विकास को तरस रहा डुबरबोना गांव

By Edited By: Publish:Thu, 21 Aug 2014 05:43 PM (IST) Updated:Thu, 21 Aug 2014 05:43 PM (IST)
विकास को तरस रहा डुबरबोना गांव

खुटौना (मधुबनी),संस:

भारत-नेपाल सीमा से बिल्कुल सटा गांव है डुबरबोना। कारमेघ पश्चिमी पंचायत के तहत आने वाले इस गांव की आबादी तीन हजार है। कुल आबादी के लगभग साठ प्रतिशत मुस्लिम हैं, सब्जियों की खेती जिनका मुख्य पेशा है। यहां हिन्दू आबादी में अधिकतर दलित, महादलित तथा अत्यंत पिछड़ा वर्ग के हैं। पचीस प्रतिशत परिवारों के पास छोटी जोतें हैं शेष करीब करीब भूमिहीन हैं। अधिकाश लोग बाहर के महाजनों की जमीन पर बटाई खेती करते हैं।

सिंचाई की सुविधा नहीं

सिंचाई की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। चन्द लोगों की अपनी निजी बोरिंग है।

शिक्षा की स्थिति बदतर

ग्रामीण अब्दुल हफीज ने बताया कि यहां खेती से गुजारा नहीं चलता, अत: काफी लोग दूर के शहरों में मजदूरी करने चले गए हैं। कुछ खाड़ी देशों में भी काम करने गए हैं। मोहम्मद जान मौलवी (इंटर समकक्ष) पास हैं और बेरोजगार हैं। एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय, एक मकतब और एक मदरसा है। आधी लड़कियां पढ़ने स्कूल या मकतब नहीं जातीं।

बिजली को तरस रहे लोग

एक किमी से भी कम दूरी पर लौकहा बाजार में बिजली है, थोड़ा दक्षिण हटकर गांवों में भी बिजली है किन्तु यहां बिजली के खंभे तक नहीं गड़े हैं। सामाजिक कार्यकत्र्ता मो. जियाउल ने बताया कि राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के अभिलेख में गांव का विद्युतीकरण हो गया है किन्तु जमीन पर बिजली के खंभे तक नहीं गड़े हैं।

मनरेगा ख्याली पुलाव सरीखा

मनरेगा के तहत गरीबों को न्यूनतम सौ दिन की रोजगार को यहां के ग्रामवासियों के लिए ख्याली पुलाव बताया और कहा कि अधिकाश जाब कार्ड वार्ड सदस्य अपने पास रखे हुए हैं और जो भी काम हुआ है वह ट्रैक्टर और जेसीबी मशीन से हुआ है।

अंत्योदय कूपन काम का नहीं

ग्रामीण शिकायती लहजे में बताते हैं कि डीलर उन्हें अनाज नहीं देते हैं। लोगों ने जुलाई 2012, सितम्बर 2012 तथा फरवरी 2013 आदि महीनों के अनेक कूपन दिखाते हुए कहा कि अब याद भी नहीं है कि डीलर ने कब अनाज दिया था।

वृद्धावस्था पेंशन का लाभ नहीं

62 वर्षीय राजो देवी, 70 वर्षीय कमली देवी तथा 72 वर्षीय अरहूलिया देवी ने बताया कि उन्हें और उन जैसी अनेक को वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलता है। सत्तर साल की प्रमिला देवी ने बताया कि पेंशन का पैसा मिले चौदह महीना हो गए।

सरकारी मशीनरी बेकार

गरीबी, बेरोजगारी, और अंधेरे से जूझ रहे इस भारत-नेपाल सीमावर्ती गांव डुबरबोना की दास्तान का जिक्र आने पर किसान सभा के प्रखण्ड अध्यक्ष अरविन्द गुरमैता जहां जंग लगी सरकारी मशीनरी को गांव की खास्ताहाली के लिए जिम्मेवार ठहराते हैं वहीं माकपा के अंचलमंत्री उमेश घोष इन हालात से उबरने का संघर्ष को ही एकमात्र रास्ता सुझाते हैं।

कहती हैं मुखिया

पंचायत की मुखिया फुलझड़ी देवी व उनके पति समाजसेवी अर्जुन ठाकुर का कथन है कि जनता की कठिनाईयों को लेकर हम हमेशा अधिकारियों से संपर्क में रहते हैं किन्तु सरकारी अधिकारी बात को टालने तथा दूसरों पर जवाबदेही थोपने में इतने माहिर है कि हमारी हिम्मत जवाब दे देती है।

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