भादो में लोग पैदल पार कर रहे मालती धार

माड़र गांव के प्रवेश द्वार पर मालती नदी बहती है। यह तीन पंचायतों माड़र उत्तरी माड़र दक्षिणी और रसौंक के लिए जीवनदायिनी है। लेकिन भादो में सूखी हुई है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 25 Aug 2022 05:41 PM (IST) Updated:Thu, 25 Aug 2022 05:41 PM (IST)
भादो में लोग पैदल पार कर रहे मालती धार
भादो में लोग पैदल पार कर रहे मालती धार

भादो में लोग पैदल पार कर रहे मालती धार

निर्भय, जागरण संवाददाता, खगड़िया : माड़र गांव के प्रवेश द्वार पर मालती नदी बहती है। यह तीन पंचायतों माड़र उत्तरी, माड़र दक्षिणी और रसौंक के लिए जीवनदायिनी है। लेकिन भादो में सूखी हुई है। माड़र निवासी शिवजी महतो (पूर्व प्रखंड प्रमुख) कहते हैं- पूर्वज कहते थे कि मालती में हाथी भी बह गया था। मालती धार (नदी) अपने असार-पसार और करंट के लिए विख्यात रही है। आज मालती धार सूख गई है। कहीं घुटना भर, तो कहीं कमर भर पानी है। जगह-जगह सावन-भादो में इसे लोग पैदल पार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्थिति बहुत ही खराब है। किसान मालती से पटवन करते थे। इस बार धार में पानी ही नहीं है। लगता ही नहीं है कि भादो है। चैत-वैशास जैसा लग रहा है।

स्थानीय किसान अंबिका प्रसाद सिंह कहते हैं- अब 63 वर्ष का होने वाला हूं, लेकिन आज तक सावन-भादो में मालती को इतनी रुग्ण नहीं देखा था। यहां के हजारों किसानों का कलेजा फट रहा है। मालती के पानी से मुफ्त में सिंचाई होती थी। पानी का जब सावन-भादो में खेत-खलिहान तक पसार होता था, तो खरीफ की ऊपज तो अच्छी होती ही थी, रबी के लिए भी जमीन तैयार हो जाती थी। अंबिका प्रसाद सिंह बताते हैं- डेढ़ बीघा में धान और एक बीघा मक्का की खेती की है। लेकिन धान और मक्के के पौधे पीले पड़ने लगे हैं। बूंदा-बांदी होती है, वर्षा नहीं हो रही है। मालती में भादो में नाव चलती थी। अभी नदी सूखी होने से कई जगहों पर जंगल-झाड़ उग आए हैं।

जून, जुलाई में औसत से काफी कम वर्षा हुई है। अगस्त भी फाका जा रहा है। क्लाइमेट चेंज हो रहा है। जहां बाढ़ नहीं आती थी वहां बाढ़ है। बाढ़ के इलाके में सुखाड़ है।

अख्तर जमील, अधीक्षण अभियंता, बाढ़ नियंत्रण अंचल, खगड़िया

क्लाइमेट चेंज तो बहाना है। बिहार में आजादी के बाद 1950, 51, 54 में भयंकर सूखा पड़ा। 1957 में तो किसानों ने जो धान बोया था वह खखरी हो गया। उस समय तो क्लाइमेट चेंज की बात नहीं थी। दरअसल, नदियों के सहज प्रभाव को बाधित किया गया है। अगर मूल में जाएंगे, तो यह क्लाइमेट चेंज का नहीं व्यवस्थागत मामला है।

दिनेश कुमार मिश्र, जल विशेषज्ञ

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