गरीब बच्चों को शिक्षा ही नहीं पाठ्य सामग्री भी देती हैं बबीता, एक दशक से इस तरह पढ़ा रही

सुपौल में लोगों को शिक्षा के प्रति बबीता जागरूक कर रही है। वह फ्री में बच्चों को बढ़ा रही है। अनुसूचित जाति टोले के बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़े इसको लेकर वह प्रयासरत है। 2009 में बेस्ट अक्षरदूत से नवाजे जाने के बाद से वह आगे बढ़ रही हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Publish:Fri, 01 Jan 2021 03:35 PM (IST) Updated:Fri, 01 Jan 2021 03:35 PM (IST)
गरीब बच्चों को शिक्षा ही नहीं पाठ्य सामग्री भी देती हैं बबीता, एक दशक से इस तरह पढ़ा रही
सुपौल में लोगों को शिक्षा के प्रति बबीता जागरूक कर रही है।

सुपौल [मिथिलेश कुमार]। राजकीय शिक्षक पुरस्कार से पुरस्कृत मध्य विद्यालय सरायगढ़ की शिक्षिका बबीता आज किसी परिचय या किसी पहचान की मोहताज नहीं। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी विशेष उपलब्धि के लिए अब तक उन्हें कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है। अनुसूचित जाति टोले-मोहल्ले के बच्चे भी शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़े इसको लेकर ये दशकों से प्रयासरत हैं। अनुसूचित जाति टोले-मोहल्ले में जाकर बच्चों को पढ़ाना तथा उनके बीच पाठ्य सामग्री का वितरण करना उनकी शगल में शामिल है। वर्ष 2009 में अक्षर आंचल योजना के तहत बेस्ट अक्षरदूत से नवाजे जाने के बाद वह शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ती ही रही और नतीजा रहा कि शिक्षा के क्षेत्र में इन्हें राजकीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विद्यालय में पढ़ाने के बाद फुर्सत के क्षणों में वह अनुसूचित जाति टोले-मोहल्ले निकल पड़ती हैं और वहां घंटे दो घंटे बच्चों को पढ़ाती हैं। किसी भी विशेष अवसर पर वह शिक्षा से वंचित बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगाने के उद्देश्य से पाठ्य सामग्री वितरित करती हैं और बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करती हैं। नए साल 2021 के आगमन के अवसर पर शुक्रवार को उनके द्वारा अनुसूचित जाति टोले के बच्चों के बीच पाठ्य सामग्री का वितरण किया गया।

अन्य गतिविधियों में भी भागीदारी

इसके अलावे अन्य गतिविधियों यथा मद्य-निषेध, बाल विवाह, कृषक जागरूकता, योग, मानव श्रृंखला निर्माण के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों में भी वह भूमिका निभाती चली आ रही है। जहां तक बबीता के नाम कीर्तिमान की बात है तो इसकी लंबी फेहरिस्त है।

पुरस्कारों की है लंबी फेहरिस्त

जिला स्थापना दिवस के मौके पर महिला सम्मान 2014 से सूबे के वित्त मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव द्वारा बबीता को सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उसे महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु निस्वार्थ असाधारण कार्य के लिए दिया गया। बेस्ट अक्षरदूत से लेकर मौलाना अबुल कलाम आजाद एवं राजकीय शिक्षक सम्मान पुरस्कार तक का अब तक सफर तय करने वाली बबीता आज भी शिक्षा का अलख जगा रही है। 2010 में शिक्षा दिवस के मौके पर तत्कालीन प्रधान सचिव अंजनी कुमार ङ्क्षसह के हाथों वह सम्मानित हुई। बिहार दिवस के अवसर पर 22 मार्च 2011 को उन्हें सम्मानित किया गया। 29 मार्च 2011 को तारामंडल सभागार में अक्षर बिहार राज्य संसाधन केंद्र आद्री के संयुक्त साक्षरता मंच के द्वारा तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी द्वारा अक्षर बिहार की ओर से स्वयंसेवक सम्मान से बबीता को नवाजा गया। वर्ष 2011 में मानव संसाधन विकास विभाग बिहार द्वारा प्रकाशित पुस्तक सपनों को लगे पंख में बबीता के जीवन की संघर्षगाथा को जीवनी के तौर पर अपवाद शीर्षक देकर सहेजा गया। इस पुस्तक में बबीता ने लेखक की भी भूमिका निभाई। 2012 में शिक्षा विभाग बिहार सरकार द्वारा बिहार के शताब्दी वर्ष पर शतक के साक्षी नामक पुस्तक का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया। जिसमें बबीता ने सुपौल के तीन बुजुर्गों की जीवनी को पुस्तक में सहेजा। इस उल्लेखनीय कार्य के लिए उनका नाम बिहार के 20 सर्वश्रेष्ठ लेखकीय टीम में शामिल किया गया। शिक्षा दिवस 2014 पर श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल पटना में आयोजित समारोह में शिक्षा के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान प्रदान करने के लिए बबीता को मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार तत्कालीन शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल द्वारा दिया गया। बबीता शिक्षा के क्षेत्र में अपनी विजयगाथा को यहीं विराम देना नहीं चाह रही। वह शिक्षा के मुहिम को और अधिक गति देते हुए इसे गरीब, दलित, शोषित, पीडि़त व कमजोर वर्गों के उत्थान तक पहुंचाना चाहती हैं।

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