मुंगेर में मां सीता ने किया था छठ व्रत

ऋषि मुद्गल के आश्रम में मां सीता ने छठ किया था।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 12 Nov 2018 02:32 PM (IST) Updated:Mon, 12 Nov 2018 02:32 PM (IST)
मुंगेर में मां सीता ने किया था छठ व्रत
मुंगेर में मां सीता ने किया था छठ व्रत

मुंगेर (जेएनएन) : लोक आस्था का महापर्व छह का मुंगेर में विशेष महत्व है। छठ को लेकर चार लोक कथा प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार छठ की शुरुआत मुंगेर से हुई थी। आनंद रामायण के अनुसार मुंगेर जिला के बबुआ घाट से 2 किलोमीटर पर गंगा के बीच में पर्वत पर ऋषि मुद्गल के आश्रम में मां सीता ने छठ किया था। जहां मां ने छठ किया था वह स्थान वर्तमान में सीता चरण मंदिर के नाम से जाना जाता है। तब से ही मिथिला सहित पूरे देश मे छठ मनाया जाने लगा है।

-----

आनंद रामायण में है इसका वर्णन

सीता चरण पर कई वर्षों से शोध कर रहे शहर के प्रसिद्ध प्रोफेसर सुनील कुमार सिन्हा ने कहा कि आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक सीता चरण और मुंगेर के बारे में उल्लेख किया गया है। उन्होंने कहा कि आनंद रामायण के अनुसार राम द्वारा रावण का वध किया गया था। चूकि रावण एक ब्राह्मण था, इसलिए राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस ब्रह्म हत्या के पापमुक्ति के लिए आयोध्या के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ ने तत्कालीन मुगदलपुर (मुंगेर के पूर्व का नाम) में ऋषि मुग्दल के पास राम सीता को भेजा। भगवन राम को ऋषि मुद्गल ने वर्तमान कष्टहरणी घाट में ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ करवाया और माता सीता को अपने आश्रम में में ही रहने के आदेश दिए। चूकि महिलाएं यज्ञ में भाग नही ले सकती थी, इसलिए माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर हीं उनके निर्देश पर सूर्योपासना का पांच दिनो तक चलने वाला षष्ठी व्रत छठ किया। सूर्य उपासना के दौरान मां सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर तथा उदयाचलगामी सूर्य को पूरब दिशा की ओर अ‌र्घ्य दिया था। आज भी मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के पैरों के निशान मौजूद है। इसके अलावे सूप,डाला और लोटा के निशान शीला पट पर आज भी नजर आता है।

-----

साल के छह माह सिताचारण मंदिर गंगा के गर्भ में समाया रहता है

मंदिर का गर्भ गृह साल के 6 महीने गंगा के गर्भ में समाया रहता है तथा गंगा का जलस्तर घटने पर 6 महीने ऊपर रहता है। मंदिर के राम बाबा ने कहा कि पहले शिलापट्ट पर बने निशान की लोग यहां आकर पूजा-पाठ करते थे। 1972 में सीताचरण में संत का सम्मेलन हुआ। उसी समय जमीन डिग्री के लोगों ने मंदिर बनाने के आग्रह पर सिताचारण मंदिर का 1974 में बनवाया। उन्होंने कहा कि मंदिर के प्रांगण में छठ करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है।

यहां मौजूद सीता के पैरों के निशान एवं भारत के अन्य मंदिरों में मौजूद पद चिन्ह एक समान है।

मुंगेर के वरिष्ठ पत्रकार नरेश चंद्र राय ने बताया कि इंग्लैंड के प्रसिद्ध यात्री सह शोधकर्ता गिर्यसन जब भारत आया तो उन्होंने इस मंदिर के पदचिन्हों का मिलान मां सीता के जनकपुर मंदिर, चित्रकूट मंदिर, मिथिला मंदिर में मौजूद पदचिन्हों से करवाया तो सभी पैरों के निशान में समानता पाया गया। जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक में भी किया है। पुस्तक के अनुसार शिला पट्ट पर ग्रामीणों डालिया एवं लोटे का स्पष्ट निशान दर्शाता है कि यहां सूर्य उपासना का पर किया गया था।

chat bot
आपका साथी