बच्चों को जीवन जीने की कला सिखाते हैं 90 वर्षीय सुंदरानी, जमुनालाल बजाज पुरस्कार से हो चुके सम्मानित

जमुनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित 90 वर्षीय भाई द्वारको सुंदरानी समन्वय आश्रम व समन्वय विद्यापीठ के बच्चों को शिक्षित कर जीवन जीने की कला सिखाते हैं। मोहनपुर प्रखंड के बगहा गांव में समन्वय विद्यापीठ आवासीय परिसर में कुल 160 मूसहर और भोक्ता जाति के बच्चे अध्ययनरत हैं।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Thu, 18 Feb 2021 11:31 AM (IST) Updated:Thu, 18 Feb 2021 11:31 AM (IST)
बच्चों को जीवन जीने की कला सिखाते हैं 90 वर्षीय सुंदरानी, जमुनालाल बजाज पुरस्कार से हो चुके सम्मानित
बच्चों को जीवन जीने की कला सिखाते 90 वर्षीय सुंदरानी। जागरण।

जागरण संवाददाता, बोधगया (गया)। जमुनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित 90 वर्षीय भाई द्वारको सुंदरानी समन्वय आश्रम व समन्वय विद्यापीठ के बच्चों को शिक्षित कर जीवन जीने की कला सिखाते हैं। आश्रम परिसर और जिले के मोहनपुर प्रखंड के बगहा गांव में समन्वय विद्यापीठ आवासीय परिसर में कुल 160 मूसहर और भोक्ता जाति के बच्चे अध्ययनरत हैं।

आवासीय स्कूल में अध्यनरत बच्चे जिले के ग्रामीण सुदूर क्षेत्र में रहने वाले मुसहर व भोक्ता जाति के हैं। दोनों जगहों पर बालवाड़ी से लेकर आठवीं कक्षा तक की नैतिक शिक्षा देकर एक अलग समाज तैयार किया जा रहा है। सुंदरानी की माने तो यहां प्रदत शिक्षा जीवन के लिए, जीवन की और जीवन के द्वारा है। जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समवाय शिक्षा पर आधारित है। वे कहते हैं कि इस शिक्षा का मकसद सिर्फ जीवन बदलना और संस्कार में बदलाव लाना है। इससे स्कूल से घर जाने पर बच्चे का संस्कार में परिवर्तन होता है।

नतीजा इसका असर शिक्षा पर ही पड़ता है। इसीलिए आवासीय शिक्षा बेहतर है। वे कहते है कि इस शिक्षा को प्राप्त कर इस समाज के कई युवक आज खुद शिक्षक बने है और समाज के बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। समन्वय आश्रम द्वारा संचालित आवासीय स्कूल के बच्चों का दिनचर्या भी अलग है। प्रतिदिन सुबह चार बजे उठना योगासन, प्रार्थना के बाद नास्ता व वर्ग संचालन, सफाई और गौशाला का कार्यक्रम के बाद भोजन दोपहर विश्राम का शामिल है। शाम में फिर से वर्ग संचालन, संगीत, खेल, प्रार्थना व रात्रि भोजन के पश्चात विश्राम शामिल है। बता दे कि सुंदरानी महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण, विनोबा भावे से प्ररित रहे है और इन सभी का सानिध्य में रहे हैं। बोधगया के इस आश्रम में जेपी और विनोबा जी का भी आगमन हुआ है।

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