टिकारी नगर पंचायत को नगर परिषद का दर्जा दिए जाने पर हाईकोर्ट में चुनौती, 25 फरवरी को अगली सुनवाई
गया जिले के टिकारी नगर पंचायत को कैबिनेट द्वारा नगर परिषद का दर्जा दिये जाने के बाद शुरू हुई राजनीति अब उच्च न्यायालय जा पहुंचा है। प्रखंड के छठवां एवं आमाकुआं पंचायत के मुखिया ने उच्च न्यायालय में नगर परिषद बनाने के फैसले को चुनौती दी है।
संवाद सहयोगी, टिकारी (गया)। गया जिले के टिकारी नगर पंचायत को कैबिनेट द्वारा नगर परिषद का दर्जा दिये जाने के बाद शुरू हुई राजनीति अब उच्च न्यायालय जा पहुंचा है। प्रखंड के छठवां एवं आमाकुआं पंचायत के मुखिया द्वारा अधिवक्ता के माध्यम से उच्च न्यायालय में नगर परिषद बनाने के फैसले को चुनौती दी है। न्यायालय में दायर किये गये याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मधुरेश प्रसाद द्वारा सरकार से दो सप्ताह के भीतर जवाब यानी काउंटर एफिडेविट की मांग की है।
अधिवक्ता अजय प्रसाद व अंजनी कुमार सिन्हा द्वारा सुनवाई के क्रम में यह दलील दी गई कि धारा 3, 4, 5 व 6 के अनुसार बिना जांच किये व बिना आपत्ति पर सुनवाई किये हुए अधिसूचना जारी करना विधि संगत नहीं है। न्यायालय ने एक पक्ष की दलील को सुनते हुए सरकार से जवाब तलब किया है व 25 फरवरी को अगली सुनवाई की तिथि निर्धारित की है।
20 दिसम्बर 2020 को नगर परिषद की जारी हुई थी अधिसूचना
ज्ञात हो कि बीते 20 दिसम्बर को बिहार कैबिनेट द्वारा क्षेत्र के चार ग्राम पंचायत के 11 राजस्व ग्राम को शामिल करते हुए टिकारी नगर पंचायत को नगर परिषद बनाये जाने की अधिसूचना जारी की थी। सरकार व प्रशासन द्वारा नगर परिषद में 50 प्रतिशत से कम आबादी को कृषि पर निर्भर बताता गया था। नगर परिषद में शामिल किए गये छठवाँ पंचायत के जगदीशपुर, निसुरपुर, चिरैली व आमाकुआँ पंचायत के मखपा ग्राम, पलुहड़ पंचायत के जोलाहबिगहा, जलालपुर व जयनंदन बिगहा, बेल्हड़िया पंचायत के बेल्हड़िया, सलेमपुर, सियांनादपुर, शेरपुरा को शामिल किया गया है। शामिल किए गये लोगो द्वारा लगातार मानक के अनुरूप नगर परिषद का दर्जा नही देने का आरोप लगाया जा रहा है।
पॉलिटिक्स डैमेज का खतरा
ग्राम पंचायत के कई गांव को नगर परिषद में शामिल किए जाने के बाद कई जन प्रतिनिधियों व नेताओं को पॉलिटिक्स डैमेज का खतरा सता रहा है जो उनके विरोध करने का एक कारण है। कई ऐसे जन प्रतिनिधि है, जो शहरी हो जाएंगे और ग्राम पंचायत के चुनाव में अपनी भागीदारी दर्ज कराने से वंचित हो जाएंगे। वहीं कई को यह भी डर है कि उनके वोट बैंक को काफी नुकसान पहुंचेगा।