किस नेता का हाजमा बिगाड़ेगा MLC का चूड़ा दही
MLC हर वर्ष जनवरी में चूड़ा-दही भोज करते हैं पर इस बार उनके चूड़ा-दही के दिन ही दिल्ली में भाजपा की खिचड़ी पक रही थी। तारीख स्वत: टकरा गई या जान बूझकर टकराई गई यह तो वे ही जानें।
भागलपुर [शंकर दयाल मिश्रा]। जब किसी का हाजमा खराब हो जाए और झड़झड़ी ना रुके तब एक देसी नुस्खा बड़ा कारगर माना जाता रहा है। यह नुस्खा है 'दही-चूड़ा' खिलाने का। दही-चूड़ा न हो तो 'चूड़ा-दही' भी कुछ काम कर ही जाता है। पर यदि चूड़ा-दही ही किसी पेट, मन-मिजाज खराब कर दे तो...! तो भी यह एक नुस्खा ही कहलाएगा। नुस्खा राजनीति का!
जी हां! लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि में अबकी मकर संक्राति चूड़ा-दही का नुस्खा कइयों को ठीक और कइयों को बीमार करने जा रहा है।
भागलपुर में चूड़ा-दही भोज की शुरुआत मकर संक्रांति से पांच दिन पहले गुरुवार को भाजपा के एमएलसी डॉ. एनके यादव ने कर दी। पार्टियों के लिहाज से कहें तो शहर की चौथी पार्टी हुई। देसी मिजाज की पार्टी। यानी चूड़ा-दही भोज। सो इससे किसका हाजमा दुरुस्त होगा और किसका खराब, इसका आकलन किया जाने लगा है।
यूं तो डॉ. यादव हर वर्ष जनवरी में चूड़ा-दही भोज करते हैं पर इस बार उनके चूड़ा-दही के दिन ही दिल्ली में भाजपा की खिचड़ी पक रही थी। तारीख स्वत: टकरा गई या जान बूझकर टकराई गई यह तो वे ही जानें, पर वहां रामलीला मैदान में राष्ट्रीय परिषद की बैठक में शामिल होने के लिए भाजपा के तमाम बड़े यहां से जा चुके थे। वे दिल्ली से सोशल साइट पर अन्य बड़े नेताओं के साथ अपना चेहरा चमका रहे हैं। और यहां डॉ. यादव के चूड़ा-दही में गरीब-गुरबों के साथ अन्य दलों खासकर राजद के लोगों की जुटान अधिक थी। चूड़ा-दही खाने के पहले और बाद रह-रहकर नारे लगे- हमारा #सांसद कैसा हो... डॉ. एनके यादव जैसा हो!
यानी यह चूड़ा-दही डॉ. यादव के मन-मिजाज को तो बुलंद कर रहा था, पर तटस्थ टाइप के लोग कन्फ्यूज थे कि यह हाजमा किसका-कैसे-क्यों खराब करेगा। सामने फिलहाल दो नाम थे। डेढ़ बार (एक उपचुनाव और एक पूरा टर्म) भागलपुर के सांसद रहे शाहनवाज हुसैन का या फिर वर्तमान सांसद बूलो मंडल का। डॉ. यादव के पक्ष में नारा लगाने वाले में राजद के बेस वोटर अधिक थे। कुछ स्थानीय नेता भी।
तो क्या यह पार्टी की ओर कोई संकेत था- तुम नहीं कोई और सही, कोई और नहीं तो और सही! वैसे राजनीतिक नजरिए से देखें तो बूलो मंडल इस बार भी महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे ही। कोई कारण नहीं दिखता कि उनकी जगह किसी और को मौका मिलेगा। यानी चुनाव लडऩे के लिए भागलपुर राजद में नो वेकेंसी।
तो क्या डॉ. यादव को भाजपा मौका देगी? भाजपा के जानकारों का कहना है कि यदि शाहनवाज खुद मना करेंगे तो ही यहां से किसी दूसरे को पार्टी उम्मीदवार बनाएगी। और भाजपा के सर्वाधिक सुरक्षित सीटों में एक भागलपुर सीट को शाहनवाज छोड़ें क्यों भला! 2014 में नोटा से कम वोट से हारे यूं कहें कि नोटा से हारे शाहनवाज लगातार क्षेत्र में बने रहे हैं। वे इसे अपनी कर्मस्थली बताकर यहीं से चुनाव लडऩे की बात कहते रहे हैं। ऐसे में स्पष्ट है कि डॉ. यादव की चूड़ा-दही उनका अपना मन-मिजाज भले बुलंद कर गई, पर हाजमा किसी का खराब नहीं होगा।
पर चूड़ा-दही और इसका नुख्सा यहां खत्म नहीं होता। असल चूड़ा-दही तो पटना में है। वहां चूड़ा-दही के भोजों यानी खरमास के बाद एनडीए के घटक दलों के बीच यह साफ होगा कि भागलपुर सीट किस पार्टी को जाएगी। हालांकि शाहनवाज समर्थक आश्वस्त हैं कि वहां की चूड़ा-दही भी उनका जायका-हाजमा खराब नहीं करेगी। उन्हें भी पता है कि जदयू का दो "आरसीपी" प्रयास इस सीट के लिए जिताऊ कंडीडेट खोज नहीं पाई है। जदयू के लोग भी समझ रहे हैं कि सीट निकाल पाने की योग्यता शाहनवाज से कमतर किसी नेता में नहीं। हालांकि जदयू के पूर्व प्रत्याशी अबू कैसर पूर्ववर्ती चुनावों की तरह फिर टिमटिमाने लगे हैं। राज्यसभा सदस्य कहकशां परवीन भी बड़ा नाम है।