किसानों की मदद फर्ज, स्वरोजगार के लिए निश्शुल्क कर्ज

कर्ज के बोझ में दबकर कोई किसान आत्महत्या न करे। घर बंधक रखने की मजबूरी न हो। कुछ इसी सोच के साथ गनीपुर बेझा केरामनंदन प्रसाद सात साल से बिना ब्याज कर्ज मुहैया करा रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 26 Sep 2018 01:00 PM (IST) Updated:Wed, 26 Sep 2018 01:00 PM (IST)
किसानों की मदद फर्ज, स्वरोजगार के लिए निश्शुल्क कर्ज
किसानों की मदद फर्ज, स्वरोजगार के लिए निश्शुल्क कर्ज

मुजफ्फरपुर। कर्ज के बोझ में दबकर कोई किसान आत्महत्या न करे। घर बंधक रखने की मजबूरी न हो। कुछ इसी सोच के साथ गनीपुर बेझा केरामनंदन प्रसाद सात साल से बिना ब्याज कर्ज मुहैया करा रहे हैं। 200 ग्रामीण उनसे लोन लेकर काम कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 15 लोगों की समिति बनाई है। कर्ज देने के लिए सहयोग से इसके खाते में करीब आठ लाख रुपये जमा हैं।

बीआरए बिहार विवि से गणित से एमएससी के बाद रामनंदन ने छह साल तक मुजफ्फरपुर में कोचिंग चलाई। वर्ष 2005 में अपने गांव सकरा प्रखंड के गनीपुर बेझा पहुंचे। चार एकड़ जमीन में खेती शुरू की। खाद-बीज के लिए रकम जुटाने व आशा के अनुरूप उपज नहीं होने की समस्या से कई बार दो-चार हुए। इसी तरह की परेशानी अन्य किसानों की भी देखी। बहुत से किसान तो दो-दो हजार कर्ज के लिए महाजन के पास जमीन व घर तक बंधक रखे थे। तभी उन्होंने ठान लिया कि इस समस्या से मुक्ति दिलानी है। उन्होंने कई स्तर पर काम शुरू किया।

वर्ष 2011 में किसानों को जागरूक कर 'गनीपुर बेझा कृषक हितकारी समूह' बनाया। इसमें किसानों से छोटी-छोटी राशि लेकर जमा किया। उसी से किसानों को जरूरत के मुताबिक खाद-बीज के लिए कर्ज देने की शुरुआत की। कुछ किसानों को मवेशी पालन के लिए भी लोन दिया गया। इस पर कोई ब्याज नहीं लिया जाता। एक फसल के बाद किसान रकम लौटा देते हैं। इसके बाद उन्होंने संगठन के माध्यम से महाजनों पर दबाव डालकर करीब दो दर्जन किसानों का सूद माफ कराया।

अब नहीं लेना पड़ता कर्ज :

परंपरागत खेती से फसल की लागत अधिक हो जाती थी। इसके लिए रामनंदन ने खुद वैज्ञानिक तरीके से खेती की। कृषि विभाग की मदद ली। इससे चार एकड़ खेत में उन्हें साल में तकरीबन चार लाख आमदनी हो जाती है। अपना उदाहरण देकर उन्होंने अन्य किसानों को इसी तरह खेती के लिए प्रेरित किया। किसान मनोज कुमार दास कहते हैं, हमने कभी कल्पना नहीं की थी कि जीवन से बदहाली जाएगी। वैज्ञानिक पद्धति से खेती व आर्थिक सहायता ने स्थिति सुधरी। अब इतनी उपज हो जाती है कि किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता। दशरथ साह कहते हैं, महाजन के चंगुल से मुक्त होने में इस समूह ने बड़ी मदद की। उनकी सहायता से फसल भी अच्छी हो रही है। इसी तरह केशरी नंदन व लक्ष्मी कुमार सहित तकरीबन 200 किसानों ने इस समिति से मदद लेकर अपनी बदहाली दूर की है।

रामनंदन का कहना है कि उनका मकसद खेती को लाभकारी बनाने के साथ ग्रामीणों को स्वावलंबी बनाना है। समिति से किसान दो से चार हजार तक की मामूली राशि भी जरूरत पड़ने पर ले सकते हैं।

एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी के निदेशक मो. इस्माइल का कहना है कि रामनंदन ने जिस तरह किसानों को संगठित कर कार्य किया है, वह काबिलेतारीफ है। इससे अन्य को प्रेरणा लेनी चाहिए।

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