AMAZING: पशु-पक्षियों से ऐसा लगाव कि घर को ही बना दिया चिड़ियाघर, फैमिली मेंबर बने बेजुबान

बिहार के मोतिहारी शहर में एक ऐसा घर है जो किसी चिड़ियाघर से कम नहीं। घर के मालिक‍ के पशु-पक्षी प्रेम को जान कर आप हैरत में पड़ जाएंगे। पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह खबर।

By Amit AlokEdited By: Publish:Fri, 14 Feb 2020 08:11 PM (IST) Updated:Sat, 15 Feb 2020 09:31 PM (IST)
AMAZING: पशु-पक्षियों से ऐसा लगाव कि घर को ही बना दिया चिड़ियाघर, फैमिली मेंबर बने बेजुबान
AMAZING: पशु-पक्षियों से ऐसा लगाव कि घर को ही बना दिया चिड़ियाघर, फैमिली मेंबर बने बेजुबान

सुशील वर्मा, पूर्वी चंपारण। पशु-पक्षियों से ऐसा लगाव कि अपने घर को 'चिड़ियाघर' जैसा बना दिया है। उनके पास 32 पशु और 59 पक्षी हैं। सबके अलग-अलग नाम, जिसे बुलाते वही चला आता है। उन्‍हें संतान की तरह पशु-पक्षियों से स्नेह है। बेजुबान जानवर भी परिवार के सदस्‍य की तरह ही बन गए हैं। बिहार के मोतिहारी शहर के खोदानगर निवासी नेक मोहम्मद उर्फ मोहन को उनकी पीड़ा व्याकुल करती है तो धमाचौकड़ी आनंदित। उनका घर आसपास के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।

बचपन से ही पशु-पक्षियों से लगाव

दवा की दुकान चलाने वाले नेक मोहम्मद को पशु-पक्षियों से लगाव बचपन से ही है। बीते 20 वर्षों से उनके पालन में लगे हैं। उनके पास आठ गाय, चार भैंस, 20 बकरियां, 24 कबूतर, छह तोता, पांच हंस, छह बत्तख और 12 मुर्गा-मुर्गी के अलावा छह खरगोश भी हैं। गायों के नाम कामधेनु, रामधेनु, गौरी, सोनी, चितकबरी, काली, भुअरी, पूंछकटी आदि हैं। तोतों के आत्माराम, तुकाराम, खरगोशों के किट्टू, मिट्ठू, सिट्टू तो कबूतरों के उडऩपरी, भानुपरी नाम हैं। उन्‍होंने बकरियों के नाम मुनचुन, चुनमुन, हीरामनी आदि रखे हैं।

प्‍यार से करते बेजुबानों की देखभाल

नेक मोहम्‍मद सुबह लगभग तीन घंटे का समय इन पशु-पक्षियों के बीच देते हैं। प्यार से खिलाने के साथ देखभाल करते हैं। दुकान से आने के बाद एक बार उनके बीच अवश्य जाते हैं। उनका पशु-पक्षियों से प्रेम इतने तक ही सीमित नहीं है। वे अस्वस्थ व कमजोर पशुओं की देखभाल भी करते हैं। ऐसी दो गायें, एक भैंस और दो बछड़े सहित कई अन्य पशु भी उनके पास हैं।

पशु-पक्षियों की सेवा में मिलता आनंद

उन्‍होंने पशु-पक्षियों के रहने के लिए करीब पांच हजार वर्ग फीट भूमि पर व्यवस्था की है। उनके भोजन का कुछ इंतजाम उनकी खेती योग्य जमीन से उपजने वाले अनाज व चारे से होता है। साथ ही दुकान से होने वाली आमदनी का एक हिस्सा भी वे इस पर खर्च करते हैं। गाय-भैंस से प्रतिदिन 20 लीटर दूध निकलता है। अपने उपयोग के बाद जो बचता है, उसे बेच देते हैं। उससे मिलने वाली रकम भी इसी पर खर्च करते हैं। मोहन बताते हैं कि प्यार-मुहब्बत की भाषा पशु-पक्षी भी समझते हैं। इनकी सेवा में अपार आनंद मिलता है।

प्‍यार की भाषा खूब समझते पशु-पक्षी

पशु-पक्षी भी प्‍यार की भाषा खूब समझते हैं। पशुपालन पदाधिकारी डॉ. नरेंद्र कुमार का कहना है अगर उन्‍हें कोई आत्मीय भाव से कोई आहार देता है, बार-बार एक ही नाम से बुलाता है तो वे उसकी ओर आकर्षित होते हैं। उन्‍होंने नेक मोहम्‍मद के काम की सराहना करते हुए उसे जीव संरक्षण का अच्छा प्रयास बताया है।

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