भागवत कथा के श्रवण से पापों से मिली है मुक्ति

संवाद सूत्र,कटेया(गोपालगंज) : कलियुग श्रीमद्भागवत कथा श्रवण मात्र से ही व्यक्ति अपने समस्त पापो

By JagranEdited By: Publish:Sat, 09 Feb 2019 05:56 PM (IST) Updated:Sat, 09 Feb 2019 05:56 PM (IST)
भागवत कथा के श्रवण से पापों से मिली है मुक्ति
भागवत कथा के श्रवण से पापों से मिली है मुक्ति

संवाद सूत्र,कटेया(गोपालगंज) : कलियुग श्रीमद्भागवत कथा श्रवण मात्र से ही व्यक्ति अपने समस्त पापों से मुक्ति पा सकता हैं । राजा परीक्षित ने भी जीवन के अंत समय मे अपने आप को भगवत भक्ति मे लीन कर लिया था। जिससे उन्हें पापों से मुक्ति मिल गई। ये बातें कटेया प्रखंड के गौरा बाजार स्थित श्रीअवध किशोर ठाकुर मठ में संत शिरोमणि श्रीविश्वम्भर दासजी की देखरेख में चल रहे श्री अतिरुद्र महायज्ञ में प्रवचन देते हुए जगत गुरु रामानंदाचार्य रामानंद दासजी ने कही । उन्होंने कहा कि राजा परीक्षित ने ऋषि के शाप से मुक्ति के लिए अपने जीवन के शेष सात दिनों का सदुपयोग ज्ञान प्राप्ति और भगवत भक्ति करने में किया। इन्होंने ऋषियों से आग्रह किया कि वह सुगम मार्ग बताइए जिस पर चल कर मैं भगवान को प्राप्त कर सकूं। राजा परीक्षित के वचनों को सुन कर सभी अत्यंत प्रसन्न हुए और उनकी इच्छा को पूर्ण करने का निश्चय कर लिया। उसी समय वहां पर व्यास ऋषि के पुत्र परमज्ञानी श्रीशुकदेवजी पधारे । श्रीशुकदेवजी तथा अन्य ऋषि के आसन ग्रहण करने के बाद राजा परीक्षित ने कहा कि भगवान नारायण के सम्मुख आने से जिस प्रकार दैत्य भाग जाते हैं, उसी प्रकार आपके पधारने से महान पाप भी अविलंब भाग खड़े होते हैं। आपने स्वयं मेरी मृत्यु के समय पधार कर मुझे संपूर्ण पापों से मुक्त कर दिया है। आप योगियों के भी गुरु हैं, आपने परम सिद्धि प्राप्त की है। मुझे बताइये कि मरणासन्न प्राणी के लिए क्या कर्तव्य है। इस पर श्रीशुकदेवजी ने कहा कि अज्ञानी मनुष्य स्त्री, पुत्र, शरीर, धन, संपत्ति आदि को अपना सब कुछ समझ बैठता है।इनके माह में अपनी मृत्यु से भयभीत रहता है, पर अंत में मृत्यु का ग्रास हो कर चला जाता है। मनुष्य को मृत्यु के आने पर भयभीत तथा व्याकुल नहीं होना चाहिए। उस समय अपने ज्ञान से वैराग्य लेकर संपूर्ण मोह को दूर कर लेना चाहिए। अपनी इन्द्रियों को वश में करके उन्हें सांसारिक विषय वासनाओं से हटाकर चंचल मन को दीपक की लौ के समान स्थिर कर लेना चाहिए। इस प्रकार ध्यान करते-करते मन भगवत्प्रेम के आनंद से भर जाता है। चित वहां से हटने को नहीं करता है। यदि मूढ़ मन रजोगुण और तमोगुण के कारण स्थिर न रहे तो साधक को व्याकुल नहीं हो कर धीरे धीरे धैर्य के साथ उसे अपने वश में करने का उपाय करना चाहिए। उसी योग धारणा से योगी को भगवान के दर्शन हृदय में हो जाते हैं और भक्ति की प्राप्ति होती है। शनिवार को भी महायज्ञ में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही।

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