जिस शहर के लिए बहाया पसीना उसी ने कर दिया बेगाना

मधेपुरा । रोजगार रहा न घर आंखों में आंसू दिल में दर्द लिए वापस आ गए गांव। कोरोना ने सबक

By JagranEdited By: Publish:Sun, 24 May 2020 05:45 PM (IST) Updated:Sun, 24 May 2020 05:45 PM (IST)
जिस शहर के लिए बहाया पसीना उसी ने कर दिया बेगाना
जिस शहर के लिए बहाया पसीना उसी ने कर दिया बेगाना

मधेपुरा । रोजगार रहा न घर, आंखों में आंसू दिल में दर्द लिए वापस आ गए गांव। कोरोना ने सबको परेशान किया। लॉकडाउन के बाद तो दिन व दिन परेशानी बढ़ती ही चली गई। घर लौटे प्रवासियों ने जब दर्द बताया तो आंखें नम हो गई। किसी प्रकार कई दिनों तक भूखा-प्यासा रहना पड़ा। स्थिति जब विकट होने लगी तो किसी ने साइकिल तो किसी ने कदमों से हजारों किलोमीटर की दूरी नाप ली।

फैक्ट्रियां बंद हो जाने के बाद मजदूरी मिलना बंद हो गया। दुकानदारों ने उधार में राशन देना बंद कर दिया तो परेशानी और बढ़ गई। जहां मजदूर काम करते थे वहां के मालिकों ने भी पहचानने से इनकार कर दिया। जिस शहर में पसीना बहाकर उसे सजाया संवारा लॉकडाउन के कारण बेगाना हो गया था, जहां वर्षो रहकर काम किया वहां के लोग नफरत करने लगे थे। मकान मालिक भी किराये की मांग करने लगे। किराये नहीं देने के कारण जबरदस्ती घर को खाली करवा दिया। न खाने के लिए राशन था न रहने के लिए घर। स्थानीय प्रशासन ने भी कोई मदद नहीं की। सड़क पर निकलने पर पुलिस की लाठियां खानी पड़ी। परिवार के साथ फुटपाथ पर भी नहीं रहा जा सकता था। कोरोना वायरस के डर से सड़कें सन्ना थी। हर चौक-चौराहों पर पुलिस की तैनाती थी। घर आने के लिए कोई वाहन नहीं था। ट्रेन और बसें बंद होने से और परिस्थिति गंभीर हो गई थी।

राजस्थान और दिल्ली से साइकिल चला कर गांव पहुंचे मजदूरों ने बताया कि बाहर में कोई साथ नहीं देता। कोरोना हमलोगों के लिए आफत बनकर आया है। रोजगार चला गया। घर में भी इतना पैसे नहीं हैं कि गुजारा हो। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है। राजस्थान में मजदूरी करता था। लॉकडाउन के बाद स्थिति बिगड़ने लगी तो परिचितों से कुछ पैसे लेकर काम चलाया, लेकिन लॉकडाउन बढ़ते चला गया। पैसे खत्म हो गए। दुकानदार ने राशन देना बंद कर दिया। मकान मालिक ने भी कमरा छोड़ने को कहा। जब भूखे रहने की नौबत आ गई तो वहां से घर की ओर रूख किया। -कुंदन कुमार, जागीर टोला जीवछपुर

नई दिल्ली में एक फैक्ट्री में काम करता था। लॉकडाउन के कारण फैक्ट्री बंद हो गई। फैक्ट्री का मालिक फरार गया। बकाया पैसे भी नहीं दिए। पास में जो पैसे थे उससे कुछ दिनों तक काम चला। कोरोना के डर से घर से भी बाहर नहीं निकल रहा था। मकान मालिक ने कमरा खाली करवा दिया तो मजबूर हो गया। नई दिल्ली से पैदल ही गांव की ओर चल दिया। रास्ते में किसी-किसी ने सहयोग किया। 13 दिनों बाद गम्हरिया पहुंचा। -बिजेंद्र कुमार, फुलकाहा

पत्नी और भतीजा के साथ में लुधियाना में एक्सपोर्ट कंपनी में काम करता था। लॉकडाउन में की वजह से कंपनी बंद हो गई। मालिक ने बकाया पैसे भी नहीं दिए गए। किसी भी तरह की मदद करने से इनकार कर दिया। कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चला, लेकिन पैसे खत्म होने के बाद परेशानी बढ़ने लगी। आवेदन देने के बाद भी सरकारी मदद भी नहीं मिली। -संदीप कुमार, ईटवा जगवनी

लॉकडाउन ने मजदूरों पर मुसीबत का पहाड़ गिरा दिया। पेट की भूख और परिवार की चिता ने बैचेन कर दिया। कोई मदद नहीं मिलने से स्थिति खराब हो गई। आखिर कितने दिनों तक भूखे रहते। जान-पहचान वाले भी मदद नहीं की। राशन खत्म हो गया था। खाने के लिए कुछ भी नहीं था। लाचार होकर दिल्ली से पैदल ही घर आ गया। -ललटू यादव, जीवछपुर, गम्हरिया

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