांचल में पूरे वर्ष कोई ना कोई व्रत-त्योहार होते ही रहते हैं, लेकिन वट सावित्री का अपना अलग ही महत्व है। मिथिलांचल का करवाचौथ कहा जाने वाला यह व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायक माना जाता है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। मिथिलांचल में हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ही इस व्रत को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना के साथ वट (बड़, बरगद) का पूजन करती है। हालांकि, इस व्रत की तिथि को लेकर मतभिन्नता है। स्कंद पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।

व्रत से पूरी होती मनोकामनाएं :

इस व्रत का मुख्य उद्देश्य सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना है। वट सावित्री व्रत में वट और सावित्री दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी महत्व है। पुराणों के अनुसार वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। मान्यता है कि इसके नीचे बैठकर पूजा करने, कथा सुनने और व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती है।

वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व का प्रतीक 

दार्शनिक दृष्टि से वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध का प्रतीक है। साथ ही वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएं व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष की परिक्रमा कर सूत के धागे लपेटती है।

चना बांटने की है परंपरा 

नवविवाहिताओं के लिए यह पूजा विशेष महत्व रखता है। इस अवसर पर उनके ससुराल से पूजा की सामग्री, बियन, नैवेद्य, मिठाई, नवीन वस्त्र, चना आदि भेजा जाता है। पूजा के बाद नवविवाहिताओं के घर फुला हुआ चना बांटने की परंपरा है।

बाजार में बढ़ी फलों की बिक्री 

वट सावित्री व्रत को देखते हुए बुधवार को बाजारों में फलों की दुकानों पर काफी भीड़ देखी गई। आम, लीची, केला, संतरा, सेव आदि फलों की काफी बिक्री हुई। बिक्री में वृद्धि को देखते हुए फलों की कीमतों में भी सामान्य दिनों की अपेक्षा उछाल देखा गया।

सुबह छह से दिन के तीन बजे तक होगी पूजा 

विश्वविद्यालय पंचांग के प्रधान संपादक सह संस्कृत विवि के पूर्व कुलपति पंडित रामचंद्र झा के अनुसार गुरूवार को सुबह छह बजे से दिन के तीन बजे तक पूजा की जा सकती है। पंडित झा ने बताया कि उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ मास के अमावस्या को मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में यह ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा को मनाया जाता है। सूर्य ग्रहण को लेकर चल रही चर्चाओं पर कहा कि भारतवर्ष में ग्रहण नहीं है।

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