उत्तर बिहार में पुरातात्विक स्थलों पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण, मिट रही पहचान

Madhubani News भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन हैं उत्तर बिहार में मधुबनी और समस्तीपुर के आधा दर्जन स्थल। स्थानीय प्रशासन से लेकर विभागीय अधिकारी तक ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं। यहां से प्राचीन ईंट व अन्य अवशेष गायब हो रहे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Fri, 18 Nov 2022 07:41 PM (IST) Updated:Fri, 18 Nov 2022 07:41 PM (IST)
उत्तर बिहार में पुरातात्विक स्थलों पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण, मिट रही पहचान
मधुबनी के मुसहरनिया डीह के पास बनी जलमीनार। फोटो-जागरण

मधुबनी {कपिलेश्वर साह}। वर्षों पहले खोदाई के बाद उपेक्षित पुरातात्विक स्थलों की भूमि पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण हो रहा है। उत्तर बिहार में आधा दर्जन ऐसे स्थल हैं, जहां पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कराया गया है। इनमें मधुबनी के बलिराजगढ़, अंधराठाढ़ी, मुक्तेश्वर स्थान और समस्तीपुर का दलसिंहसराय स्थित पांड प्रमुख हैं। यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बोर्ड के अलावा कुछ नहीं है। कई जगह तो वह भी नहीं है। इन स्थलों के आसपास रोक के बावजूद निर्माण कार्य कराए गए हैं।

बलिराजगढ़ में डेढ़ दर्जन परिवार कर रहे अतिक्रमण

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा वर्ष 1962 से 2013 तक बाबूबरही के बलिराजगढ़ में चार बार खोदाई की गई थी। वर्ष 1962, 1972-73 व वर्ष 1973-74 में आंशिक खोदाई की गई थी। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां का दौरा किया था। केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 में खोदाई शुरू कराई। इसमें काली पालिश वाले मृदभांड, परकोटा व जली हुई ईंटों के अवशेष, आवासीय भवनों की संरचनाएं, टेराकोटा की मूर्तियां, पत्थरों की बीड जैसी वस्तुएं मिली थीं। 122.31 एकड़ में फैले बलिराजगढ़ के 200 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर रोक है, लेकिन धरातल पर तस्वीर अलग है। इसके पश्चिमी और उत्तरी दिशा के प्रवेश द्वार के निकट डेढ़ दर्जन परिवारों का अतिक्रमण है। ये लोग बलिराजगढ़ की चहारदीवारी से सटाकर घर बनाकर रह रहे हैं। बाबूबरही अंचलाधिकारी विजया कुमारी कहती हैं कि अतिक्रमण का मामला संज्ञान में नहीं आया है।

बौद्ध स्तूप की जगह पर बनी जलमीनार

अंधराठाढ़ी के पस्टन गांव का मुसहरनिया डीह बौद्धकाल से जुड़ा है। दो साल पहले शौचालय फिर जलमीनार का निर्माण हो गया है। यहां से प्राचीन ईंट सहित अन्य अवशेष गायब होते जा रहे। आस-पास की जमीन अतिक्रमित हो गई है। मिथिला ललित कला संग्रहालय, सौराठ के पूर्व अध्यक्ष डा. शिव कुमार मिश्र का कहना है कि जिलाधिकारी को पत्र लिखा गया है। यहां चार साल पहले तक निर्माण कार्य स्थल व खेतों में भगवान बुद्ध सहित अन्य मूर्तियां और मिट्टी के बर्तन आदि मिलते रहे हैं। सभी अवशेषों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पटना सर्किल और दरभंगा के महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय में रखा गया है।

मुक्तेश्वर स्थान की भूमि पर नजर नहीं आता टीला

मिथिला की प्रसिद्ध पंजी व्यवस्था से संबद्ध अंधराठाढ़ी के देवहार स्थित मुक्तेश्वर स्थान के पास 10 एकड़ भूभाग में दो दशक पहले तक कई टीले दिखते थे। अतिक्रमणकारियों ने इन्हें ध्वस्त कर खेती शुरू कर दी है। यहां खोदाई में गुप्तोत्तरकालीन भगवान विष्णु एवं गणेश, कर्णाटकालीन महिषासुरमर्दिनी एवं विष्णु प्रतिमा की पादपीठ के अलावा गणेश की भग्न कुल्हाड़ी, प्राचीन नगर के अवशेष, बर्तन के टुकड़े आदि मिले हैं।

जिसे देख कलाम ने कहा था 'अद्भुत', आज उपेक्षित

समस्तीपुर के दलसिंहसराय में पांडव स्थान में मिले अवशेष पटना संग्रहालय में हैं। इनमें ब्राह्मणी अभिलेख, राजाओं की तस्वीर युक्त तांबे के सिक्के, तांबे की कटोरियां, औजार, मुहर, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, गोमेद पत्थर, चमकीली मोतियां, काले रंग के चमकीले बर्तन, हाथी दांत एवं कुषाण कालीन सिक्के हैं। वर्ष 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इन्हें देखकर 'अद्भुत' कहा था। आज खोदाई वाले स्थल पर लोग खेती करने लगे हैं।

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