पाठ्यक्रम समान पर निजी स्कूलों में प्रकाशक सैकड़ों

सीबीएसई पैटर्न का पाठ्यक्रम एक समान है, लेकिन निजी स्कूलों में प्रकाशकों की संख्या सैकड़ों में है। यानी जितने स्कूल, उतने प्रकाशकों की किताबें।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Mar 2018 06:02 PM (IST) Updated:Mon, 26 Mar 2018 06:02 PM (IST)
पाठ्यक्रम समान पर निजी स्कूलों में प्रकाशक सैकड़ों
पाठ्यक्रम समान पर निजी स्कूलों में प्रकाशक सैकड़ों

भागलपुर। पहले भारी-भरकम फीस, फिर किताबों समेत पढ़ाई से जुड़े अन्य सामानों की कीमत का बोझ। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के माता-पिता के सपने का स्कूल संचालक फायदा उठाने में लगे हुए हैं। सीबीएसई पैटर्न का पाठ्यक्रम एक समान है, लेकिन निजी स्कूलों में प्रकाशकों की संख्या सैकड़ों में है। यानी जितने स्कूल, उतने प्रकाशकों की किताबें। एक ही कक्षा, लेकिन स्कूल अलग तो किताबें भी अलग।

केंद्रीय विद्यालय में सीबीएसई पैटर्न का एनसीईआरटी की पहली कक्षा का कोर्स 217 रुपये तो निजी स्कूल का 2000 रुपये है। जबकि खुद सीबीएसई स्कूल भी यह मानता है कि कोर्स 800 रुपये में आना चाहिए। बुक डीलर्स के अनुसार स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबें इसलिए लेते हैं, क्योंकि उन्हें डीलर्स से 40-50 फीसदी कमीशन मिल जाता है।

सत्र शुरू होने से पहले यानी दिसंबर से मार्च के बीच डीलर के एजेंट सब तय कर चुके होते हैं। इतना ही नहीं, स्कूल की मोनो वाली डायरी, ड्रेस, ब्लेजर, स्वेटर, प्रोजेक्ट, टाई बेल्ट का वास्तविक दाम में भी स्कूल की कमाई औसत 50 फीसदी से ज्यादा है।

कुछ पुराने, कुछ नए प्रकाशक

गणित का पब्लिकेशन गोयल होगा तो अंग्रेजी का लॉगमन और हिंदी का ऑक्सफोर्ड, इस तरह स्कूल और डीलर्स मिलकर सेट बनाते हैं। इसमें कुछ किताबें प्रसिद्ध प्रकाशकों की तो कुछ नए प्रकाशकों की ली जाती हैं। कारण, नए प्रकाशकों की किताबों में सीबीएसई से संबद्ध कुछ नहीं होता। उनमें सामान्य ज्ञान, मोरल साइंस, करंट अफेयर्स, कम्प्यूटर जैसी किताब होती हैं। इनकी कीमत बहुत ज्यादा और कमीशन भी 50 फीसदी से अधिक होती है। हर बुक स्टोर्स के पास दर्जनों स्कूलों का ठेका होता है। इसी तरह मोनो लगी ड्रेस, प्रोजेक्ट वर्क का सामान, जूते-मोजे, मोनो सहित ब्लेजर या स्वेटर अन्य दुकान पर नहीं मिलेगा।

एनसीईआरटी तय करती है सिलेबस

पाठ्यक्रम का निर्धारण करना करना एनसीईआरटी का काम है और परीक्षा लेना सीबीएसई का। एनसीईआरटी खुद भी किताबें प्रकाशित करती है, लेकिन निजी स्कूलों को इनकी किताबें लेने की बाध्यता नहीं होती। शिक्षाविद् बताते हैं कि वास्तव में सीबीएसई का पाठ्यक्रम 10वीं बोर्ड से शुरू होता है। क्योंकि सीबीएसई निर्धारित प्रोफार्मा में सबसे पहली परीक्षा 10वीं की ही लेता है। ऐसे में पहली से लेकर 9वीं क्लास तक स्कूल इस व्यवस्था का फायदा उठाते हैं।

अतिरिक्त किताबें न हो तो कीमत हो जाए आधी

अगर बुक सेट से बिना काम की किताबों को हटा दिया जाए तो उनकी कीमत आधी हो जाएगी और अगर स्कूल सिर्फ कमीशन लेना बंद कर दें तो दो हजार रुपये वाला सेट 1200 रुपये में आ जाएगा। शिक्षाविद् मानते हैं कि सामान्य ज्ञान, मोरल वैल्यू, करंट अफेयर्स जैसी किताबें नहीं लेना चाहिए, बल्कि स्कूल को इनकी नोट बुक्स बनवानी चाहिए।

हर साल बदल जाते हैं प्रकाशक सीबीएसई हर साल पाठ्यक्रम नहीं बदलता, लेकिन स्कूल संचालक एक ही कक्षा की किताब हर साल बदलते हैं। प्रकाशक भी एक-दूसरे का बखूबी साथ देते हैं। सिलेबस वही रहता है लेकिन एक प्रकाशक की किताब में जो चैप्टर आगे रहता है, दूसरा उसे बीच में कर देता है। सवाल यह है कि क्या एक साल में ही प्रकाशक और किताबों का स्तर निम्न हो जाता है।

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