मुजफ्फरपुर के साहू पोखर में संचित होता वर्षाजल, इलाके में नहीं गिरता जलस्तर

ढाई सौ साल पुराना है पोखर का इतिहास शहरवासियों के लिए सौगात।1.05 करोड़ रुपये से हुआ पोखर का जीर्णोद्धार करना होगा रखरखाव का मुकम्मल इंतजाम।घनी आबादी के बावजूद आसपास के इलाके में भूजल स्तर बरकरार रहता है ।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Fri, 09 Apr 2021 08:07 AM (IST) Updated:Fri, 09 Apr 2021 08:07 AM (IST)
मुजफ्फरपुर के साहू पोखर में संचित होता वर्षाजल, इलाके में नहीं गिरता जलस्तर
शहर के मानसरोवर के रूप में साहू पोखर की प्रसिद्धि रही है। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। हमारे पूर्वज जानते थे कि आने वाले समय में पानी की भारी कमी होगी। इसलिए वे पोखर एवं तालाब खोदवाते थे ताकि वर्षा जल का संचय किया जा सके। पोखर में संचित वर्षा जल से न सिर्फ लोगों को सालों भर पानी मिलता बल्कि धरती की प्यास भी बूझती है। इसका प्रमाण है शहर का साहू पोखर। इस पोखर में वर्षा जल का संचय होता है जिससे यह सालों भर पानी से लबालब रहता है। घनी आबादी के बावजूद आसपास के इलाके में भूजल स्तर बरकरार रहता है। गर्मी में शहर के अधिकांश इलाके भूजल स्तर में गिरावट की वजह से पेयजल संकट से जूझते हैं, लेकिन साहू पोखर के आसपास के इस तरह की नौबत नहीं आती। 

स्थानीय लोगों ने शुरू की मुहिम

शहर के मानसरोवर के रूप में साहू पोखर की प्रसिद्धि रही है। कूड़ा करकट डालने की वजह से पहचान खोने लगा था। नाला के बहाव से इसका पानी जहरीला हो गया था। स्थानीय लोगों ने पोखर को बचाने की मुहिम शुरू की। इसका सुखद परिणाम मिला। सरकार ने पोखर के जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण के लिए राज्य योजना मद से 1.05 करोड़ रुपये का आवंटन किया। जीर्णोद्धार का 70 फीसद कार्य पूरा हो चुका है, लेकिन इसके रखरखाव व निगरानी की व्यवस्था नहीं है। लोग फिर से इसमें कचरा डालने लगे हैं।

साहू परिवार ने कराया था निर्माण

साहू पोखर का इतिहास ढाई सौ साल पुराना है। इसका निर्माण साहू परिवार ने कराया था। बुजुर्ग बताते हैं कि बाबा गरीबनाथ मंदिर से चंद कदमों की दूरी पर इस पोखर की खोदाई वर्ष 1754 में जमींदार भवानी प्रसाद साहू के पुत्र शिवसहाय प्रसाद साहू ने करवाई थी। यहां श्रीराम जानकी मंदिर का निर्माण भी कराया था। पोखर व मंदिर के इतिहास का वर्णन विदेशी विद्वान डॉ. स्पूनर के यात्रा वृतांत में भी मिलता है। डॉ. स्पूनर यहां वर्ष 1917 में आए थे। उन्होंने वृज्जी वैशाली जनपद का भ्रमण किया था। इस दौरान स्थापत्य कला की दृष्टि से साहू पोखर स्थित मंदिर को भी देखा-समझा था। साहू परिवार के लोगों का कहना है कि पोखर के निर्माण में नदी मार्ग से मालीघाट तट पर पत्थर लाए गए थे। पानी के प्रवाह के लिए बूढ़ी गंडक के अखाड़ाघाट तट से सीधे नाले का निर्माण कराया गया था। पोखर का पानी ओवरफ्लो होने पर चंदवारा होते हुए नदी में बहता था। तब यह पोखर 25 बीघा में था। सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात कुमार ने कहा कि यह शहर का एकमात्र पोखर है जहां वर्षा जल का संचय होता है। इसका लाभ आसपास के लोगों को मिलता है। जीर्णोद्धार के बाद साहू पोखर फिर से जिंदा हो गया है। अब लोग इसमें कूड़ा-करकट नहीं डाल सके और घरों का गंदा पानी नहीं बहा सके, इसकी व्यवस्था करनी होगी। शहर में साहू पोखर की तरह ही कई पोखर हैं उनका भी जीर्णोद्धार होना चाहिए।  

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