जागरुकता आने से चुनाव में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी

देश को आजादी मिली थी तब चुनाव देश हित व जनसेवा की भावना से लड़ा जाता था। क्योंकि चुनाव के मैदान में अधिकांश प्रत्याशी आजादी की लड़ाई लड़ने वाले ही होते थे।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 09 Apr 2019 10:04 PM (IST) Updated:Tue, 09 Apr 2019 10:04 PM (IST)
जागरुकता आने से चुनाव में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी
जागरुकता आने से चुनाव में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी

गया । देश को आजादी मिली थी तब चुनाव देश हित व जनसेवा की भावना से लड़ा जाता था। क्योंकि चुनाव के मैदान में अधिकांश प्रत्याशी आजादी की लड़ाई लड़ने वाले ही होते थे। चुनावी वायदे कम होते थे और चुनावी सभाएं भी इक्का-दुक्का जगहों पर होती थीं। इसमें प्रांत स्तरीय नेताओं का संबोधन होता था। प्रचार की जिम्मेदारी पार्टी और प्रत्याशी समर्थकों व कार्यकर्ताओं के भरोसे होता था। जो तन्मयता से अपने दायित्व का निर्वहन करते थे। कभी-कभार लाउडस्पीकर लगा एक-दो टमटम प्रचार में दिखता था। उक्त संस्मरण बसाढ़ी पंचायत के पूर्व मुखिया पारसनाथ शर्मा चुनाव तब और अब पर बताए। तीन दशक तक मुखिया रहे श्री शर्मा पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग वर्ष 1957 में बसाढ़ी मध्य विद्यालय मतदान केंद्र पर किया था। वे कहते हैं कि पहले महिलाएं लगभग 20 प्रतिशत मतदान करती थीं। झूठे वायदे और प्रलोभन पर चुनाव नहीं लड़ा जाता था। आज तो धन व बल चुनाव पर हावी है।

वे कहते हैं, बिहार में पहली बार बूथ लूट की घटना औरंगाबाद जिले में हुई थी। उसके बाद बूथ लूट प्रचलन में आ गया। इससे अभिवंचित वर्ग के लोगों को मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित कर दिया जाता था। लेकिन इस पर चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के कार्यकाल में पूर्णतया रोक लगा और चुनाव प्रक्रिया में बदलाव आया। आयोग मतदाता जागरुकता के लिए पहल की और फिर मतदान का प्रतिशत भी बढ़ा।

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