यहां के हाई स्कूलों में बिना शिक्षक हो रही पढ़ाई, कॉलेजों की स्थिति और भी खराब

कटिहार में इंजीनियङ्क्षरग महाविद्यालय की स्थापना एक बड़ी उपलब्धि है। अनुमंडल स्तर पर आईटीआई एएनएम प्रशिक्षण महाविद्यालय आदि की व्यवस्था ने शिक्षा को लेकर हो रहे सकारात्मक पहल की ओर तो इशारा किया है लंकिन यहां भी आधारभूत संरचना व संसाधन का अभाव रोड़ा अटका रही है।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 05:37 PM (IST) Updated:Sat, 26 Sep 2020 05:37 PM (IST)
यहां के हाई स्कूलों में बिना शिक्षक हो रही पढ़ाई, कॉलेजों की स्थिति और भी खराब
कटिहार के सरकारी स्‍कूलों में शिक्षकों की कमी।

कटिहार, जेएनएन। चुनाव में युवा वर्ग की सहभागिता सबसे अधिक है। मताधिकार से लेकर चुनावी जंग का दायित्व भी अप्रत्यक्ष रूप से युवावर्ग के कंधों पर है। इसके बावजूद युवाओं के भविष्य की परवाह चुनावी मुद्दा नहीं बन पा रही है। शिक्षा चुनावी मुद्दा की सूची से भी लगभग गायब ही रही है। उम्मीदों व दर्द के बीच शिक्षा की नैय्या मझधार में फंसी है वर्षों से इसे खेवनहार की तलाश है।

यद्यपि गुजरे दिनों में शिक्षा के विकास को आधारभूत संरचना दुरूस्त की गई है। जिले में इंजीनियरिंग कॉलेज स्‍थापना एक बड़ी उपलब्धि है। अनुमंडल स्तर पर आईटीआई, एएनएम प्रशिक्षण महाविद्यालय आदि की व्यवस्था ने शिक्षा को लेकर हो रहे सकारात्मक पहल की ओर तो इशारा किया है, लंकिन यहां भी आधारभूत संरचना व संसाधन का अभाव रोड़ा अटका रही है। उच्च व उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की घोर कमी एक बड़ा सवाल है। कुल मिलाकर देखे तो फिलहाल माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था नामांकन और प्रमाणपत्र प्राप्त तक निर्भर है। जबकि महाविद्यालयों में भी शिक्षकों की कमी कमोवेश इसी स्तर तक सिमटी हुई है। वजह है कि डिग्री और प्रमाणपत्र के बाद भी युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं। इस चुनावी शोर में एक बार फिर यह अहम सवाल गुम है।

माध्यमिक व प्लस टू विद्यालयों के साथ कॉलेजों में नहीं हैं शिक्षक :

इसे सिस्टम का दोष कहे या स्पष्ट नीति का अभाव, लेकिन जिले में संचालित माध्यमिक, उत्क्रमित माध्यमिक व पल्स टू विद्यालयों में शिक्षकों का घोर अभाव है। जिले में 1114 प्राथमिक विद्यालय, 717 मध्य विद्यालय, 166 माध्यमिक विद्यालय व 46 प्लस टू विद्यालय संचालित हैं। जबकि चार सरकारी महाविद्यालय व लगभग आधा दर्जन प्राइवेट कॉलेज का संचालन किया जा रहा है। लेकिन हर स्तर पर शिक्षकों की कमी बड़ी बाधा बनी हुई है। किसी भी विद्यालय में विषयवार शिक्षकों की पदस्थापना नहीं है। आलम यह है कि जिले के विभिन्न प्रखंडों में उत्क्रमित हुए विद्यालय के उत्क्रमण के कई बाद भी कई विद्यालय में एक भी शिक्षक पदस्थापित नहीं है। यद्यपि यहां आलीशान भवन तैयार हो चुका है। लेकिन वर्षों बाद भी शिक्षकों की कमी के कारण इसे उपयोग में नहीं लाया जा रहा है। यद्यपि इस बार भी इन विद्यालय के बच्चों ने कोङ्क्षचग संस्थानों के बदले बेहतर परिणाम लाकर जिले सहित विद्यालय को गौरवान्वित किया है। इसकी बदौलत बेहतर परिणाम देकर बोर्ड ने भी अपनी पीठ थपथपाई है। लेकिन परिणाम बेहतर कैसे हुआ और बिना शिक्षक बच्चों ने कैसे बाजी मारी इसका आकलन करने की जहमत नहीं उठाई जा रही है।

सिस्टम सुधारने की जद्दोजहद में पीस रहे कॉलेज छात्र :

विश्वविद्यालयों में सत्र नियमित करने की होड़ और मधेपुरा एवं पूर्णिया विश्वविद्यालय की आपसी कलह में कॉलेज छात्र पीस रहे हैं। बता दें कि अंगीभूत महाविद्यालयों में शिक्षकों की कमी का आलम यह है कि कई विभाग बिना प्राध्यापक के ही चल रहे हैं। सत्र नियमित करने को लेकर लगातार परीक्षा और व्यवस्था के जरिए सुधार की कवायद तो हो रही है, लेकिन बच्चे कैसे शिक्षित हो और उनका भविष्य उज्जवल हो, इसकी पहल नहीं हो रही है। कमोवेश यही स्थिति महाविद्यालय से लेकर प्रशिक्षण संस्थान एवं अभियंत्रण महाविद्यालय, पॉलिटेकनिक व अन्य विद्यालयों की है। ऐसी स्थिति में शिक्षा व्यवस्था का दर्द साफ झलकता है।

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