पुलिस की मुखबीरी फेल, 'खबरी लाल' का अकाल

दरभंगा। नाना पाटेकर और राजकुमार अभिनीत फिल्म 'तिरंगा'में अपने अंदाज में 'खबरी लाल' का करैक्टर कौन भू

By Edited By: Publish:Tue, 27 Oct 2015 01:12 AM (IST) Updated:Tue, 27 Oct 2015 01:12 AM (IST)
पुलिस की मुखबीरी फेल, 'खबरी लाल' का अकाल

दरभंगा। नाना पाटेकर और राजकुमार अभिनीत फिल्म 'तिरंगा'में अपने अंदाज में 'खबरी लाल' का करैक्टर कौन भूल सकता है। 'खबरीलाल' पुलिस के लिए ज्यादा विश्वसनीय खबरें लाता था। पुलिस महकमा हो या अन्य कोई सुरक्षा एजेंसियां 'खबरीलाल' के रूप में मुखबीरों का बड़ा महत्व है। यूं कहें तो मुखबीरों की बदौलत ही पुलिस और उन तमाम एजें¨सया अपना काम सहुलियत और जल्दबाजी में सॉल्व कर पाती हैं। गुप्त सूचना के आधार पर किसी घटना का उदभेदन या अपराधियों का पकड़ा जाने वाला वक्तव्य पुलिस के लिए'तकिया कलाम'है। लेकिन, इन दिनों मुखबीर पुलिस को ढूंढ़े नहीं मिल रहे। अब पुलिस लाचार पड़ने लगी है। हाल के दिनों में चोरी-डकैती, हत्या, लूट जैसी आपराधिक घटनाओं में वृद्धि और उसको लेकर फजीहत झेल रही पुलिस को मुखबीरों की कमी कुछ ज्यादा ही खटक रही है। पुलिस के एक आलाधिकारी ने सोमवार को कहा, हाल की घटनाएं खासकर ट्रेडिशनल तरीके से जिस तरह डकैतियां हुई हैं, उसमें मुखबीरों का रोल काफी बढ़ जाता है। खुफिया तंत्र मजबूत नहीं रहने के चलते ही डकैतों तक पहुंचना मुश्किल हो गया। संचार क्रांति के युग में फेसबुक, वाट्सएप्प, ट्विटर, मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस जैसे तकनीकों के बावजूद मुखबीरों की अहमियत कम नहीं है। इन दिनों वैसे भी आपराधिक प्रवृत्ति के लोग ज्यादा ही सक्रिय हो गए हैं। उनकी गतिविधियां पुलिस की सुस्ती के कारण बढ़ गई हैं।

कई बड़े मामले अनसुलझे

अक्सर किसी तरह के संगीन अपराधों को ट्रेस करने में पुलिस को अच्छी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पिछले दिनों डकैती की लगातार घटनाओं के लिए सुस्त पुलि¨सग के साथ मुखबीरी फेल होना ही मुख्य कारण रहा। मुखबीरों का सहयोग नहीं मिलने के चलते पुलिस छापा तो मारती है, लेकिन रिजल्ट नहीं मिल पाता है। इन्हीं कारणों से कई बड़े मामलों को सुलझाने में कामयाबी नहीं मिल पा रही। ऐसे मामलों की लंबी फेहरिश्त है। कई ऐसे मामले लंबित पड़े हुए हैं, जिनमें अभी तक आरोपियों का कुछ पता नहीं चल पाया है। अलग-अलग टीम का गठन भी हुआ, पर इन्हें सुलझा पाने में पुलिस के पसीने छूट जा रहे हैं।

मधुबनी पुलिस के चलते ही एपीएम लूटकांड सुलझा

11 अक्टूबर से 17 अक्टूबर यानी सात दिनों में सात डाके डालकर पुलिस को खुला चैलेंज देने वाले डकैतों के एक गिरोह को पुलिस ने 23 अक्टूबर को काबू करने का दावा किया। इसी गिरोह ने एपीएम थाने के तमोलिया पोखर रतनपुरा गांव में मंगलवार की रात यानी 13 अक्टूबर को डाका डाला था। लेकिन, अब सामने आया है कि यह गैंग भी मधुबन पुलिस की तत्परता के चलते ही पकड़ा जा सका। दरअसल, मधुबनी का कोई अफसर इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस पर लिस¨नग कर रहा था। तभी उस अफसर को अपराधियों की साजिश का पता चला और उसने तुरंत दरभंगा पुलिस को इतला कर दिया। जिससे बहेड़ी के बंदा गांव में छापा मारक अपराधियों को ऐन मौके पर पकड़ना मुमकिन हुआ।

पुलिस को क्यों नहीं मिल रहे मुखबीर

मुखबीरों को उसकी मदद की एवज में आर्थिक सहायता देने का सरकारी प्रावधान है। लेकिन, भ्रष्टाचार और पुलिसिया रौब के चलते अक्सर उनका हक मारा जाता है। पुलिस की मुखबीरी करने वाले लोगों की जान माल का खतरा रहता है। कई बार उन्हें इसी के चलते जान गंवानी पड़ती है। कई बार पुलिस महकमे के भ्रष्ट लोग ही उसकी जान के पीछे पड़ जाते हैं। दूसरी ओर पुलिस बल में कमी और काम के बोझ तले इस कदर दबे हुए हैं कि उन्हें फील्ड वर्क करने के लिए वक्त ही कम नहीं मिल पा रहा। मुखबीरी के लिए लोगों से संर्पक साधने और उनका भरोसा जीतने के लिए फील्ड में आना-जाना तो पड़ेगा।

इसलिए अहम हैं मुखबीर

कानून व्यवस्था को संभालने का काम पुलिस के हाथ ही होता है। आपराधिक गतिविधियों को रोकने, अपराधियों को पकड़ने, अपराधियों के द्वारा किये जाने वाले अपराधों की खोजबीन करने, देश की आंतरिक सम्पत्ति की रक्षा करने और जो अपराधी हैं और उनका अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य जुटाना ही पुलिस का कार्य है। अपराधी घोषित करने के बाद पुलिस संबन्धित व्यक्ति को अदालत को सौंपती है। यह न्यायव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करती है, लेकिन किसी अपराधी को सजा देना पुलिस का काम नही होता है, सजा देने के लिये अदालतों को पुलिस द्वारा अपराधी के खिलाफ जुटाये गये पुख्ता सबूत और जानकारी पर निर्भर रहना होता है। साथ ही इसी जानकारी और सबूतों के आधार पर ही किसी व्यक्ति को अपराधी घोषित किया जा सकता है। इन सभी कार्यों में मुखबीरों यानी गुप्तचरों का बड़ा रोल होता है।

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