मजबूरी कहें यी बिहारी जुगाड़, गया में पटवन के लिए बांस के खंभे से खेत तक ले गए बिजली के तार ले गए किसान

बिहार के गया स्थित कोंच में किसान मजबूरी में पटवन के लिए बांस के खंभे से खेत तक बिजली के तार ले गए हैं। इससे खतरा बना रहता है। करंट लगने के कारण कई लोगों की जान भी जा चुकी है।

By Amit AlokEdited By: Publish:Mon, 04 Jan 2021 10:10 AM (IST) Updated:Mon, 04 Jan 2021 10:10 AM (IST)
मजबूरी कहें यी बिहारी जुगाड़, गया में पटवन के लिए बांस के खंभे से खेत तक ले गए बिजली के तार ले गए किसान
गया में पटवन के लिए बांस के खंभे से खेत तक ले गए बिजली के तार। तस्‍वीर: जागरण।

गया, जागरण संवाददाता। बिजली विभाग की लापरवाही कहें या ग्रामीणों की मनमानी। गया जिले के कोंच प्रखण्ड के 18  पंचायतों में कृषि कार्य को लेकर बांस के खम्भे के सहारे बिजली ले जाने की व्यवस्था है। जो दुर्घटना को आमंत्रण देता है । वैसे आज तक  विभाग ने  खेतों तक बिजली नहीं पहुंचाई।

जानकारी के अनुसार ग्राम पंचायत कोराप, तिनेरी, आंती, चबुरा, काबर, अदई, सिमरा, उतरेन, कुवां, असलेमपुर, गरारी, श्रीगांव, केर, गौहरपुर, खजुरी, मंझियावां, कोंच, परसावां आदि पंचायतों के विभिन्न गांव के बधारों में खेतों तक बिजली पहूंचाने के लिए  विभाग के द्वारा खम्भा व तार की व्यवस्था नहीं किया गया है। जिसका नतीजा है कि किसानों द्वारा अपने जुगाड़ से बांस के खम्भा में बिजली की तार से खेतों तक बिजली पहूंचाकर सिंचाई के काम तो कर रहे हैं। लेकिन आये दिन लोगों को बिजली के तार में सटने या बांस में करंट रहने के कारण जानें जा चुकी है । इसके बावजूद भी किसानों की लाचारी कहें या मनमानी जिससे आज भी लोहे या सिमेंट के खम्भे के अभाव में विजली के तार बांस के खम्भे के द्वारा हीं खेतों तक पगूंचाया गया है। जिससे करंट लगने की भय बना रहता है । जहां एक ओर विजली आने से डीजल तेल की खपत किसानों की सिचाईं में कम हो गया है। वहीं बिजली के करंट लगने से ज्यादातर किसानों की जानें जा रही है। किसान बाल कुमार यादव, मिथलेश सिंह, बालेन्द्र शर्मा आदि ने कहा कि यदि कि यदि बिजली विभाग के द्वारा खेतों तक बिजली पहुंचाने का कार्य कर दिया होता तो किसानों के द्वारा बांस के खम्भा से विजली ले जाने का काम क्यों किया जाता। जबकि किसानों के द्वारा बिजली विभाग को बिजली बिल भी चुकता करनी पड़ती है। इसके बावयूद भी बिजली के तार व खम्भे की व्यवस्था स्वयं किसानों को करनी पड़ती है।

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