मुजफ्फरपुर में गुणवत्ता से खिलवाड़, बनने के साथ टूट जातीं सड़कें

पिछले दो वर्षो में लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर शहरी सड़कों का निर्माण हुआ। लेकिन गुणवत्ता ऐसी कि बनने के साथ ही टूटने भी लगीं। इन सड़कों को पांच साल तक बिना टूट-फूट के चलने की गारंटी दी गई लेकिन पांच माह में ही दम निकल गया।

By Edited By: Publish:Sun, 29 Nov 2020 01:40 AM (IST) Updated:Sun, 29 Nov 2020 09:56 AM (IST)
मुजफ्फरपुर में गुणवत्ता से खिलवाड़, बनने के साथ टूट जातीं सड़कें
अभियंताओं की कमी के कारण सभी योजनाओं पर लगातार नजर रखना मुश्किल है।

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। पिछले दो वर्षो में लाखों-करोड़ों रुपये खर्च कर शहरी सड़कों का निर्माण हुआ। लेकिन, गुणवत्ता ऐसी कि बनने के साथ ही टूटने भी लगीं। इन सड़कों को पांच साल तक बिना टूट-फूट के चलने की गारंटी दी गई, लेकिन पांच माह में ही दम निकल गया। सड़क से गिट्टी-बालू अलग हो गए। सड़क बनने के बाद भी शहरवासियों को जर्जर सड़कों पर चलना पड़ रहा। यह हाल शहर की एक-दो सड़कों का नहीं, बल्कि अधिकतर का है। वर्षो गुहार लगाने के बाद बनीं जर्जर सड़कें जर्जर सड़कों पर वर्षो हिचकोले खाने, सड़क निर्माण के लिए धरना-प्रदर्शन करने व अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने के बाद शहर की जर्जर सड़कें बनीं तो जरूर, पर टिक नहीं पाई।

उदाहरण देखना हो तो कलमबाग महावीर मंदिर से डॉ. संजय कुमार एवं लक्ष्मी महिला छात्रावास होते हुए जीके राय के घर तक बनी 75 लाख की सड़क की हालत देख लीजिए। बनने के एक माह बाद ही गिट्टी एवं बालू ने एक-दूसरे का साथ छोड़ दिया। गड़बड़ी छिपाने के लिए ठीकेदार ने टूट रहीं सड़कों पर अलकतरा पोत दिया। यही हालात बटलर रोड में बन रही सड़क की है। इसका कारण यह रहा कि प्राक्कलन के विपरीत सड़कों का निर्माण कराया गया और मानक के अनुसार निर्माण सामग्री का इस्तेमाल नहीं हुआ। बनने के साथ ही सड़क टूटने का कारण संबंधित विभाग की उदासीनता एवं संवेदकों की मनमानी रही।

निर्माण के दौरान न तो प्रशासन घटिया सामग्री के इस्तेमाल को रोकने के प्रति सजग रहा और न ही अभियंता मौके पर उपस्थित होना जरूरी समझते। इस संबंध में निगम के सहायक अभियंता संतोष कुमार सिंह कहते हैं कि सड़क निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्री का नमूना जांच के लिए भेजा जाता है। गड़बड़ी की रिपोर्ट मिलने पर ही कार्रवाई की जा सकती है। अभियंताओं की कमी के कारण सभी योजनाओं पर लगातार नजर रखना मुश्किल है। ठीकेदार सुशील कुमार सिंह कहते हैं कि सड़क निर्माण के दौरान वाहनों का परिचालन नहीं रुकने से कार्य प्रभावित होता है। बनने वाली सड़क सेट नहीं कर पाती। सारा दोष ठीकेदारों पर ही मढ़ दिया जाता है।

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