तो सीता ने फल्गु को शुभ कार्यो से वंचित रहने का दिया था श्राप

-फल्गु नदी के पूर्वी तट पर सीताकुंड एक पवित्र पिंड वेदी -वहां दशरथ के हाथ प्रतीक के रूप में नजर आते हैं जागरण संवाददाता गया

By JagranEdited By: Publish:Sat, 14 Sep 2019 08:15 PM (IST) Updated:Sat, 14 Sep 2019 08:15 PM (IST)
तो सीता ने फल्गु को शुभ कार्यो से वंचित रहने का दिया था श्राप
तो सीता ने फल्गु को शुभ कार्यो से वंचित रहने का दिया था श्राप

गया । गयाजी को लेकर कई कथाएं धार्मिक पुस्तकों में हैं। इन्हीं में से एक कथा श्री राम के पिंडदान से जुड़ा है। धार्मिक ग्रंथ बताते हैं, त्रेता युग में भगवान श्री राम वनवास की अवधि पूरा कर अयोध्या लौट गए। तदोपरांत श्राद्ध करने गयाधाम आए। भगवान जानते थे कि गयाधाम में पितृ स्वजनों के हाथ से पिंड ग्रहण करते हैं और वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इसी परंपरा को निभाने के लिए श्री राम-जानकी सहित लक्ष्मण को लेकर गयाजी आए। फल्गु नदी पहुंचे। पिंडदान की सामग्री लाने के लिए दोनों भाई बाजार गए। सीता फल्गु नदी के तट पर दोनों भाइयों का इंतजार करने लगी। उसी समय राजा दशरथ का हाथ फल्गु नदी के बालू से निकला। सीता बेचैन हो गई। दशरथ का वह हाथ पिंड के लिए तड़पने लगा। सीता के काफी मना करने के बाद भी दशरथ का हाथ बराबर पिंड की मांग करता रहा है। यहां तक कह डाला-अब मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकता। समय निकला जा रहा है। इसलिए बालू का पिंड ही दे दो। सीता बेचैन स्थिति में राजा दशरथ की बात मान गई और बिना स्वामी की प्रतीक्षा किए उसने बालू का पिंड बनाकर दशरथ के हाथ में रख दिया। वह अंतध्र्यान हो गए। लेकिन सीता ने जब दशरथ के हाथों में बालू का पिंड दे रही थीं उस वक्त गवाह के रूप में फल्गु नदी, केतकी पुष्प, वट वृक्ष और गौ को रखा।

भगवान श्रीराम अनुज लक्ष्मण के साथ जब फल्गु के तीरे पहुंचे तो सीता ने सारी वृतांत सुनाई। श्रीराम नहीं माने। तब साक्षी के रूप में सभी को खड़ा किया गया, लेकिन फल्गु, गौ और केतकी ने पिंडदान करने के कर्म से इन्कार कर गए। तब सीता ने फल्गु को अंत:सलिला, गौ विष्टा भक्षण और केतकी पुष्प को शुभ कार्यो से वंचित रहने का श्राप दिया। वट वृक्ष ने गवाही दी उसे अक्षय का वरदान मिला।

इसी मान्यता के तहत फल्गु नदी के पूर्वी तट पर सीताकुंड एक पवित्र पिंड वेदी है। वहां दशरथ के हाथ प्रतीक के रूप में नजर आते हैं। मुख्य पिंडवेदियों में इनका स्थान है। ऐसी मान्यता है कि बालू के पिंड देने की परंपरा उसी समय से प्रारंभ हुई।

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