बिहार में आसमान से गिरा विचित्र पत्थर, धमाके से चौंके लोग, जानिए क्या है ये..

बिहार के मधुबनी जिले में अजीबोगरीब 15 किलो के वजन का एक पत्थर आसमान से गिरा। जब वह गिरा तो गर्म था औऱ उसमें चुंबकीय गुण भी था। ये पत्थर उल्कापिंड है जिसे संग्रहालय में रखा गया है।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Tue, 23 Jul 2019 04:24 PM (IST) Updated:Fri, 26 Jul 2019 08:05 PM (IST)
बिहार में आसमान से गिरा विचित्र पत्थर, धमाके से चौंके लोग, जानिए क्या है ये..
बिहार में आसमान से गिरा विचित्र पत्थर, धमाके से चौंके लोग, जानिए क्या है ये..

मधुबनी [जेएनएन]। बिहार के मधुबनी में बाढ़ से परेशान लोगों की परेशानी एक अजीबोगरीब दृश्य ने और बढ़ा दी है। जिले के लौकही थाना स्थित कौरयाही गांव के भगवानपुर चौड़ी में धान के खेत में अचानक आसमान से एक 15 किलो का पत्थर गिरा। उसके गिरने की आवाज लगभग पांच किलोमीटर तक सुनाई दी। 

22 जुलाई 2019 को मधुबनी जिले के लौकही अंचल के ग्राम महादेव में धान में गिरा पत्थर उल्का पिंड है जिसे जांच के लिए लाया गया और इसके बाद स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसका निरीक्षण करते हुए कहा कि बिहार म्यूजियम में इसे आमलोगों को देखने के लिए रखा जायेगा।

सीएम नीतीश ने पत्‍थर को छूकर देखा
साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मधुबनी के लौकही में मिले संभावित उल्का पिंड का अध्ययन कराने का निर्देश दिया है। उन्होंने एक अणे मार्ग में इस पत्थर का अवलोकन किया। इस दौरान उन्‍होंने पत्‍थर को छूकर देखा। उन्‍होंने देखा कि इसमें चुंबकीय शक्ति है। मुख्यमंत्री ने कहा कि संभावित उल्का पिंड को फिलहाल बिहार संग्र्रहालय में रखा जाएगा, ताकि लोग देख सकें। बाद में इसे साइंस म्यूजियम में रखा जाएगा। 

खेत में धंसा पाया गया था पत्थर 

ग्रामीणों की मानें तो खेत में आसमान से तेज आवाज के साथ पत्थर गिरा था और राम एकबाल मंडल के खेत में कुछ फीट नीचे धंस गया था। यह दावा है कि पत्थर गिरने वाली जगह पर कुछ पल के लिए सफेद धुंआ देखा गया। पत्थर धंसने वाली जगह तत्काल गर्म पाई गई थी। 

इस अजीबोगरीब घटना से आश्चर्यचकित प्रत्यक्षदर्शियों में सुभाष कुमार, प्रदीप कुमार सहित कई लोगों ने तत्काल पत्थर धंसने वाली जगह पर खोदाई कर उक्त पत्थर को बाहर निकाला। इस घटना की जानकारी मिलते ही पत्थर को देखने के लिए आसपास के गांवों के लोगों की भीड़ जुटने लगी।

ग्रामीणों ने शुरू कर दी थी पूजा 
घटना की सूचना मिलने पर लौकही थानाध्यक्ष अरविंद कुमार, अंचल अधिकारी त्रिपुरारी श्रीवास्तव, प्रखंड प्रमुख वरुण कुमार मौके पर पहुंच कर उक्त पत्थर को अपने कब्जे में लेकर उसे थाना ले आए। बाद में डीएम के आदेश पर  सोमवार की रात अंचलाधिकारी ने उसे जिला कोषागार में ले जाकर सुरक्षित रखवा दिया था। हालांकि  इससे पूर्व स्थानीय लोगों ने उक्त पत्थर को निकट के ही एक पीपल वृक्ष के नीचे रखकर पूजा अर्चना शुरू कर दी थी।

खेत से पत्थर निकालने वालों ने उसका वजन तकरीबन 15 किलो तक का होने का अनुमान किया है। लोगों की मानें तो आसमान से पत्थर गिरने के साथ तेज आवाज करीब पांच किलोमीटर की दूरी तक सुनाई दी थी। लोगों ने बताया कि उक्त पत्थर चुंबकीय गुण है। पत्थर के निकट लोहा लाते ही वह उसे अपनी ओर खींच लेता था।

उल्कापिंड हो सकता है पत्थर 
भूगोलवेत्ता के अनुसार यह घटना उल्कापिंड गिरने की घटना हो सकती है। स्थानीय रामकृष्ण महाविद्यालय के भूगोल विभाग के अतिथि शिक्षक प्रो. अमित कुमार ने इस संबंध में कहा कि उल्का पिंड ग्रह के टुकड़े होते हैं तथा यह स्वतंत्र अवस्था में ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं। उल्कापिंड ब्रह्मांड में करोड़ों - अरबों की संख्या में मौजूद होते हैं तथा यह घूमते-घूमते कभी-कभी पृथ्वी की गुरुत्वकार्षण शक्ति के कारण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं एवं तेजी से पृथ्वी पर गिरने लगते हैं। 

आम तौर पर  वायुमंडलीय घर्षण से यह आसमान में ही जलकर राख हो जाते हैं। कभी-कभी ये बड़े आकार में पृथ्वी पर गिरने के समय पूरी तरीके से जल नहीं पाते एवं बचा हुआ भाग पृथ्वी पर गिर जाता है।

जांच के लिए डीएम ने लिखा पत्र
दअरसल, आसमान से कथित तौर पर  एक वजनी पत्थर के गिरने की घटना आम लोगों के लिए एक पहेली बन गई है। पहली बार इस तरह  की घटना पर हर कोई हतप्रभ है। आम लोगों में तरह-तरह की आशंकाएं भी पनप रही हैं। वहीं जिला प्रशासन ने उस पत्‍थर को जब्‍त कर लिया है। डीएम ने इसकी जांच के लिए विभाग के प्रधान सचिव को पत्र लिखा है।

पटना संग्रहालय में रखे हैं तीन और उल्का पिंड

बिहार के अलग अलग हिस्से  में गिरे तीन उल्का पिंड पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए हैं। काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ चितरंजन प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि पहला उल्का पिंड 23 मई 1950 को 3 बजे दिन में मधेपुरा शहर में एक गोदाम पर तेज गर्जना के साथ दोहरी चादरे के छत को फाड़ता हुआ धरती पर गिरा था। इसकी आवाज से इलाके में दहशत मच गयी थी। एक अंजान सा डर लोगों के मन में घर कर गया था। इस उल्का पिंड को जांच परख के बाद पटना संग्रहालय को सौंप दिया गया था।

दूसरी बार 11 अप्रैल 1964 को 5 बजे एक ही समय में दो स्थानों पर उल्का पिंड गिरे थे। पहला गंडक नदी के पूरब मुजफ्फरपुर जिले के पारु थाना में रेवाघाट के नजदीक एक खेत में और दूसरा गंडक के पश्चिम, सारण जिले के परसा थाना में एक गांव के पास खेत में उल्का पिंड गिरा था। दोनों उल्का पिंडों को संयुक्त रूप से मुजफ्फरपुर उल्का पिंड (मुजफ्फरपुर मिटियोराइट) के नाम से जाना जाता है। इन पिंडों को भी जांच के बाद पटना संग्रहालय को सौंप दिया गया था।

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