Muzaffarpur Politics: यहां भी सीएम नीतीश कुमार के प्रत्‍याशी दोस्‍त और दुश्‍मन पहचानने में चूक गए

Bihar Muzaffarpur Assembly Election Result 2020 चुनाव परिणाम आए दो माह गुजर गए। मगर हारे हुए उम्मीदवारों का दर्द बार-बार उभर आता है। हाल में संपन्‍न जदयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में मुजफ्फरपुर के प्रत्‍याश‍ियों ने भी लोजपा से अधिक भाजपा को दोषी ठहराया।

By Ajit kumarEdited By: Publish:Tue, 12 Jan 2021 09:36 AM (IST) Updated:Tue, 12 Jan 2021 01:41 PM (IST)
Muzaffarpur Politics: यहां भी सीएम नीतीश कुमार  के प्रत्‍याशी दोस्‍त और दुश्‍मन पहचानने में चूक गए
मुजफ्फरपुर में इन आरोपों को देखें तो इसमें काफी दम लगता है। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। चुनाव से पहले एनडीए (NDA) से टिकट मिल जाने को उम्मीदवारों ने जीत की पहली कड़ी मान ली थी। मगर, जो हुआ वह सोच से परे था। जिले में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की पार्टी जदयू (JDU) के उम्मीदवारों को दोस्‍त और दुश्‍मन पहचानने में चूक हो गई। ज‍िससे चार में से तीन हारे। एक जीते तो उसे पार्टी से अधिक व्यक्तिगत माना गया। चुनाव परिणाम आए दो माह गुजर गए। मगर, हारे हुए उम्मीदवारों का दर्द बार-बार उभर आता है। टीस दबाए नहीं दब रही। जदयू (JDU) की हाल में संपन्‍न राज्य कार्यकारिणी में भी यही हुआ। कई उम्मीदवारों ने लोजपा से अधिक भाजपा को अपनी हार के लिए दोषी ठहराया। कहा गया, लोजपा की क्या हैसियत। कमान तो भाजपा के नेताओं ने संभाल रखी थी। उनके षडयंत्र से हारे। एनडीए के एक साथी के नेताओं व कार्यकर्ताओं पर यह सीधा आरोप यूं ही नहीं लगा। 

कई भाजपा कार्यकर्ता लोजपा प्रत्‍याशी से जुड़े रहे

मुजफ्फरपुर जिले की विधानसभा सीटों के सापेक्ष इन आरोपों को देखें तो इसमें काफी दम लगता है। पहले बात मीनापुर सीट की। यहां जदयू के मनोज कुमार को 44 हजार तो लोजपा के अजय कुमार को 43 हजार से अधिक वोट आए। करीब 60 हजार वोट लाकर राजद के राजीव कुमार उर्फ मुन्ना यादव जीत गए। यहां महत्वपूर्ण बात यह रही कि अजय कुमार ने पिछला चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ा था। साथ ही पांच साल तक क्षेत्र में भाजपा नेता के तौर पर ही काम करते रहे। यही कारण रहा कि चुनाव में भी ना चाहते हुए भी कई भाजपा कार्यकर्ता उनके साथ जुड़े रहे। वे उनके लिए वोट मांगने से लेकर बूथ मैनेजमेंट में लगे रहे। अगर अजय कुमार को मिले वोट में से आधे भी मनोज कुमार को मिल जाते वे चुनाव जीत सकते थे। मगर वोटिंग के दिन तक मतदाता भ्रम में रहे। लोजपा ही भाजपा है के नारे में इस भ्रम को इतना बढ़ाया कि एनडीए यह सीट गंवा बैठा।

गायघाट में भी भ्रम में रहे भाजपाई

कमोबेश यही स्थिति गायघाट की रही। यहां जदयू ने राजद से आए महेश्वर प्रसाद यादव को उतारा था। राजद ने जदयू से आए निरंजन राय को। तीसरा कोण बना लोजपा की कोमल सिंह का। गायघाट से विधायक रहीं और 2015 चुनाव तक भाजपा से मैदान में उतरीं वीणा देवी व जदयू विधान पार्षद की पुत्री कोमल सिंह के 36 हजार वोट ने जीत और हार तय की। यहां भी वीणा देवी के करीबी भाजपा कार्यकर्ता कोमल के साथ रहे। साथ ही भाजपा के परंपरागत वोट भी उन्हें मिले। निरंजन को महेश्वर से सात हजार वाेट अधिक मिले और वे पहली बार विधानसभ पहुंच गए। यहां कोमल को मिले वोटों में से एक चौथाई भी महेश्वर के खाते में आता तो परिणाम उलट होता। जदयू राज्य कार्यकारिणी में उठी आवाज में गायघाट की भी पीड़ा शामिल है।

सकरा में भी कांटे की टक्‍कर

बात सकरा की। यहां जदयू उम्मीदवार अशोक कुमार चौधरी के खिलाफ पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष हरिओम कुशवाहा ने ही झंडा उठा लिया था। अंतर यह रहा कि लोजपा उम्मीदवार संजय पासवान की छवि खांटी भाजपा की नहीं थी। उन्हें 13 हजार वोट ही मिले। इस कारण महज 15 सौ वाेटों से अशोक कुमार चौधरी कांग्रेस के उमेश राम पर जीत दर्ज कर सके। अगर संजय की जगह लोजपा किसी बड़े भाजपा नेता को उतारती तो यहां भी परिणाम उलटना तय था। जदयू के एक और उम्मीदवार कांटी से मो. जमाल तीसरे नंबर पर रहे। यहां लोजपा ने जदयू से ही जुड़े विजय कुमार सिंह को उतारा था। वहीं निर्दलीय अजीत कुमार भी कभी जदयू में रहते हुए ही विधायक बने थे। यहां एनडीए के वोटों का बिखराव ही राजद के मो. इसराइल की 10 हजार वोटों से जीत का कारण बना। अब मो. जमाल सीधे तौर पर हार के लिए भाजपा या उसके कार्यकर्ता को भले ही दोषी नहीं ठहरा सकें। मगर मीनापुर और गायघाट के उम्मीदवारों को यह दर्द लंबे समय तक सालता रहेगा। 

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