दीपावली पर दीरी दीये की मांग अधिक

दीयों की रोशनी के बिना दिवाली अधूरा है। आधुनिक चकाचौंध में भी मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा बरकरार है। पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में भी मिट्टी के दीये का इस्तेमाल अधिक करते हैं। ऐसे में कुम्हारों की व्यस्तता बढ़ गई है। जोरशोर से दीये बनाने में जुटे हैं। तीन प्रकार दीये बनाए जा रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 16 Oct 2019 07:41 PM (IST) Updated:Wed, 16 Oct 2019 10:09 PM (IST)
दीपावली पर दीरी दीये की मांग अधिक
दीपावली पर दीरी दीये की मांग अधिक

संजय कुमार, गया

दीयों की रोशनी के बिना दिवाली अधूरा है। आधुनिक चकाचौंध में भी मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा बरकरार है। पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में भी मिट्टी के दीये का इस्तेमाल अधिक करते हैं। ऐसे में कुम्हारों की व्यस्तता बढ़ गई है। जोरशोर से दीये बनाने में जुटे हैं। तीन प्रकार दीये बनाए जा रहे हैं।

दीये बना रहे रामजी प्रजापत कहते हैं, कि सबसे अधिक दीरी दीये (छोटा दीया) की मांग में बाजार में है। पूजा-पाठ में इसका इस्तेमाल अधिक लोग करते हैं। दीरी दीये कम घी के मात्रा के बावजूद जल जाता है। इसी कारण लोग इसका इस्तेमाल अधिक करते हैं।

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दोरस मिट्टी के बनते हैं दीये

दीये बनाने में दोरस मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। दोरस मिट्टी में बालू का अंश कम होता है। इसके कारण सूखने बाद दीया फटता नहीं है। दीये बनाने को लेकर मिट्टी ग्रामीण क्षेत्र से मंगाया जाता है। प्रत्येक ट्रैक्टर मिट्टी का भाड़े एक हजार रुपये है। सबसे अधिक मिट्टी चाकंद क्षेत्र से लाते हैं।

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एक ट्रैक्टर मिट्टी से बनते

हैं 80 हजार दीये

एक ट्रैक्टर मिट्टी में 80 हजार दीरी दीये बनाए जाते हैं, जिसका तैयारी तीन माह पहले की जाती है। कुम्हारिन उषा देवी कहती हैं, मिट्टी आने के बाद पानी डालकर गीला किया जाता है। उसके बाद मिट्टी को गूंथा जाता है। मिट्टी की लोई बनाने के बाद चाक पर रखकर दीये का रूप दिया जाता है। दीये बनाने में काफी मेहनत लगती है।

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225 रुपये में एक हजार दीरी दीये

दीया थोक विक्रेता अधिक खरीदते हैं। जिले का अलावा सासाराम, पटना, जहानाबाद, औरंगाबाद एवं झारखंड के चतरे में भेजा जाता है। थोक विक्रेता को दीरी दीया 225 रुपये में हजार, मीडियम साइज के दीये 450 रुपये प्रति हजार और बड़े दीये 200 रुपये प्रति सैकड़ा बिकता है।

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चाइनिज दीये का प्रभाव नहीं

मिट्टी के बने दीया की अपेक्षा चाइनिज का बाजार में विशेष प्रभाव नहीं है। दीया बनाने वाले पावरगंज मोहल्ला निवासी श्यामजी प्रजापत कहते हैं, दीपावली को बनाए गए सभी दीप की बिक्री आसानी से हो जाती है। चार-पांच वर्ष पहले चाइनिज दीया ग्राहक अधिक पसंद करते थे। इधर कुछ वर्षो से मिट्टी के बने दीये अपना स्थान पर बनाए हुए हैं। उन्होंने कि दीपा बनाने का हमारा पुश्तैनी काम है। घाटा हो या फायदा, काम करना पड़ता है। फिर भी दीपावली में दीये से अच्छी आमदनी हो जाती है।

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मोटर चाक की मांग

दीये बनाने रहे रामजी प्रजापत का कहना है कि हाथ वाले चाक से प्रत्येक दिन चार हजार दीये बनते हैं। अगर सरकार कुम्हार समाज को मोटर चाक देती है तो एक दिन में छह से आठ हजार दीये तैयार हो सकते हैं। साथ ही कम मेहनत के साथ समय की भी बचत होगी। सरकार से मांग हमें मोटर चाक जल्द से जल्द उपलब्ध कराए।

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दीपावली में मिट्टी के दीये का काफी महत्व है। मंदिरों में पूजा-पाठ के साथ घरों में मिट्टी के दीये का उपयोग करते हैं। यह शुद्धता का प्रतीक है। इसीलिए इसे प्राथमिकता दी जाती है।

डॉ.कौशलेंद्र प्रताप, अध्यक्ष चेंबर ऑफ कॉमर्स गया

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सनातन धर्म में मिट्टी के दीये को पवित्र माना गया है। इसी उद्देश्य से दीपावली व छठ पर्व में मिट्टी के दीये का उपयोग हमलोग करते हैं। मिट्टी के बने दीये कम पैसे में अच्छे मिलते हैं।

बृजनंदन पाठक, समाजसेवी

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