जब भागवत बाबू ने मंत्री पद और डेढ़ लाख रुपये को मारी थी ठोकर
लखीसराय। वर्तमान समय में नेताओं के लिए न तो कोई स्थाई दल रह गया है और न ही कोई स्थाई दोस्
लखीसराय। वर्तमान समय में नेताओं के लिए न तो कोई स्थाई दल रह गया है और न ही कोई स्थाई दोस्त व दुश्मन ही। अधिकांश नेता कुर्सी पाने अथवा अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अपने धुर विरोधी दल एवं प्रतिद्वंद्वी से हाथ मिलाने से भी नहीं चूकते हैं। अधिकांश नेता नैतिकता को ताक पर रखकर राजनीति को धनोपार्जन का सबसे अच्छा प्लेटफार्म मानकर प्रमुख राजनैतिक दल से सीट पाने, जीत सुनिश्चित करने एवं कुर्सी पाने के लिए हर हथकंडा अपनाने के लिए तैयार रहते हैं। जबकि विगत तीन दशक पूर्व राजनीति में इतनी गिरावट नहीं आई थी। अधिकांश नेता जनसेवा एवं क्षेत्र के विकास को लेकर राजनीति में प्रवेश थे। तथा अपने दल के लिए समर्पित रहते थे। इसका उदाहरण सूर्यगढ़ा के पूर्व विधायक भागवत प्रसाद मेहता ने पेश किया था। जब उन्होंने पार्टी से दगाबाजी करने के एवज में मिलने वाले डेढ़ लाख रुपये एवं मंत्री पद को ठोकर मार दी थी। पूर्व विधायक भागवत प्रसाद मेहता उस घटना को याद कर वर्तमान दौर की राजनीति को देश एवं समाज के लिए घातक बताते हुए काफी चितित नजर आने लगते हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 1969 की घटना है। जब वे मात्र 32 वर्ष की उम्र में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। वे पटना के एग्जिविशन रोड स्थित उस समय के सबसे अच्छा रिपब्लिक होटल में ठहरे थे। उनके होटल में ठहरे के दूसरे दिन टिस्को कंपनी के एक बहुत बड़े अधिकारी आर एस पांडेय उनके पास आकर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को छोड़कर शोषित पार्टी ज्वाइन करने के एवज में एक लाख पचास हजार रुपये देने का ऑफर दिया। रुपये वे अपने साथ लाए थे। उस समय का डेढ़ लाख रुपये वर्तमान समय के डेढ़ करोड़ रुपये के बराबर से भी अधिक होता है। परंतु उन्होंने पार्टी से दगाबाजी करने से साफ इंकार कर दिया। इसके कुछ देर बाद ही कांग्रेस के सत्येंद्र बाबू उनके पास आकर कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करने पर किसी भी विभाग का मंत्री पद देने का ऑफर दिए। मंत्री पद के ऑफर को भी अस्वीकार करते हुए वे अपनी पार्टी से गद्दारी करने के लिए तैयार नहीं हुए।