1962 के बाद जिले से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं

जमुई [संजय कुमार सिंह]। जमुई के राजनीतिक इतिहास का यह स्याह सच है कि 1962 के बाद जिले के किसी भी विध

By Edited By: Publish:Sat, 10 Oct 2015 03:02 AM (IST) Updated:Sat, 10 Oct 2015 03:02 AM (IST)
1962 के बाद जिले से एक भी मुस्लिम विधायक नहीं

जमुई [संजय कुमार सिंह]। जमुई के राजनीतिक इतिहास का यह स्याह सच है कि 1962 के बाद जिले के किसी भी विधानसभा क्षेत्र से कोई मुस्लिम विधायक नहीं चुना जा सका है। यूं तो जिले की राजनीति में कई मुस्लिम चेहरे धुमकेतू की तरह उभरे लेकिन चुनावी मैदान में उन्हें उतारने का जोखिम कदाचित ही उठाया गया। 1962 में सिकन्दरा विधानसभा क्षेत्र से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी मुश्ताक अहमद शाह सर्वप्रथम विधायक बने। 1967 में सिकन्दरा सीट अनुजाति के लिए आरक्षित कर दी गई लिहाजा बेहतर कार्य प्रदर्शन के बावजूद भी वे सिकन्दरा से दावेदारी नहीं दे सकते थे। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें 1967 में झाझा से चुनाव लड़ाना चाहा लेकिन झाझा में मो. कुदुस की प्रभावी पकड़ को देखते हुए पार्टी ने उन्हें ही टिकट दे दिया। 1967 में मो. कुदुस को 17152 वोट मिले थे जबकि एसएसपी प्रत्याशी शिवनंदन झा को 17868 वोट। मामूली मतों के अंतर से मो. कुदुस तब चुनाव हार गए थे। एक लंबे अंतराल के बाद फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद ने झाझा से रशिद अहमद को मैदान में उतारा। रशिद को 21254 वोट मिले जबकि जदयू के दामोदर रावत ने 26184 वोट हासिल कर चुनाव जीत लिया। अक्टूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद ने एक बार फिर रशिद अहमद पर दांव खेला लेकिन जीत दामोदर की ही हुई। इन सबसे अलग चकाई व जमुई विधानसभा क्षेत्र से महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों ने चुनावी मैदान में मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारने में परहेज किया। झाझा-जमुई व चकाई में मुस्लिम मतों की निर्णायक भूमिका रही है। ऐसी बात नहीं कि जिले के मुस्लिम मतदाता पूरी तरह गोलबंद रहकर मतदान करते आए हैं। चुनाव परिणाम बताते हैं कि जिले में पार्टी से ज्यादा प्रभावी भूमिका राजनीतिक व्यक्तित्व का हुआ करती है। 9.5 फीसदी आबादी वाले इस समुदाय को अभी तक अपनी बिरादरी से विधायक चुन पाने का मौका मयस्सर नहीं हो पाया है।

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