कभी बुलंदी पर था देश स्तर पर प्रसिद्ध मधुबनी का खादी भंडार, आज इसके अस्तित्व पर संकट

पूंजी व उत्पादन के अभाव में भंडार के बिक्री केंद्र पर उपभोक्ताओं को खादी कपड़ा उपलब्ध नहीं हो रहा, जबकि इसकी काफी मांग है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Sat, 15 Dec 2018 10:48 AM (IST) Updated:Sat, 15 Dec 2018 10:48 AM (IST)
कभी बुलंदी पर था देश स्तर पर प्रसिद्ध मधुबनी का खादी भंडार,  आज इसके अस्तित्व पर संकट
कभी बुलंदी पर था देश स्तर पर प्रसिद्ध मधुबनी का खादी भंडार, आज इसके अस्तित्व पर संकट

मधुबनी, [राम प्रकाश चौरसिया]। खादी उत्पादन में कभी देश स्तर पर प्रसिद्ध मधुबनी का खादी भंडार बदहाली से जूझ रहा है। एक समय ऐसा था जब यह बुलंदी पर था। पूंजी व उत्पादन के अभाव में भंडार के बिक्री केंद्र पर उपभोक्ताओं को खादी कपड़ा उपलब्ध नहीं हो रहा, जबकि इसकी काफी मांग है। हाल यह है कि यहां करीब दो वर्ष से उत्पादन ठप है। वर्ष 1924 में स्थापित खादी भंडार की बदहाली का आलम यह है कि इसके तीन सौ कामगारों की संख्या घटकर 19 हो गई है। अवकाश प्राप्त कामगारों के बकाए राशि का भुगतान वर्षों से लंबित है। जिला मुख्यालय स्थित भंडार के कई भूखंडों से भंडार को प्रतिमाह प्राप्त होने वाली राशि में से कामगारों को पर्व पर नाममात्र की राशि का भुगतान किया जाता है।

कई बार आ चुके हैं विनोबा

खादी भंडार में खादी के अलावा फर्नीचर, साबुन, सरसों तेल, मधु और मसाला सहित अन्य उद्योग एक दशक से बंद हैं। भंडार का अधिकांश भवन जर्जर हो गया है। कई भवन तो पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं। भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे समय-समय पर यहां आया करते थे। इस भंडार के तहत संचालित लोहा खादी भंडार में तैयार खास कपड़े देश के बड़े राजनेताओं को भेजे जाते थे। खादी प्रेमी शहर के बैद्यनाथ साह, राजेश कुमार झा मोहन, लाल झा और सुरेश कुमार का कहना है कि खादी के विकास से यहां की बेरोजगारी दूर की जा सकती है।

बिहार सरकार पर 28 लाख का भुगतान लंबित

खादी ग्रामोद्योग संघ के जिला मंत्री सरला देवी ने बताया कि खादी ग्रामोद्योग को जीवित करने की दिशा में प्रयास जारी है। भंडार में पिछले कई माह से सूत का उत्पादन बंद है। चरखा का उत्पादन नहीं हो रहा। बिहार व भारत सरकार के आर्थिक सहयोग के बगैर इसका पुनरुत्थान संभव नहीं। बिहार सरकार पर भाड़े मद में करीब 28 लाख रुपये का भुगतान लंबित है। कर्मियों के वेतन का भुगतान भंडार के विभिन्न भवनों से मिलने वाले भाड़े से किया जाता है।

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