नाले में डालने से पहले नवरुणा की लाश पर लगाया गया था केमिकल

नवरुणा मामले में पांचवीं बार जांच अवधि बढ़वाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची सीबीआइ की अर्जी में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 23 Apr 2018 05:00 AM (IST) Updated:Mon, 23 Apr 2018 05:00 AM (IST)
नाले में डालने से पहले नवरुणा की लाश पर लगाया गया था केमिकल
नाले में डालने से पहले नवरुणा की लाश पर लगाया गया था केमिकल

मुजफ्फरपुर। नवरुणा मामले में पांचवीं बार जांच अवधि बढ़वाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची सीबीआइ की अर्जी में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। यह एक तरह से उसकी अब तक की जांच रिपोर्ट है। इसमें कहा गया है कि नाले में डालने से पहले नवरूणा की लाश की इंबाल्मिंग (केमिकल संलेपन) की गई। इसी वजह से नाले से मिली उसकी लाश से गंध नहीं आ रही थी। जिस समय नाले से लाश मिली, उस समय प्रत्यक्षदर्शी व पुलिस अधिकारियों ने भी इसका समर्थन किया था। अब सीबीआइ जिले में उस जगह की तलाश कर रही है, जहां इंबाल्मिंग की प्रक्रिया पूरी की गई। साथ ही यह जानने का प्रयास कर रही है कि प्रयुक्त रसायन कहां से खरीदा और स्टॉक किया गया। इस संबंध में सीबीआइ की ओर से जिलाधिकारी को पत्र भी लिखा गया था। सीबीआइ की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच की अवधि 15 सितंबर तक बढ़ा दी है।

यह है मामला : 18 सितंबर 2012 की रात नगर थाना क्षेत्र के जवाहरलाल रोड स्थित अपने मकान में सोई नवरूणा का अपहरण कर लिया गया था। 26 नवंबर 2012 को नवरूणा के घर के पास नाले की सफाई के दौरान उसका कंकाल मिला था। शुरू में मामले की जांच पुलिस व बाद में सीआइडी ने की। फरवरी 2014 से जांच सीबीआइ कर रही है। जांच में देरी होने पर दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट में इसकी कानूनी लड़ाई लड़ रहे सेव नवरूणा संगठन के अभिषेक रंजन ने अवमाननावाद दायर किया। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई करते हुए सीबीआइ को पांचवी बार जांच की डेडलाइन तय की है।

क्या है इंबाल्मिंग : यह एक तरह की चिकित्सकीय प्रक्रिया है। इसके तहत विशेष प्रकार के रसायन को मृत शरीर की नसों में डाला जाता है। कुछ रसायन का लाश पर संलेपन भी किया जाता है। इससे शरीर जल्द खराब नहीं होता है और कोई गंध नहीं निकलता है। यह प्रक्रिया प्रशिक्षित व्यक्ति ही पूरा कर सकता है।

सीबीआइ ने माना कई साक्ष्य हो चुके पुराने : सीबीआइ जांच में आ रही कठिनाई से भी इन्कार नहीं कर रही है। उसका कहना है कि मोबाइल फोन के कॉल डिटेल्स व तकनीकी आकड़े पांच साल पुराने है। इससे साक्ष्य एकत्र करने में परेशानी हो रही है।

सामने आए कई संदिग्धों के नाम : इस साल जनवरी में फॉरेंसिक जांच, वाइड लेयर्ड वायस एनालिसिस (एलवीए) एवं लाई डिटेक्टर टेस्ट से सीबीआइ को महत्वपूर्ण व ठोस सुराग मिले हैं। पिछले छह माह की जांच में कुछ नए तथ्य सामने आए हैं। इसमें कुछ नए संदिग्धों के नाम शामिल हैं। इन संदिग्धों की संलिप्तता व भूमिका की जांच प्रक्रिया पूरी की जानी है।

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