36 माह में हो चुकी 155 की सड़क हादसे में मौत

कटिहार [नीरज कुमार]। जिले में हर साल सड़क हादसे में औसतन पचास लोगों की जान जा रही है। पिछले तीन वर्षो

By Edited By: Publish:Sun, 04 Dec 2016 05:12 PM (IST) Updated:Sun, 04 Dec 2016 05:12 PM (IST)
36 माह में हो चुकी 155 की सड़क हादसे में 
मौत

कटिहार [नीरज कुमार]। जिले में हर साल सड़क हादसे में औसतन पचास लोगों की जान जा रही है। पिछले तीन वर्षों में सड़क दुर्घटना में 155 लोगों की मौत हो चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक अधिकांश मौत बाइक और भारी वाहनों के बीच टक्कर के कारण हो रही है। राष्ट्रीय उच्च पथ 31 पर गेड़ाबाड़ी से कुर्सेला के बीच अधिकांश हादसे हो रहे हैं। बेकाबू रफ्तार व धुंध हादसे का सबब बन रहा है। अप्रैल-2016 से शराबबंदी के बाद हादसे की रफ्तार में थोड़ी कमी आई है।

सड़क दुर्घटना में हुई मौतों में 80 फीसदी से भी अधिक युवा व बच्चों की संख्या शामिल है। इन हादसों में मौत के शिकार हुए लोगों के परिवार का सहारा छिन रहा है। वहीं कई परिवारों के आंगन की किलकारियां असमय ही काल कलवित हो रही है। इस साल जनवरी से अब तक राष्ट्रीय उच्च पथ पर तीन बड़े हादसे में दर्जन भर लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। गेड़ाबाड़ी के समीप दो ट्रकों की आमने सामने हुई भिड़ंत में नौ मजदूरों को जान गंवानी पड़ी थी। जबकि इस हादसे में चार लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। खेतों में काम करने वाले मृतक मजदूरों के परिवार से इस हादसे ने सहारा छीन लिया। इसी साल कु र्सेला के देवीपुर के समीप कुहासे के कारण स्कूली बस एवं ट्रक की टक्कर में दो स्कूली बच्चे सहित चार की मौत हो गयी थी। जबकि दो दर्जन से अधिक बच्चे जख्मी हो गए। इधर कुछ दिन पूर्व गेड़ाबाड़ी के मूसापुर के समीप एक ट्रक व कार की टक्कर में तीन लोगों की मौत हो गई थी। सड़क हादसे में औसतन हर सप्ताह एक की मौत हो रही है। एनएच पर गेड़ाबाड़ी, डुम्मर चौक, देवीपुर हादसों के लिहाज से डेंजर प्वाइंट बनता जा रहा है। कटिहार मनिहारी सड़क मार्ग पर भी हादसों के मामले में संवेदनशील बनता जा रही है। कुर्सेला से फारबिसगंज को जाने वाली एसएच 77 भी हादसों का सबब बन रहा है। सड़कों पर यातायात नियमों की अवहेलना और नशे में धुत चालकों द्वारा गति सीमा को धता बताते हुए फर्राटा वाहन दौड़ाने के कारण अधिकांश हादसे हो रहे हैं। मौसम में बदलाव और घना कोहरा भी सड़क हादसों का कारण बन रहा है। सड़क हादसों का शिकार हुए लोगों का समय पर समुचित उपचार नहीं हो पाने के कारण उनकी मौत हो जाती है।

वर्ष- घटनाओं में मौत

2014 - 50

2015- 55

2016- 50

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