ग्राउंड जीरो रिपोर्ट: बाढ़ संग बह गए सपने, भूखे पेट सड़कों पर कट रही जिंदगी

बिहार के पूर्वी चंपारण में बाढ़ का कहर गहरा गया है। जान बचाकर लोग सड़कों व तटबंधों पर आ गए हैं। उनकी स्थिति की पड़ताल करती ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट।

By Amit AlokEdited By: Publish:Thu, 17 Aug 2017 06:30 PM (IST) Updated:Thu, 17 Aug 2017 09:08 PM (IST)
ग्राउंड जीरो रिपोर्ट: बाढ़ संग बह गए सपने, भूखे पेट सड़कों पर कट रही जिंदगी
ग्राउंड जीरो रिपोर्ट: बाढ़ संग बह गए सपने, भूखे पेट सड़कों पर कट रही जिंदगी

पूर्वी चंपारण [संजय कुमार उपाध्याय]। जिले के 15 प्रखंडों की 17 लाख की आबादी बाढ़ की त्रासदी झेलने को विवश है।  सरकारी राहत शिविरों की सक्रियता के बावजूद सड़कों और बांधों पर सैकड़ों परिवारों की महिलाएं बच्चों संग आ गईं हैं। पुरुष भी मवेशियों के साथ सड़कों पर हैं। हालात इतने भयावह होंगे, किसी ने नहीं सोचा था। बाढ़ संग सपने भी बह गए। पेट की भूख मिटाने, जिंदगी व घर की अस्मत बचाने और बच्चों की सुरक्षा के लिए जद्दोजहद जारी है।
सड़क पर आंखों में काट रहे रात-दिन

पीपराकोठी-गोपालगंज फोरलेन और  मोतिहारी-बेतिया एनएच -28 ए पर सैकड़ों परिवार रात-दिन आंखों में काट रहे हैं। नक्सल प्रभावित मधुबन के भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। यहां से शिवहर जानेवाले एनएच-104 पर भी बड़ी आबादी ने डेरा डाल रखा है। गंडक के पानी में कमी के बाद भी पीड़ा यथावत है। घरों से पानी नहीं निकला है। दर्जनों घर ध्वस्त हो गए।

तटबंध पर तंबू में शरण लिए बड़ी आबादी

अरेराज व संग्रामपुर समेत केसरिया प्रखंड की बड़ी आबादी ने चंपारण तटबंध पर शरण ले रखी है। नवादा, नोनेया टोली, गोविंदगंज गिरि टोला, चटिया दियर, बीन टोली व पुछरिया में बांध पर मजबूरी के तंबू हैं। सपरिवार टेंट में रह रहे शिवनाथ सहनी बताते हैं, ''बाढ़ में सबकुछ चला गया। जान बचेगी तो फिर से दुनिया बसा लेंगे।'' धड़वा टोली के मदन सहनी, नोनिया टोली के चंद्रिका महतो ने कहा, ''हम तो दोहरी मार झेल रहे हैं। सबकुछ तबाह है। अब तो बांध ही सहारा है।''

यहां से आगे संग्रामपुर होते हुए खजुरिया चौक से फोरलेन पर चढ़े तो कुछ पल के लिए यह सड़क अस्थाई बसेरा नजर आई। वहां संग्रामपुर प्रखंड की डुमरिया पंचायत के सिसवनिया टोला के 60 परिवारों के सैकड़ों लोग रह रहे हैं। तंबू में वक्त गुजार रहे कमनिस्ट सहनी, बलिराम सहनी, राजेश्वर सहनी, हीरा सहनी ने कहा, ''सपने में भी नहीं सोचा था। जैसे-तैसे जान बचाकर सड़क पर आ गए हैं।'' हेमांती, रीता, मीना, बालकेशी देवी व रीना कुंवर बाढ़ से बचे थोड़े से अनाज को सड़क पर संभाल रहीं थीं। कहा, ''हमारे घर के पुरुष रात में जगते हैं और हम सोते हैं। हम दिन में जगते हैं तो वो लोग सोते हैं।''

जहरीले जीव व दरिंदों का डर

सड़क व बांध पर रह रहे लोगों को सबसे ज्यादा खतरा जहरीले सांप और बिच्छू से है। इसके अलावा आफत में भी अपराध करने वालों से। लोगों ने कहा,'' हमें जिंदगी और घर की इज्जत की रक्षा करनी है। सो, रातभर जगते हैं। गनीमत है कि अधिकारी दौड़ लगा रहे हैं। पुलिस के भय से अपराधी दूर हैं। वरना हमारा तो...!'' 

पानी घटने के बाद की चुनौती

प्रशासन के लिए बाढ़ में फंसी आबादी की रक्षा बड़ी चुनौती है। जहां पानी घटा है, वहां निवाला देने की और उन्हें महामारी से बचाने की चुनौती भी है। डीएम रमण कुमार ने अधिकारियों से साफ कहा कि राहत व बचाव कार्य ठीक से करें, ताकि कोई भूख से न बिलबिलाएं, बच्चे दूध के लिए नहीं तड़पें।

गुरुवार को 20 हजार फूड पैकेट लोगों तक पहुंचाए गए। दो तरह के पैकेट हैं। इसके बावजूद लोग भूख से व्याकुल दिखे। दुर्गम इलाकों में सेना लगाई गई है। पीडि़तों के शब्दों में, '' राहत तब लोगों तक पहुंचेगी जब अधिकारी पीडि़त की तरह सोचेंगे।''

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