रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं..

मुंगेर । रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं, अपने तो खुदा है रखवाला। गाने का यह बोल ब

By Edited By: Publish:Fri, 26 Aug 2016 10:23 PM (IST) Updated:Fri, 26 Aug 2016 10:23 PM (IST)
रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं..

मुंगेर । रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं, अपने तो खुदा है रखवाला। गाने का यह बोल बाढ़ राहत कैंप में रह रहे बाढ़ पीड़ितों पर पूरी तरह से चरितार्थ हो रही है। गंगा की बाढ़ के कारण घर छोड़ कर पलायन कर चुके लोग एनएच, रेल ट्रैक के किनारे और अन्य सुरक्षित जगहों पर खुले आसमान के नीचे रात बीताने को विवश हैं। जब सुबह होती है तो पीडितों के मन में उम्मीद की नई किरण जगती है, लेकिन प्रर्याप्त राहत -सामग्री नहीं मिलने के कारण बाढ़ पीड़ित एक बार फिर मायूस हो जाते है। दिन में कडी धूप के बावजूद भी खुले आकाश के नीचे रह रहे बाढ़ पीड़ित पेड़ की छावं ढूंढते दिख जाते हैं। बाढ़ पीड़ित यशोदा देवी, मंजू देवी, शोभा देवी, उषा देवी, उमा देवी, आरती देवी व सुखिया देवी ने कहा कि बाढ की तबाही के कारण जीवन नारकीय हो गई है। कैंप में जिला प्रशासन की ओर प्रर्याप्त व्यवस्था नहीं कराई गई है। उन्होंने कहा कि कैंप सबसे अधिक परेशानी छोटे- छोटे बच्चों को हो रही है। बच्चे किसी भी समय खाना की मांग कर देता है। हम लोग उसकी मांग का को पूरा नहीं कर सकते हैं। वहीं दिलो ¨वद, साधो ¨वद, अमर पासवान, धूरी यादव, प्रमोद साव, उपेंद्र ¨सह, सोहन लाल, दिवाकर यादव आदि ने कहा कि गंगा ने हमलोगों का सबकुछ लील लिया। भाग कर यहां आए हैं। जिला प्रशासन की ओर राहत मुहैया कराई जा रही है।

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